जोर-जोर से शोर मच रहा था….. वोट ४ हरिया का उद्घोष हों रहा था । प्रचार में कोई कमी ना आए , इसलिए हरिया घर-घर जा कर अपना पर्चा बाँट रहा था ।
जैसें मैंने अब तक आपका ध्यान रखा है आगे भी रखूँगा । इसलिए अपना क़ीमती वोट मुझें ही दे । सत्ता धारी के आगे सब लोग अपने आपको असहाय महसूस कर रहे थे ।
जो वादे पिछली बार किए थे….. वो ही पूरे नहीं हुए ! तो नए का तो सवाल ही नहीं । लेकिन ऐसे तानाशाह के आगें कुछ कहने का क्या फ़ायदा ??
इन्हें तो बस अपना काम निकलवाने से मतलब हैं । सब उसकी बाते चुप सुन रहें थे क्योंकि वो सब तय कर चुके थे कि उन्हें क्या करना है ।
कुछ दिनों बाद जब वोट देने का समय आया तो सब ने अपनी भलाई का सोचते हुए दूसरी पार्टी के उम्मीदवार को अपना मतदान दिया ।
हरिया की जगह दूसरा उम्मीदवार चुन उन्होंने अपना जवाब दे दिया । जो हमे , हमारी तकलीफो को समझेगा वहीं हमारा प्रतिनिधि होगा ।
जब चुनाव का परिणाम आया तो हरिया स्तब्ध रह गया कि आखिर मैं हार कैसे गया ?? तभी वहाँ खड़े लोगों ने बोला आपने आज तक हमारे लिए ,
हमारे मोहल्ले के लिए किया ही क्या हैं ??? बस अपना नाम बनाया है और अपनी झोली भरी है । इसलिए इस बार हमने दूसरे को चुना हैं ।
हमने आपको चुन मौका दिया था , लेकिन आपने अपना मान स्वयं खोया हैं । ये सब सुन हरिया दूसरों की तो क्या …. अपनी ही नज़रों से गिर गया ।
काश मैं वो वादे पूरे कर पाता जो मैंने इनसे किए थे …. तो आज ये मान यूँ नज़रों से गिर चकनाचूर ना होता ।
#आँखो से गिरना
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति