वापसी ( रिश्तों की) भाग–4 – रचना कंडवाल

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि बरखा अपनी बेटी सुनिधि को उसके पिता के बारे में बताती है। कि बाइस साल पहले उन दोनों के बीच क्या हुआ था?? उनके अलग होने की वजह क्या थी?? सुनिधि पूछती है कि क्या आपने उनसे दोबारा मिलने की कोशिश की??

अब आगे–

नहीं कभी नहीं। वो सिहर उठी

अंतिम बार मैंने उनकी खामोशी में हमारे दम तोड़ते रिश्ते को देखा था।

फिर दोबारा किस मुंह से उनके सामने जाती??

कोई इल्ज़ाम नहीं कोई सवाल नहीं कुछ भी तो नहीं किया था उन्होंने।

वो खामोशी से अपने दिल की कतरनें समेट कर चले गए थे।

सुनिधि जोर से रो पड़ी।

आप कोई दूध पीती बच्ची थी। जो नानी के बहकावे में आकर मेरे पापा को इतना हर्ट किया। इस सबके लिए नानी नहीं आप जिम्मेदार हैं।

क्या सोचा आपने??? मैं आपको माफ कर दूंगी। कभी नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा वो बड़बड़ाने लगी।


तो तुम क्या कर रही हो?? बरखा ने सवाल किया। क्या मेरी वाली गलती अब तुम दोहराओगी ??

जानती हो विपुल के साथ तुम्हारे रिश्ते के लिए मैंने हां क्यों की थी?? क्योंकि उसमें मुझे अरिंदम नजर आए थे।

वो तुम्हें कभी तकलीफ नहीं देगा। रिश्तों को संभालना सीखो मेरी गुड़िया जो मैं नहीं कर सकी वो तुम करो।

सुनिधि बरखा की तरफ पीठ फेर कर खड़ी हो गई।

मॉम मैं कुछ देर अकेले रहना चाहती हूं।

ऐसा कह कर वह तेजी से बाहर चली गई।

बरखा उसे जाते हुए देख रही थी।

वो अपने रूम में गई और धड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया।

अपने रूम में उसने अपना मोबाइल उठाया और फ्लोर पर बैठ गई।

उंगलियां मोबाइल स्क्रीन पर चलने लगी।

अरिंदम मजूमदार लिखते ही उनका विकीपीडिया खुल गया।

पूरी डिटेल देखने लगी।

पापा गरीब,अनाथ और बेघर बच्चों के लिए काम करते हैं।

चिल्ड्रन में वन डॉटर लिखा था।

वो मोबाइल को सीने से लगा कर सिसकने लगी। आई हेट यू मॉम, आई हेट यू।

ऐसे ही दो घंटे बीत गए।

अचानक उसे ख्याल आया कि आज तो उसके सास ससुर डिनर पर आ रहे हैं। वो जल्दी से खड़ी उठी रोते रोते उसका चेहरा लाल हो गया था आंखें सूज गई थीं।

फटाफट से मुंह ठंडे पानी से धोकर आइस पैक आंखों पर चढ़ा कर लेट गई।

शाम के पांच बज चुके थे।


साढ़े छह बजे तक विपुल उन्हें लेकर यहां आ जाएंगे। ये सोचते हुए उसने अपने सिर को झटका दिया।

किचन के नाम से नाक मुंह सिकोड़ने वाली सुनिधि आज किचन में जाकर शेफ को निर्देश देने लगी।

बरखा चुपचाप उसे देख रही थी। नानी को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है??

