वापसी टिकट – अर्चना सिंह: Moral Stories in Hindi

आराधना की डिलीवरी में तकरीब बीस दिन बचे थे । पहली डिलीवरी थी तो आराधना कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी । समझ नहीं पा रही थी वो किसके लिए क्या खरीदे और किसके लिए क्या करे । एक तरफ तो उसे भर्ती होने की चिंता थी तो दूसरी ओर उसे अनिमेष की मम्मी का तानाशाही वाला स्वभाव परेशान कर रहा था इसलिए आराधना अनिमेष से ज़िद कर रही थी कि चलो !

मम्मी और बहन के लिए कपड़े खरीद लेते हैं । आखिर शादी के दो सालों बाद वो लोग पहली बार आ रहे हैं । बेटा हो या बेटी, हमे कुछ तो देना ही है न । फिर डिलीवरी होने के बाद तो मेरा तुम्हारे साथ जाकर पसन्द से खरीदना नहीं ही हो पाएगा , मम्मी जी को बर्दाश्त नहीं होगा । अनिमेष आराधना को समझाते हुए कह रहा था …”तुम परेशान मत हो । जिनके लिए जो खरीदना है वो तुम्हारे बगैर भी मैं खरीद लूँगा । बस अपना समय अपने देखभाल में लगाओ ।

अचानक एक दिन अनिमेष को ऑफिस भेजकर आराधना छत पर पौधों को पानी देने जा रही थी कि सीढ़ियों पर उसका पैर फिसला । किस्मत अच्छी थी कि पड़ोस वाली आंटी ने देखा और उसे सम्भाल लिया । आंटी ने ऑफिस में अनिमेष को कॉल किया तो वो हड़बड़ा कर घर आ गया । आराधना को अनिमेष डॉक्टर के पास ले गया तो डॉक्टर ने कहा…”अब बेड रेस्ट की जरूरत है, घर से किसी को बुलवा लो । आराधना चाहती थी उसकी मम्मी आ जाएं ताकि वो अच्छे से आराम पा सके ।

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अनिमेष की मम्मी का टिकट दो सप्ताह बाद था । आराधना ने अपनी मम्मी से बोला तो उसकी बहन आस्था, दीदी के पास आकर हाथ बंटाने के लिए तैयार हो गयी । जल्दी से आराधना की मम्मी और बहन आस्था को तत्काल टिकट मिला और आस्था आकर दीदी की देखभाल से लेकर खाना बनाने के सारे काम करने लगी । अब देखते- देखते डिलीवरी में सिर्फ चार दिन बचे थे । आराधना ने अनिमेष से कहा…”मम्मी जी को क्यों परेशान करना इतनी दूर से बुलाकर । जब डिलीवरी हो जाए तब बुलाना । अभी आस्था सब सम्भाल ही 

लेगी । अचानक अगले दिन  आराधना को दर्द उठा और अनिमेष उसे लेकर अस्पताल चला गया । कुछ ही देर बाद एक नर्स प्यारी सी बच्ची को गोद मे चिपकाकर अनिमेष को लाकर दिखाई और ढेरों बधाईयां दी । अनिमेष का मन नन्हीं परी को देखकर गदगद हो गया था । माँ को फोन करने के लिए जैसे ही वो फोन उठाया उसे अचानक याद आया..आज तो मम्मी की ट्रेन है ।

वो माँ को फोन किया और जैसे ही माँ ने फोन उठाया बिना माँ की आवाज़ सुने वो बोलने लगा..”मैं पापा बन गया मम्मी ! ,नन्हीं सी गुड़िया आयी है हमारे घर । फिर अचानक से फोन कट गया । अनिमेष ने दुबारा फोन मिलाया तो इस बार माँ का स्वर थोड़ा कड़क था । 

माँ ने अनिमेष से बोला..”थोड़ा इंतज़ार नहीं कर सकते थे तुम..? कल की ही तो बात थी, बिना घरवालों के ही डिलीवरी करा लिया । अनिमेष ने प्यार से माँ को समझाते हुए बोला..”कैसी बातें कर रही हैं आप मम्मी ! डॉक्टर ने स्थिति जैसी बताई हमने वैसा किया और रही घर वालों की बात तो आस्था थी, मम्मी जी भी आ गयी थीं सब घर के ही तो हैं और आप तो कल पहुँचने ही वाली हैं ।

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अगली सुबह अनिमेष मम्मी को स्टेशन से लेकर सीधे अस्पताल पहुंच गया । वार्ड घुसते ही आराधना पर नज़रें पड़ीं तो पूर्णिमा जी ने उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरा तब तक अनिमेष ने बच्ची को उठाकर पूर्णिमा जी की गोद में थमा दिया । पूर्णिमा जी ने पोती के साथ खूब लाड़ लगाकर उसे प्यार से सुला दिया । वार्ड से बाहर निकलकर अनिमेष ने माँ से कहा…”मम्मी !

