Moral stories in hindi : सीमा बहुत घबराई हुई थी।ट्रेन लेट होती चली जा रही थी। नौ बजे पहुँचने का टाइम था पर 11 बज रहे थे रात के, अभी भी स्टेशन दूर था। इतनी रात में वह अकेली कैसे घर जाएगी ? स्टेशन से उसका घर काफी दूर था। सीमा की उम्र कोई पैंतीस वर्ष होगी। दो साल पहले उसके पति की बस दुर्घटना में मुर्त्यु हो गयी थी।
उसका दस वर्ष का बेटा नानी के पास दूसरे शहर में रहता था। उससे मिल कर वह वापिस आ रही थी।यहाँ वह एक कमरे का घर किराये पर ले कर रह रही थी।वह एक टीचर थी। उसने सोचा था ट्रेन समय पर पहुँच जायेगी और वह घर चली जाएगी। दूसरे दिन सुबह ही उसको स्कूल जाना था।पर यह तो बहुत रात हो रही थी। आज तक वह इतनी रात में अकेली नहीं निकली थी।
खैर, किसी तरह ट्रेन साढ़े बारह बजे स्टेशन पहुँची। जल्दी जल्दी वह ट्रेन से उतरी। और स्टेशन के बाहर आई। काफी चहल पहल थी। हिम्मत करके वह एक टैक्सी में बैठ गई जिसमें पहले से कुछ लोग बैठे थे। टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी दौड़ा दी।
रास्ते मे सड़क सुनसान थी। नवंबर का महीना था। सीमा को बहुत डर लग रहा था। पर वो चुप- चाप मन ही मन में भगवान् का नाम जप रही थी। उसका घर पास आ गया था।टैक्सी ड्राइवर से उसने रुकने को कहा।
ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी। सीमा टैक्सी से उतरी, पैसे दिये। उसके साथ दो तीन लोग और भी उतरे। यहाँ से उसके घर का पैदल का रास्ता था। पर सड़क पर घोर सन्नाटा था। रात के डेढ़ बजे थे। बस कुछ कुत्ते भौंक रहे थे जो सीमा को देख कर उसकी और झपटे। सीमा बुरी तरह डर गई। उसके पैर आगे नहीं बढ़ रहे थे। वह दुबक कर खड़ी हो गई।
“हे भगवान्! अब तू ही मदद कर।” मन ही मन उसने प्रार्थना की। तभी एक लगभग तीस वर्ष का सभ्य सा युवक, जो शायद उसके साथ ही टैक्सी से उतरा था। उसके पास आ कर बोला, “मैम,आपको कहाँ जाना है? मैं यहीं दूसरी गली में रहता हूँ।
अगर आप कहें तो मैं आपको घर तक छोड़ दूँ। रात बहुत है और आप डरी हुई हैं।” सीमा सोचने लगी। क्या उसको इस अजनबी पर विश्वास करना चाहिए? पर दूसरी ओर उसे रात के सन्नाटे और कुत्तों से डर लग रहा था। सोचा,”देखने में तो सभ्य लग रहा है”।”ठीक है, चलो भैया, मुझे घर तक पहुँचा दो। तुम्हारी बहुत आभारी हूँगी।”
वह युवक उसके साथ चल पड़ा। रास्ते में वह दोनों एक दूसरे से कुछ न बोले। एक लंबी गली के बाद सीमा का घर आ गया। ” बस भैया, मेरा घर यह रहा। “बहुत धन्यवाद आपका” कहकर उसने अपने घर का ताला खोला और अंदर चली गई।
युवक मुस्कुरा कर वापिस चला गया। सीमा घर आ कर सोच रही थी कि आजकल के दौर में भी इतने अच्छे लोग हैं जो बिना किसी स्वार्थ के लोगों की सहायता करते हैं।
वह युवक चाहता तो उसके अकेलेपन का फायदा उठा सकता था। पर उसने नि:स्वार्थ सीमा की सहायता की। धन्य हैं वह माता पिता जिन्होंने इतने अच्छे संस्कार दिये अपने बेटे को।
लेखिका : महजबीं