नम्रता को जैसे ही अपने रिश्तेदारों से मालूम हुआ कि दक्षेश की शादी पक्की हो गई है। लड़की का पिता उस शहर का धनी व्यक्ति है। शादी में उसे इतना दान-दहेज़ मिलेगा कि उसका घर धन-दौलत और बेशकीमती सामानों से भर जाएगा। घर के पुरुषों ने लड़की पसंद कर ली है। सिर्फ महिलाओं को देखना बाकी रह गया है। उनके द्वारा लड़की पसंद कर लिये जाने के बाद शादी के लिए लड़की वालों को हरी झंडी दिखा दी जाएगी।
इतना सुनते ही नम्रता मानो आकाश से धरती पर गिर पड़ी हो। उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उसकी आंँखों के आगे अंधेरा छा गया। आंँखों में छलछला आए आंँसुओं को पोंछकर वह उठ खड़ी हुई। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंँच गया। वह अपने होठों में बुदबुदाई , ” वाह!… मेरी इज्जत के साथ खिलवाड़ करके धन-दौलत व दहेज के लालच में वह दूसरी लड़की से शादी करना चाहता है।”
दक्षेश अपनी शादीशुदा बहन के घर अक्सर आया-जाया करता था, जो उसके पड़ोसी शहर में ही था। उसके बहनोई अपने व्यवसाय के सिलसिले में प्रायः बाहर ही रहते थे।
एक बार जब वह अपनी बहन के जेठ की लड़की की शादी में गया हुआ था तो उस शादी में उसके बहन की देवरानी के माइके से एक लड़की आई हुई थी जो देवरानी की रिश्तेदारी में पड़ती थी। उसके रंग-रूप, तीखे नाक-नक्श, शिष्टता में सराबोर आचरण और उसके शानदार व्यक्तित्व ने उसके दिल में खल-बली मचा दी थी। उसने तुरंत अपनी बहन से उसका नाम भी पूछ लिया था। वह नम्रता से जान-पहचान बढ़ाने के फिराक में लग गया। वह शादी के घर में उसके निकट जाने के मौके ढूढ़ने लगा। किसी न किसी बहाने उसके इर्द-गिर्द मड़राता रहता था।
उसकी नम्रता से बातचीत करने की तमन्ना रिसेप्शन पार्टी के दिन पूरी हो गई।
उसके जीजा ने दक्षेश को खास तौर पर पार्टी में जिम्मेदारी सौंपी थी कि आमंत्रित लोगों को किसी प्रकार की कमी न हो, उसकी बेइज्जती न हो, उसका ख्याल रखना है।
रात्रि में जब पार्टी चल रही थी तो अचानक उसने देखा कि मिठाई कम थी जबकि भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। ऐसी स्थिति में दक्षेश घबरा गया। पाॅट की मिठाइयाँ इतनी तेजी से घट रही थी थोड़ी देर के बाद ही उसको समाप्त हो जाने की पूरी संभावना थी। बाजार वहाँ से कई किलोमीटर की दूरी पर था। उसमें भी मिठाई की दुकानों को बंद होने की संभावना थी। हैरान-परेशान होकर वह तेज गति से घर के अंदर चला गया, किन्तु वहाँ पर उसके जीजा नहीं थे।
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घबराहट और परेशानी में देखकर नम्रता के मुंह से अनायास ही निकल गया, ” क्या बात है?… क्या हुआ है?…”
जब उसने बताया कि मिठाइयाँ कम पड़ रही है और पार्टी में भीड़ बढ़ती जा रही है।
तब नम्रता ने कहा कि पूजा-कक्ष में एक पाॅट में मिठाई भर कर रखी हुई है, शायद ऐसी ही स्थिति के लिए दिन में ही कैटरर ने रख दी थी। इसके अलावा शादी में आमंत्रित रिश्तेदारों द्वारा लाई गई भी काफी मिठाइयाँ पड़ी हुई है। किसी चीज की कमी नहीं होगी, आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।