आराधना को कमजोरी की वजह से दर्द बहुत बढ़ा हुआ है और वो इधर तीन – चार रातों से सो नहीं पाई है । मुस्कुराकर अनिमेष बोल रहा था.. “अब आपको पूरा ध्यान रखना होगा अपनी पोती और बहू दोनो का । आप बच्ची को समय देंगी तो आराम मिल जाएगा आराधना को “। 

पूर्णिमा जी ने तंज कसते हुए तीखे स्वर में बोला..”क्यों ? जब सब कुछ मुझे ही देखना है बेटा तो आराधना की मम्मी और बहन की क्या जरूरत है, उन्हें क्यों बिठा रखा है यहाँ ?

आश्चर्यमिश्रित भाव लिए अनिमेष माँ को एकटक निहारता रहा ।

अब पूर्णिमा जी बेटे के साथ घर आ गईं थीं । मन मारकर  आस्था की मम्मी ने समधन पूर्णिमा जी के लिए खाना निकाल कर परोसा और भारी मन से दूसरे कमरे के बिस्तर पर धम्म से बैठ गयी ।

पूर्णिमा जी ने हाथ- पैर धोकर बाथरूम से निकलते हुए कहा..”पहले अपने घरवालों को छोड़कर बिना पूछे तुमने दूसरे लोगों को ही बुलाकर मेला बना लिया है । अनिमेष एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया और कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया । माँ के पीछे,- पीछे आस्था भी आई और झट से अपनी ट्रॉली निकाल कर पैक करने लगी । पूर्णिमा जी ने आस्था का हाथ रोकते हुए कहा…”,क्यों गुस्से में फैसले ले रही हो बेटा ? दीदी अस्पताल से आएगी तो उसे क्या जवाब  देंगे ।

वो तो पहले से ही सास से डरी हुई है, फिर डिलीवरी की चिंता और ऊपर से हमारा यूँ चले जाना कितनी दुःखी हो जाएगी वो । आस्था ने चिल्लाते हुए कहा…” मम्मी ! पूर्णिमा आंटी के तेवर देख रही हैं न आप ? आस्था के कंधे पर हाथ रखते हुए उसकी मम्मी ने  कहा..”सब कुछ दिख रहा है बेटा, माँ हूँ ! अपनी दूसरी बेटी की तकलीफ भी दिख रही है , कैसे छोड़कर निकल जाऊं । इंतज़ार करो आराधना दीदी के आने का, फिर वो जैसा कहेगी, कर लेंगे ।

अगले  दिन आराधना को डिस्चार्ज होना था । अनिमेष और उसकी मम्मी नाश्ता करके निकल गए अस्पताल के लिए । इधर आस्था और उसकी मम्मी आराधना के लिए कमरा खाली करके जरूरत की चीजें रखने में लगी हुई थीं । आस्था दीदी की  पसन्द के आलू पराठे , सूप, और हरीरा बनाने में लगी हुई थी । 

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गाड़ी की हॉर्न सुनाई दी तो आस्था ने बालकनी में झाँका आराधना बच्चे के साथ ऊपर ही आ रही थी । वापस लौटने पर भी पूर्णिमा जी बिल्कुल सख्त अंदाज़ में थीं । आस्था आरती उतारने लगी तब तक पूर्णिमा जी अंदर आकर दूसरे कमरे में लेट गयीं ।

अनिमेष माँ का मूड शांत करने में लगा था । उसने माँ से बोला…”परी और आराधना के कमरे में आप रह के देखभाल करिए मम्मी ! हाथ पकड़ के मम्मी को अनिमेष बच्चे के कमरे में ले गया । अचानक अनिमेष की नींद सुबह 4 बजे उठी तो देखा मम्मी बगल में सो रही थीं । उसने प्यार से उठाकर पूछा…”मम्मी ! आप यहां क्यों सोई हैं ? पूर्णिमा जी ने झल्लाकर मुँह घुमाते हुए कहा..”कैसी बच्ची है, रात भर रोई और जगाई है, ऐसे तो नींद भी पूरी नहीं होगी और सिर दर्द हो जाएगा । नहीं सोना वहाँ मुझे ।

दोनों माँ- बेटे में बहस हो जाती इसी बीच नन्हीं परी के तेज रोने की आवाज़ सुनाई दी आस्था ने जाकर देखा तो पाया कि नींद में आराधना दूसरी ओर मुंह की हुई है और बच्ची गिरने को है । पूर्णिमा जी भी भागते हुए गयीं और खरी- खोटी सुना दी । कैसी माँ है, क्या ढंग सीखेगी ? बच्चे को छोड़कर खुद मजे से सो रही है और एक तो घर मे शांति का माहौल होना चाहिए तो मेला सा लगा रखा है ।

