वजूद – पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आज विद्याधर पाण्डे जी के जीवन की बहुत बड़ी साध पूरी हुई। बहुत ही खुशी का दिन था। उनका बेटा सुबोध आइएएस अफसर बन गया था। उसकी प्रथम पोस्टिंग थी। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था,लग रहा था जैसे उनके पैरो में फिर से जान आ गई है। उनके सारे आशीर्वाद जो वे अपने बेटे को देते थे आज फलीभूत हो रहे हैं।

उन्होंने उत्साह में अपनी व्हील चेअर से उठने की  कोशिश की मगर उठ नहीं पाए। ऑंखों मे झिरझिरी तैर गई। रामू अभी कुछ देर पहले ही उनका सारा काम करके बाजार गया था। उसके जाने के बाद उन्हें सुबोध का फोन आया और वे अपनी खुशी अपने प्रभु श्रीराम के मंदिर जाकर उनसे बांटना चाह रहैं थे। विवश थे कुर्सी के सहारे, घर में बने भगवान के मंदिर में  गए और अपना माथा टेका, बेटे की खुशियों के लिए प्रार्थना की। आज उन्हें अपनी पत्नी रमा की याद आई, वे सोच रहैं थे अगर आज वो जीवित होती तो कितना खुश होती।

कुछ सोचकर उनकी ऑंखों में चमक आ गई थी, उन्होंने तुरन्त अपना फोन उठाया और अपनी लड़की को फोन लगाया, उनके मन की खुशी वे संवरण नहीं कर पा रहै थे। उनकी बेटी सुषमा, अपने ससुराल में बहुत खुश थी, इस खुशी की खबर सुनकर झूम उठी, उसने अपने पापा को भी बधाई दी। और पूछा भैया कब आ रहे हैं? पापा यह आपके और माँ के आशीर्वाद का प्रसाद है। अच्छा अब फोन रखती हूँ, भैया को भी फोन लगाकर बधाई देना है। उसने फोन रख दिया, विद्याधर जी को कुछ थकान लग रही थी, वे व्हील चेयर पर ही ऑंखें मूंदकर लेट गए। आज उन्हें अपना बीता हुआ जीवन याद आ रहा था। वे माध्यमिक विद्यालय में हेडमास्टर थे। पूरा जीवन ईमानदारी से नौकरी की।

बच्चों को ईमानदारी से पढा़या और जितनी कर सकते थे लोगों की मदद की पैसो के पीछे भागने के बजाय अपना सारा जीवन विद्यार्थियों के भविष्य को बनाने में लगा दिया। बिलकुल सादा जीवन था बाहरी आडम्बर और दिखावे से दूर सीधा सरल जीवन, बच्चों को भी वैसी ही शिक्षा दी। उनकी पत्नी रमा भी मितव्ययी थी और मेहनती थी। बच्चों को ऐसे संस्कार दिए कि सब उनकी प्रशंसा करते थे। सुषमा की स्नातक की पढ़ाई पूरी होते ही,घर बैठे अच्छा रिश्ता आया और उसकी शादी हो गई। लड़के वाले दहेज के विरोधी थे और वे सिर्फ कंकू और कन्या को घर ले गए। सुषमा ने भी अपने गुणों से सबका मन जीत लिया, वह संस्कारी लड़की थी और अपने ससुराल में उसकी

उजली छवि थी। सुबोध सुषमा से आठ साल छोटा था, बहुत मान मंगत के बाद हुआ था। पढ़ने में शुरू से बहुत होशियार था। जब वह बारहवीं कक्षा में पढ़ता था तब रमा जी का देहांत हो गया। सुबोध अपनी पढ़ाई  के साथ घर   का काम भी सम्हालता था। विद्याधर जी और सुबोध मिलकर अपना जीवन सुचारू रूप से चला रहै थे। इसी बीच एक दुर्घटना घटी विद्याधर जी सीढ़ियों से फिसल गए। ठंड बहुत ज्यादा थी और विद्याधर जी को पेरालिस़िस का अटैक आ गया।