दादा, आप कम मसाले वाली दाल, मिक्स सब्जी, रोटी और हल्का मीठा डाल कर फ्रूट कस्टर्ड बनाएं। मखाना पनीर मैं बनाऊंगी। आप सामान तैयार कर दीजिए। मम्मी पापा रात को बहुत हल्का खाना खाते हैं। विपुल के लिए मैं कीमे के कवाब आर्डर कर रही हूं उन्हें बहुत पसंद हैं।

देवेन भैय्या उन लोगों को सबसे पहले इलायची वाली चाय और विपुल को कोल्ड कॉफी सर्व कीजिएगा।

डिनर 8.30 पर सर्व करेंगे।

डिनर की तैयारी करके उसने कपड़े चेंज कर लिए। लाइट ब्लू कलर का सूट पहना कानों में मोती के टॉप्स पहन लिए। अपने चेहरे को मिरर में देखा कि कहीं चेहरे पर भारीपन तो नहीं दिख रहा फिर आश्वस्त हो कर मैगजीन पढ़ने लगी।

बरखा साहस नही जुटा पा रही थी कि वो सुनिधि से कैसे बात करे??

उसके सास-ससुर आ ग‌ए। बातचीत बड़े हल्के फुल्के माहौल में होने लगी हंसी मजाक से वातावरण खुशगवार हो गया।

डिनर में सुनिधि अपने सास ससुर को प्यार से खाना परोस कर खिला रही थी।

मम्मी देखिए मैंने ये सब्जी खास आपके लिए बनाई है जैसा आपने सिखाया था।

सुनिधि बेटा तुमने तो मुझसे भी अच्छी बनाई है। क्यों विपुल ?? सास ने चखते ही बोला।

उसकी सासू मां उसकी मॉम से उसकी तारीफों के पुल बांध रही थी।

आपने तो सुनिधि का हाथ विपुल के हाथ में देकर हमारे घर को भर दिया है।

मेरा बहुत मान रखती है बहन जी हम बुजुर्ग लोग ढलती उम्र में प्यार के दो बोल चाहते हैं और कुछ नहीं।

सुनिधि ने मुंह फेर कर आंखों की कोरों में आंसू पोंछ लिए। वो सोच रही थी कि जरा सी बेवकूफी से इंसान अपने सब रिश्ते गंवा देता है। मैं अपनी मॉम के जैसे नहीं बनूंगी। अपने सब रिश्तों को समेट कर रखूंगी।

ग्यारह बजे के लगभग वो लोग निकलने लगे तो बरखा ने उनका धन्यवाद किया।

सुनिधि! बेटा तुम रूकना चाहती हो तो रूक जाओ। तुम्हारी मां को अच्छा लगेगा। उसकी सासू मां ने मुस्कुराते हुए कहा।

नहीं मम्मी ! मैं भी घर ही चलूंगी।

चलिए सरकार ! विपुल ने हंसते हुए कहा तो सब लोग हंस पड़े।

ड्राइव करते हुए विपुल बहुत खुश था। घर पहुंच कर उसने जैसे ही अपने बेडरूम में एंटर किया विपुल ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और गुनगुनाने लगा।

“अहसान तेरा होगा मुझ पर जो दिल चाहता है वो कहने दो मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है मुझे पलकों की छांव में रहने दो”।

सुनिधि ने मुस्कुराते हुए उसके सीने में सिर छिपा लिया।

इससे पहले जनाब को मोहब्बत नहीं थी क्या?? किसने कहा कि नहीं हमेशा थी, है और हमेशा रहेगी। ऐसा कह कर उसने उसका माथा चूम लिया।

“तुम्हारे बिना जीना नहीं हो पाएगा।”

वो सोच रही थी कि क्या कभी वो अपनी जिंदगी में अ‌पने पापा को वापस ला पाएगी ???

क्या उसके सभी रिश्तों की वापसी हो पाएगी??

ये जानने के लिए पाठको को कल अंतिम भाग पढ़ना होगा।

वापसी ( रिश्तों की)  आखिरी भाग-5

वापसी ( रिश्तों की)  आखिरी भाग-5 –  रचना कंडवाल

वापसी ( रिश्तों की) भाग – 3

वापसी (रिश्तों की) भाग–3 – रचना कंडवाल

2 thoughts on “वापसी ( रिश्तों की) भाग–4 – रचना कंडवाल”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!