आस्था और उसकी मम्मी को समझते देर नहीं लगी कि तंज उन्हीं पर कसा जा रहा है । आराधना शोर सुनकर हड़बड़ा कर बैठी । वो समझ नहीं पा रही थी कि बच्चा होने के बाद भी सासु माँ का हृदय परिवर्तन क्यों नहीं हुआ ? चार- पांच दिन से यही चल रहा था । एक मौका नहीं छोड़तीं पूर्णिमा जी तंज कसने में । 

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अगले दिन बच्चे को नहलाना था । अनिमेष दोनो तरफ से बराबरी का भाव लेकर चलना चाह रहा था लेकिन पूर्णिमा जी कोई कसर नहीं छोड़तीं अपमान करने में । इस माहौल से अब अनिमेष को भी दुःख होने लगा था और मन- मस्तिष्क भी बेचैन रहने लगा था । बाथ टब लेकर पानी और डेटॉल डाल ही रहा था अनिमेष की माँ ने टोका…”काम जब सारे तुझे ही करने हैं तो ये मेला क्यों ? रसोई में दो लोगों की क्या जरूरत ?

अब आराधना आयी और अपनी माँ के हाथों में बच्चा सौंपकर नहलाने के लिए देते हुए पूर्णिमा जी से बोलने लगी…”बहुत बर्दाश्त कर रही हूँ मम्मी जी ! जब से कदम रखी हूँ तब से देखा है मैं और मेरे से जुड़ी कोई चीज आपको अच्छी नहीं लगती । जब नहीं पसन्द है कुछ भी तो यहां आकर क्यों हमे परेशान कर रही हैं, लौट जाइये आप अपने घर।यहां बहुत लोग हैं करने के लिए । पूर्णिमा जी ने पैनी नज़र अनिमेष पर डालते हुए कहा…”ट्रेनिंग अच्छी मिली है , देख ले ।

अनिमेष ने बोला…” अब तो मैं भी बर्दाश्त नहीं करूँगा मम्मी ! आप सिर्फ अपने आन में रिश्तों को खराब कर रही हैं। कोई चीज अगर गलत है, नहीं आती तो उसे प्यार से सिखाइये आप जब से आई हैं तंज कसे जा रही हैं । नई माँ है, उसे भी सीखने में समय लगेगा । पहले उम्मीद थी कि शायद आगे आप समझेंगी पर दिनों दिन आपका आन बढ़ता ही चला जा रहा है । जब हर चीज में समस्या है आपको तो नहीं आना चाहिए था । इतने सुंदर खुशी के माहौल में पता नहीं क्या सोचने में आप लगी हैं ।

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दोनों मेरे परिवार हैं आपलोग । बर्दाश्त करने का ये मतलब नहीं होता मम्मी की आप अपनी मनमानी करते रहिए और सामने वाला सिर्फ आपकी सुनता रहे । अब तक आपकी बहुत सुना हमलोगों ने पर अगर बच्चे को लेकर भी मन मे कड़वाहट है तो क्या जरूरत थी झूठा ढोंग रच के आने की ? मैं टिकट देख लेता हूँ आपका ।अगले दिनआप वापस चले जाइये ।

बेटे की झन्नाटेदार बातें सुनकर पूर्णिमा जी को मानो झटका लगा।उनके मन में ही पुलाव पकने लगे..वापस जाऊँगी घर तो पड़ोसी, रिश्तेदार तो सब पूछेंगे ही कि इतनी जल्दी क्यों आ गयी और तो और अनिमेष के पापा बोलेंगे और मेरी बेटी सोनी भी बोलेगी हमेशा की तरह तुम झगड़ालू हो तुम्हारे साथ किसी की नहीं बन सकती ।

इन्हीं सवालों और विचारों के उलझन में फंसते हुए पूर्णिमा जी  आराधना की मम्मी के हाथों से बच्ची को लेकर  झटपट मालिश करते हुए बोलने लगीं…” अरे बेटा ! नाराज क्यों होते हो ? टिकट क्यों कटवाओगे, दरअसल तुमलोगों की परेशानी की वजह से मैं भी नहीं सो पायी थी तो थोड़ा तनाव में कुछ भी मैं बोल दे रही थी ।

सब के सब एक दूसरे के चेहरे के भाव पढ़ने में लगे थे और टेढ़ी नज़रों से पूर्णिमा जी को मालिश करते  हुए देखकर सोच रहे थे..एक वापसी टिकट  इतना बदलाव ले आएगा सोचा नहीं था । पूर्णिमा जी दादी बनने का फर्ज अब बखूबी निभा रही थीं । तीन सालों बाद आज घर का माहौल इतना सामान्य और खुशनुमा महसूस हो रहा था । जो बर्षों आराधना अनिमेष नहीं कर दिखाए नन्हीं परी ने कर दिखलाया ।

मौलिक, स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

 अर्चना सिंह

VM

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