वापिसी.. -रीटा मक्कड़

आज अनिता का मन सुबह से बहुत ज्यादा ही उदास था। बार बार आंखें छलक रही थी। सुबह से रात होने को आई थी लेकिन उसकी ज़िन्दगी का सूनापन और अकेलापन तो हर उगते सूरज और हर ढलती शाम के साथ बढ़ता ही जा रहा था।

आज उसके पतिदेव मनोहर लाल  का जन्मदिन था। कहाँ तो वो हर बरस इस दिन को कितनी खुशी खुशी मनाते थे अनिता उनकी पसंद की बहुत सी चीजें बनाती और सारा दिन बच्चों के और बाकी सब परिवार वालों के फोन और मैसेज भी आते रहते।

बेटी दामाद भी विदेश से अवश्य वीडियो काल पर बधाई

देते और  वही दिन जो  खुशियों और पकवानों की खुशबू से गुलज़ार रहता था आज सारा दिन  घर मे बेहद खालीपन और सन्नाटा पसरा था ।इस क्रोना नाम के राक्षस ने सात महीने पहले उसके पति को उनसे छीन लिया था।

मनोहर जी की बातें याद करते करते और आंसुओं से तकिया भिगोते जाने कब अनिता की आंख लग गयी।तभी उसे लगा कोई उसे आवाज़ दे रहा है आवाज़ भी कुछ अपनी और पहचानी सी लगी..”क्या हुआ अनिता रो क्यों रही हो..”

“आप कहाँ चले गए मुझे अकेला छोड़ कर’

“अरे नही मैं कहीं नही गया मैं तो यही हूँ तेरे आसपास..अब तो बस मैं  पल्लवी बिटिया के घर जा रहा हूँ”

कुछ सपने सुबह होने पर भूल जाते हैं या धुंधले से हो जाते हैं।लेकिन अनिता को ये सपना बिल्कुल नही भूला और वो शाम तक उसके बारे में ही सोचती रही। पल्लवी अनिता की छोटी बहन की बेटी थी और उनकी अपनी बेटी की शादी विदेश में होने के कारण अब मनोहर जी यही कहते थे कि पल्लवी भी तो हमारी ही बेटी है और उसको बहुत ज्यादा प्यार करते थी।

अनिता ने सोचा,”चलो पल्लवी को फोन ही कर लेती हूं।शायद दिमाग मे जो उथल पुथल मची है थोड़ी शांत हो जाये। इस बहाने उसका हाल चाल भी जान लुंगी।

ये सोचते हुए अनिता ने पल्लवी को फोन किया तो उसको पता चला कि पल्लवी माँ बनने वाली है। पल्लवी से ये सुनकर  अनिता बहुत ज्यादा खुश हुई  और हैरान भी..क्योंकि पल्लवी की शादी को पांच साल हो चुके थे और अभी तक उसकी गोद नही भरी थी और आज अचानक से ये खुशखबरी..

मौलिक और स्वरचित

रीटा मक्कड़

 

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