उसी वक्त उसके साथ वह पूजा-कक्ष में गई और उस मिठाई वाली पाॅट को उठाकर उसके हाथों में पकड़ा दिया। इस दरम्यान उसकी हथेली के स्पर्श से दक्षेश की देह में मानों बिजली का करेंट दौड़ गया। उसने कुछ कहा नहीं किन्तु तेज गति से मिठाई का पाॅट लेकर पार्टी-स्थल की ओर रवाना हो गया जो घर से मुश्किल से बीस-तीस मीटर की दूरी पर था।
इस छोटी सी बातचीत से उसके संपर्क का शुभारंभ हो गया।
दो-तीन दिनों के बाद सारे रीति-रिवाजों व रस्मों के समाप्त हो जाने के बाद लगभग सभी रिश्तेदार चले गए, कुछ नजदीकी लोग ही बच गए थे, वे लोग भी जाने के लिए उत्सुक थे किन्तु उसके जीजा जी के अनुरोध पर वे ठहर गए थे। ठहरने वालों में नम्रता भी थी।
उस दिन शाम में छत पर वह मोबाइल से किसी के साथ बातें कर रही थी तो वह भी छत पर पहुंँच गया, फिर चहलकदमी करता हुआ जब वह उसके समीप पहुंँचा तब उसने मोबाइल पर बातचीत बंद कर दी। उसने कहा भी कि बातचीत कीजिए उसको कोई एतराज नहीं है। मन नहीं लग रहा था, इस लिए वह ऊपर चला आया।
” कोई बात नहीं है… वैसे भी मेरी बातचीत समाप्त हो गई है” मोबाइल बंद करते हुए कहा फिर उठकर खड़ी हो गई।
क्षण-भर बाद ही उसने कहा, ” बैठिए न!…”
” मैं यों ही चला आया… नीचे बहुत गर्मी है।”
वहीं पर रखी हुई कुर्सी पर बैठते हुए दक्षेश ने पूछा,
“आप कहांँ तक पढ़ी हुई हैं? “
” मैंने स्नातक की परीक्षा दी है… रेजल्ट अभी तक नहीं निकला है।”
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फिर उसने उसके पिताजी, भाइयों और उसके व्यवसाय के संबंध में भी जानकारी ली।
बातचीत के माध्यम से पता चला कि वह एक साधारण घराने से ताल्लुक रखती है। उसकी आर्थिक स्थिति कामचलाऊ है। उसके पिताजी छोटा-मोटा व्यवसाय करते हैं, जिससे उसके परिवार का गुजर-बसर होता है। उसके दोनों छोटे भाई मिडिल स्कूल में पढ़ते हैं। उसकी मांँ की महामारी में मृत्यु हो गई थी।
दक्षेश ने उसका पता और मोबाइल नम्बर अपने पाॅकेट डायरी में लिख लिया।
अगले दिन नम्रता भी अपने घर चली गई।
अब समय-समय पर दोनों में मोबाइल द्वारा वार्ता होने लगी।
दक्षेश और नम्रता के संबंध को घनिष्ठ बनाने में मोबाइल ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की।
इसका नतीजा यह निकला कि दोनों एक-दूसरे से मिलने के लिए छटपटाने लगे। नम्रता तो अकेले घर छोड़कर नहीं निकल सकती थी।
अंत में इसका रास्ता दक्षेश ने ही निकाला। वह कोई बहाना बनाकर पहुंँच गया नम्रता के घर। दूर की रिश्तेदारी तो थी ही उसकी बहन की ससुराल से।
उसने सीधे-सादे व भोले-भाले उसके पिता घनश्याम से राजगृह घूमने की अनुमति ले ली, शाम में लौट आने की शर्त पर।
इसी नीति के तहत दोनों सैर-सपाटा करने लगे, कभी बोधगया, कभी गया और कभी ककोलत के जल प्रपात का आनन्द दोनों उठाने लगे। कभी-कभार रात में होटल में भी ठहरने की नौबत आ जाती या सोची-समझी चाल के अंतर्गत ठहरते कहना बहुत मुश्किल था। पूछने पर बस नहीं मिलने या देर होने के कारण ट्रेन छूट जाने का वास्ता दे देते उसके पिताजी को बहुत होशियारी से।
