अनुराग और आरती का सुंदर मध्यमवर्गीय परिवार था, पति-पत्नी और दो बच्चों के साथ अनुराग टु बीएचके फ़्लेट में आराम से ज़िंदगी जी रहा था। आरती सुंदर, संस्कारी और आदर्श पत्नी है, पति की आय में सलीके से घर का निर्वाह कर लेती है। हंसी-खुशी जीवन बित रहा था। अनुराग सुबह दस बजे ऑफिस के लिए निकल जाता और शाम छह बजे वापस आ जाता फिर बच्चों और आरती के साथ समय बिताता। बच्चों को पढ़ाता, खेलता और मस्ती करता। छुट्टियों में घूमना, फिरना दोस्तों के घर जाना और पिकनिक बगैरह भी होती थी। अनुराग टोटली परिवार प्रेमी था। आरती अनुराग के सानिध्य में खुश थी। कुल मिलाकर एक आदर्श परिवार कह सकते है। एक दिन अनुराग की ऑफिस में दिल्ली से एक नया कर्मचारी ज्वाइन हुआ अर्नव बासु करके जो ज़िंदगी को एक जुआ समझता था और शोर्टकट अपना कर रातों रात धनवान बनने का सपना देखता रहता था, उससे अनुराग की दोस्ती हो गई। अर्नव ने अपने प्लान अनुराग को बताए तो अनुराग को भी पैसे वाला बनने की तलब लग गई। दोनों ने मिलकर बैंक से लोन लिया और बिज़नेस शुरू किया।
शुरू में दिक्कत आई पर आहिस्ता-आहिस्ता जमने लगा और धीरे-धीरे दूसरे शहरों में भी शाखाएं खोलने लगे। धंधा बढ़ने लगा तो ज़ाहिर सी बात है अनुराग को कभी-कभी शहर से बाहर भी जाना पड़ता और अनुराग अब घर परिवार से दूर होता जा रहा था। बेशक बड़ा बंगलो बनाया दो दो गाड़ी का मालिक बन गया। आरती कई बार टोकती अनुराग अब बस कीजिए पूरी ज़िंदगी बैठकर खाएंगे तो भी कम नहीं पड़ेगा इतना कमा लिया, अब सब साथ मिलकर ज़िंदगी जीते है मैं और बच्चें आपको बहुत मिस करते है। हमें पैसा नहीं आपका वक्त चाहिए। पर कहते है ना पैसों की भूख कभी मिटती नहीं।
पहले अनुराग कुछ दिनों तक बाहर रहता था अब महीनों तक अलग-अलग शहरों में बिज़नेस टूर पर भटकता रहता। आरती के एकाउंट में लाखों रुपये ड़ाल देता और अनुराग को लगता की उसकी जिम्मेदारी ख़त्म हो गई। बच्चें बार-बार आरती से पूछते पापा कब आएंगे? पर खुद आरती को कहाँ पता होता था। अनुराग के लिए परिवार से ज़्यादा अब पैसे अहमियत रखते थे। एक दिन आरती को ज़ोरों के चक्कर आए और गिर गई पड़ोसी ने एम्बुलेंस बुलाई और अस्पताल पहुंचाया। सारे टेस्ट के बाद पता चला आरती को ब्रेन टयूमर है। डाॅक्टर ने अनुराग से बात करके परिस्थिति समझाई, अनुराग ने कहा डाॅक्टर जितने पैसे चाहे ले लो आरती को अच्छे से अच्छी ट्रीटमेंट मिलनी चाहिए।
आरती को बहुत बुरा लगा अनुराग को क्या लगता है उसकी इस बात से मैं खुश हो जाऊँगी मुझे पैसों के भरोसे छोड़ रहा है, जबकि इस वक्त मुझे अनुराग के साथ की जरूरत है। दस दिन अस्पताल में रहकर आरती घर आई डाॅक्टर ने बोल दिया था समय बहुत कम है कभी भी कुछ भी हो सकता है। नो डाउट अनुराग रोज़ फोन पर बात करके हाल-चाल पूछता पर आरती चाहती थी अब ज़िंदगी के जितने दिन बचे है वो अनुराग की आगोश में बिते, पर अनुराग पैसों की चमकार में अंधा हो गया था। आज आऊँगा, कल आऊँगा बस थोड़ा ही काम बाकी है करके टाल देता। एक दिन आरती की तबियत बहुत खराब हो गई डाॅक्टर ने अनुराग को फोन किया अगर आरती को आख़री बार मिलना चाहते हो तो प्लीज़ कम सून…अनुराग ने जो पहली फ्लाइट मिली पकड़ ली।
आरती की आँखें दरवाज़े पर पथराई हुई थी साँसे तन से गिरह छोड़ रही थी। उधर अनुराग ने अस्पताल के रूम में कदम रखा और इधर एक उम्मीद आँखों में भरे अनुराग से वक्त की आस लगाए आरती ने इस दुनिया को अलविदा कहते अपना अस्तित्व समेट लिया और अनंत की डगर पर निकल पड़ी। चंद कदमों की दूरी दोनों के बीच रह गई। अनुराग टूट गया, बिलख-बिलख कर रोने लगा पर अब कहाँ कोई सुनने वाला था। परिवार की धुरी टूट चुकी थी, अनुराग के संसार का रथ हड़बड़ा गया। अब पछता रहा है अपनी करनी पर अपने ही हाथों परिवार को तितर-बितर कर दिया था। काश की मैं वक्त रहते घर आ जाता,, काश आरती को ट्रीटमेंट के लिए विदेश ले जाता,, काश उसके आख़री वक्त में उसके साथ होता। पैसों की चकाचौंध में परिवार को तम की गर्ता में धकेल दिया पर अब काश के सिवाय कुछ नहीं बचा। अपने उजड़े आशियाने में आरती को ढूँढता अनुराग घूम रहा है परिवार की महत्ता को समझा पर बहुत देर से। वक्त रहते समझ जाता तो शायद परिस्थिति कुछ और होती।
#वक्त
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर