वह आई थी… ” – डॉ. सुनील शर्मा

पर्वतीय क्षेत्र में सुरम्य पहाड़ियों के बीच एक छोटे से अस्पताल में मेरी पहली नौकरी लगी. दो रैजिडेंट डॉक्टर और तीन विदेशी नर्सों के अलावा आर्मी से रिटायर्ड ब्रिगेडियर साहब इस सुदूर क्षेत्र के गांववासियों तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध थे. विभिन्न विशेषज्ञ भी शहर से आकर अपनी सेवाएं प्रदान करते थे. चिकित्सालय की बिल्डिंग किसी रिसॉर्ट से कम न थी. हमारे रहने तथा खान-पान का इंतजाम भी ठीक था. काम करने की ललक तो थी ही.

दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार ने इस सुदूर इलाके में सुविधाओं से परिपूर्ण इस चिकित्सालय का निर्माण कराया था.असल में पंजाब के किसी गांव में चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. यहां अस्पताल बनवाकर उन्होंने आस पास के दस गांव भी गोद ले लिए थे, जहां चिकित्सा सुविधाओं को पहुंचाने के अलावा, महिलाओं के लिए दरी बनाना तथा सिलाई स्कूल की व्यवस्था भी की थी. स्वच्छ पानी की उपलब्धता तथा समय समय पर सड़कों का रखरखाव भी अपने ज़िम्मे ले लिया था. अमेरिका, कनाडा तथा युरोपिय देशों से विभिन्न योजनाओं के तहत पैसा आता था.

 

हां तो मैं अस्पताल के बारे में बता रहा था. एक दिन चारपाई पर लाद कर एक बीस बाइस वर्ष की बेहोश युवती को लेकर आए. कई दिन से तेज़ बुखार था. दाई से प्रसव कराया था. बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. रक्त में सैप्टिक हो गया था. हम सभी ने अपना पूरा ज़ोर लगा दिया. शहर से आए विशेषज्ञ भी उचित परामर्श दे गए. लेकिन इनफैक्शन इतना अधिक था कि बुखार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. हम सभी ने दिन रात एक कर दिया. बुखार कम हुआ तो कुछ उम्मीद जगी, लेकिन युवती ने तीसरे दिन शाम को बेहोशी की स्थिति में ही दम तोड़ दिया. पढ़ाई के बाद मैंने शायद यह पहली मौत देखी थी. दुख तो सभी को था लेकिन मैं कुछ अधिक परेशान रहा.

 

रात को मैस से खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में सोने चला गया. थका हुआ तो था ही, जल्दी ही नींद आ गई. रात को थोड़ा ठंडा बढ़ने से मेरी नींद खुली. बिना कुछ ओढ़े टांगें सिकोड़ कर ही सो गया था. मैंने टांगें फैलाकर कंबल खींच कर ओढ़ने की कोशिश की तो देखा, वह मेरे पैंताने बैठी मुझे अपलक देख रही थी. मैंने घबराकर चिल्लाने का प्रयत्न किया लेकिन गले से आवाज़ ही न निकली. मैं उठकर दरवाज़े की ओर भागा. लेकिन लड़खड़ाकर गिर गया. वह धीरे धीरे हवा में विलीन हो गई.

नींद खुली तो डर के मारे उस ठंड में भी मैं पसीने से तरबतर था. सुबह नाश्ते पर मैंने सभी को रात की बात बताई. ब्रिगेडियर साहब की पत्नी ने कहा ‘ वह तुम्हें धन्यवाद कहने आई थी, डियर ‘ 

 

– डॉ. सुनील शर्मा

गुरुग्राम, हरियाणा

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!