वह कौन था कहां से आया था कोई नहीं जानता था। एक दुबला पतला लगभग ग्यारह–बारह साल का बच्चे को ट्रक के क्लीनर के साथ देखा गया । क्लीनर उस बच्चे के साथ बहुत ही अभद्र व्यवहार कर रहा था।
गांव के बाहर ढाबे पर खडे ट्रक के क्लीनर का व्यवहार बच्चे के साथ लोगो ने देखा तो पूछ ताछ शुरू की। क्लीनर उसे अपना रिष्तेदार बता रहा था जबकि बच्चा कुछ डरा हुआ लोगों को देख रहा था। वह उस क्लीनर के साथ जाना नहीं चाहता था। बच्चे के शरीर पर चोटों के निशान थे कपडे फटे हुये थे गले में काला धागा था जिसमें किसी देवी का स्टील का लाकेट था। उसकी हालत बहुत ही दयनीय थी यहां तक की वह कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था।
बच्चे की हालत देखते हुये लोगों ने गांव के प्रधान को सूचना दी। प्रधान जी उसी समय ढाबे पर पहुचें उन्होंने बच्चे के सर पर हाथ रखा बच्चा प्रधान जी के चिपक कर न में सिर हिलाने लगा। प्रधान जी ने क्लीनर से कहा कि वह थोडी देर रूके पुलिस आ रही है उसके बाद ही वहां से जाये। अब क्लीनर डर गया ापहले तो हां बोला और फिर नजरे बचा कर वहां से भाग निकला।
जैसे ही लोगो का ध्यान उधर गया तो समस्या यह हो गई रात का समय है बच्चे की हालत ठीक नहीं है और बच्चा अपने बारे में कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है। उसे कहां छोडा जाये। तत्कालिक तौर पर प्रधान जी ने उसे अपने घर ले आये और पुलिस में षिकायत दर्ज करवा दी। जी टी रोड पर जिस रूट से ट्रक आया था सभी थानों में षिकायत दर्ज करवा दी गई कि अगर किसी बच्चे की गुमषुदगी की रिपोर्ट आये तो सूचना दी जाये।
कई दिन हो गये लेकिन बच्चे को ढूढने कोई नहीं आया। लेकिन प्रधान जी के घर के बच्चों के साथ धीरे धीरे घुलने मिलने लगा। अब बच्चा थोडा साफ सुथरा रहने लगा लेकिन अपनों से दूरी ने उसे अभी तक सामान्य नहीं किया था। यहा तक कि वह अभी तक अपना पता बताने की हालत में नहीं था। लेकिन वह बच्चों से ज्यादा जानवरों के साथ खेलता था। वक्त बीतता जा रहा था लेकिन वह अभी तक पूरी तरह सामान्य नहीं हो पा रहा था लेकिन अब उसमें इतना बदलाव जरूर आ गया था कि वह नये लोगों से डरता नहीं था। वह खुद ठीक से बोल नहीं पाता था इसलिये स्कूल नहीं जाता था और स्कूल की वजह से बच्चों के साथ उसका वक्त कम बीतता था।
पिछले कई दिनों से वह घर में पले कुत्ते के साथ ज्यादा समस देने लगा था। और जब कुत्ते के बच्चे हुये उनको उठा लाया और अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त कुत्ते के बच्चों के साथ बिताने लगा। किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वह उनसे बातें करता गाोद में लिये रहता। यहां तक कि लोगों ने उसे अब पागल या मंदबुद्यि कहना शुरू कर दिया। लेकिन यह भी कहना षुरू कर दिया था कि कुत्ते के बच्चों को छूने के बाद अच्छे से हाथ धो कर ही घर के भीतर का सामान छूना। उसका मुंह मत चूमना। घर में सब नमाज कुरान करते है । इसलिये वह कुत्ते के बच्चों को रोज नहला कर खुद नहा धो कर घर में आता। कुत्ते को छूने के बाद वह घर के भीतर आता भी था तो दूर से ही अपनी फरमाइषें करता था।
घर में सभी जानते थे कि उस बच्चे को नमाज या कुरान के लिये जोर नहीं दिया जा सकता इसलिये उसके लिये कोई पाबन्दी भी नहीं थी।
उस दिन मस्जिद में खाना भेजने के लिये घर में कोई व्यक्ति नहीं था वह दादी को परेषान देखकर बोला ‘दादी हम नहाये हैं चाचा को खाना दे आब‘ यह पूरा वाक्य सुनकर सबको बडी खुषी हुई। वह खाना लेकर गया और मस्जिद के दरवाजे पर से आवाज दिया ‘चाचा खाना‘ और खाना पकडा कर वापिस आ गया।
आज की इस हरकत ने सभी में उम्मीद जगा दी थी कि इसको कुछ याद आ रहा है। फिर उसके जाने बिना सबने उसकी हरकत पर नजरे रखना शुरू कर दिया। और उसकी और कुत्ते के बच्चों की बात और हरकत सुनी और देखी तो एसा लगा जैसे वह जानवरो का एक प्रषिक्षक हो। जैसे ही वह उनसे कहता कि ‘देखो दुष्मन घेर लिये है‘ कुत्ते के बच्चे आक्रामक मुद्रा में आ जाते। उनसे बोलता खामोषी से चलो तो वह दुबक कर चलने लगते एसे ही न जाने कितनी मुद्राएं उनको सिखाईं।
इन सबके बाद भी वह मेन रोड पर जाने से डरता था । ट्रक को देखते ही दुबक जाता। रमजान का महीना था ईद के लिये सभी के कपडे बन रहे थे पहली बार उसने अपने लिये नये कपडे की जिद की थी।
फिर अचानक एक दिन प्रधान जी के पास पहुचा और उसने अपने घर का आधा अधूरा पता बताया। प्रधान जी ने उसे लिख लिया और उस पते पर एक जवाबी लिफाफा डाला जिसमें बच्चे के बारे में कुछ न लिख कर सामान्य बात लिखी जो कि बच्चे ने बताई। ईद के दिन कई लोग आये इत्तेफाक से वह बच्चा उन लोगों के सामने पड गया। उन लोगों ने बताया कि यह उनका बच्चा है और खो गया था। पुलिस कारवाई के बाद उस बच्चे को उसके घर भेजा गया क्योकि उसे अब यहां रखने का कोई औचित्य नहीं था। प्रधान जी ने कई जवाबी पोस्टकार्ड पर पते लिखकर बच्चे को दिया कि अगर कोई भी समस्या हो तो इस पर काले रंग से क्रास का निषान बना के पोस्ट के लाल डिब्बे में डाल देना हम मिलने आ जायेंगें। और सब ठीक हो तो सादा ही भेज देना हम समझ जायेंगे कि सब ठीक है।
उस बच्चे को तीन साल तक इस गांव मं रहने के कारण आंसुओ से पूरे गांव ने विदा दी। उसके जाने के कुछ दिन बाद ही कुत्ते के वह बच्चे उसके बिछोह में मर गये। आज कई साल हो गये न तो उसका कुछ पता चला न ही उन पोस्ट कार्ड का। लोग कहते है वह पागल था लेकिन वह पागल नही था वह हालात का मारा था।
डा. इरफाना बेगम
नई दिल्ली