सुबोध ने उनकी बहुत सेवा की। साथ ही अपनी पढ़ाई भी करता रहा। स्नातक की डिग्री मिलने के बाद उसने यूपीएससी की परीक्षा का फार्म भरा। खूब मेहनत की और परीक्षा अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण की। सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए वह कलेक्टर बन गया था। उसकी कल पोस्टिंग होने वाली थी और विद्याधर जी यही सोचकर खुश हो रहै थे।

सोचते सोचते उन्हें झपकी लग गई। रामू ने आकर उन्हें जगाया और खुशखबरी दी कि ‘सुबोध बाबा का फोन आया है वे आधे घण्टे में आने वाले हैं, मैं उन्हें लेने जा रहा हूँ।’ ठीक है तू जा, उसे जल्दी लेकर आ।’ सुबोध ने आकर अपने पापा के पैर छूए, विद्याधर जी ने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुबोध ने कहा- ‘पापा कल हमे वहाँ चलना है जहाँ मेरी पोस्टिंग है। कल एक स्वागत समारोह है जिसमें सबसे परिचय होगा।’ विद्याधर जी ने कहा -‘ऐसी हालत में मैं कहाँ जाऊँगा बेटा तुम्हे भी सम्हालने में परेशानी होगी।’

कैसी बातें कर रहे हैं पापा आपकी उपस्थिति के बिना मेरी खुशी अधूरी है। मैंने पूरी व्यवस्था करली है । आपको कोई परेशानी नहीं होगी। दूसरे दिन स्वागत समारोह में सुबोध अपने पिताजी के साथ गया। वहाँ शहर के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।विद्याधर जी को देखकर सब कह रहै थे ये आदरणीय सुबोध जी के पिताजी है, यह सुन सुन कर विद्याधर जी की प्रसन्नता बढ़ती जा रही थी। सरस्वती वन्दना के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

सुबोध के साथ उनके पिताजी का भी सम्मान किया गया। उन्हें भी श्रीफल और शाल भेंट की। सभी प्रबुद्ध व्यक्तियों के उद्बोधन के बाद विद्याधर जी से भी अनुरोध किया कि वे कुछ कहैं। उन्होंने कहा आज सुबोध की मेहनत ने उसे यह मुकाम दिलाया है। मुझे प्रसन्नता है कि उसने मेरे आशीर्वाद को सार्थक कर दिया, मैं उसे हमेशा यही कहता था कि बेटा तुम उन्नति के उस शिखर पर पहुँचो जहाँ मेरा परिचय लोग यह‌ कहकर दे, कि मैं उस सुबोध का पिता हूँ

जिसने अपनी लगन से यह उच्च स्थान प्राप्त किया है। मेरा परिचय उसके नाम से हो। मुझे मेरे बेटे पर गर्व है।’ उनका वक्तव्य सुनकर हॉल में तालियाँ गूंज रही थी। जब सुबोध से कुछ कहने के लिए कहा गया तो वह बोला-‘मेरे पापा का यह बड़प्पन है कि वे मुझे यह मान दे रहे हैं।

कोई कुछ भी कहै मेरा परिचय यही है कि मैं आदरणीय विद्याधर पाण्डे जो एक सफल ईमानदार शिक्षक रहे हैं।जिन्होंने कई बच्चों का भविष्य संवारा और मुझे इस काबिल बनाया, का बेटा हूँ । मेरा वजूद मेरे माता पिता से है और मैं उनका बेटा हूँ यही मेरा परिचय है कहते हुए वह भावुक हो गया और उसने अपने पिता के चरणों में प्रणाम किया। सबने तालियाँ बजाकर उनका अभिवादन किया और फोटोग्राफर ने उस पल को कैमरे में कैद कर लिया। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

 

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