इस घुमक्कड़ी के दरम्यान प्राकृतिक हरी-भरी वादियों में एक-दूसरे को जीवन-साथी के रूप में जिन्दगी व्यतीत करने का सपना भी देखा था। दोनों ने सात जन्मों तक साथ-साथ जीने मरने की कसमें भी खाई थी। दो-चार दिनों तक घनिष्ठ अंतरंगता का सुख भी प्राप्त करने में दोनों ने किसी प्रकार का संकोच नहीं किया था।
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दक्षेश ने नम्रता को सिखा-पढ़ाकर तालीम कर दिया था कि उसके साथ नजदीकियांँ बनाने की बातें किसी को नहीं बताएगी किन्तु नम्रता ने कहा कि उसने उसके साथ शादी करने का वचन दिया है, वह आश्वासन उसी शर्त पर देगी, जब वह अपना वचन निभाएगा। उसे हर हाल में उसके साथ शादी करनी ही होगी। यह सुनते ही दक्षेश के चेहरे पर गंभीरता की लकीरें उभर आई थी।
नम्रता ने व्हाट्सऐप पर कुछ अंतरंग गतिविधियों के फोटोग्राफ्स भी सेव कर लिये थे।
इस तरह दक्षेश उसके साथ रंगरेलियांँ मनाकर उसके यहाँ से चला गया था।
रोती-विलखती नम्रता अपने पिता घनश्याम के पास पहुंँची। उसने अपने पिताजी से माफी मांगते हुए दक्षेश के साथ अपने संबंधों को उजागर किया। उसने कहा कि वह उसके झांसे में आ गई।
पहले तो उसने उसको डांँटते-फटकारते हुए कहा कि उसने उसके सम्मान पर दाग लगाया है, फिर दो-तीन तमाचे जड़ दिए उसको।
उसने गुस्से में कहा कि अगर वह लड़का अपने वचन से मुकर गया तो सोचा है कि क्या हो सकता है।
नम्रता फफक-फफक कर रोने लगी।
थोड़ी देर के बाद उसको अफसोस भी होने लगा कि आखिर उसकी बेटी की भी क्या गलती है उसमें। उसकी(घनश्याम) भी तो गलती है, एक तरह से जाने-अनजाने में वह भी शामिल है।अपनी बेटी की शादी की उम्र हो जाने के बाद भी वह इस ओर ध्यान नहीं दे सका आर्थिक अभाव के कारण।
फिर भी उसने हिम्मत जुटाई और आनन-फानन में एक मध्यस्थ टाइप के शुभचिंतक को लेकर पहुंँच गया दक्षेश के घर, जो बगल के शहर में था।
दोनों को देखते ही दक्षेश के चहरे का रंग उड़ गया। वह अपना सिर नीचे किए हुए वहां से खिसक गया।
घनश्याम अपने शुभचिंतक मित्र के साथ लड़के के पिता शालिग्राम से मिला। वह उस शहर का प्रतिष्ठित व्यवसायी था।
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पहले तो उनलोगों को देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि ‘क्या बात है?’ किन्तु घनश्याम के द्वारा अपने पुत्र के कारनामों का बखान सुनकर वह गुस्से में तिलमिला उठा क्योंकि दूसरी लड़की के साथ दक्षेश की शादी की बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी। लेन-देन की बातें भी लगभग फाइनल हो चुकी थी।
उसने खिसियाते हुए कहा, ” ऐसा हो ही नहीं सकता है… मेरा बेटा चरित्रवान और शिष्ट आचरण का है।”
“आपको विश्वास नहीं हो रहा है, कोई बाप अपनी बेटी के संबंध में ऐसी बातें शौक से नहीं कहता है, अवसादग्रस्त होने के बाद ही बोलता है… आप मेरी बेटी से ही विडियो काॅल करके बातें कर लीजिए कि आपके पुत्र ने क्या किया है, दोनों के बीच कैसे संबंध थे। “
विडियो काॅल नम्रता को लगाया गया।
विडियो काॅल में नम्रता ने शालिग्राम का अभिवादन किया फिर कहा,” हम दोनों में प्यार था। हमलोग समय-समय पर मिलते-जुलते रहते थे। उसने वचन दिया था कि शादी वह हर हालत में उसी से करेगा… मेरी इज्जत मटियामेट करके अब वह दूसरी लड़की से शादी करना चाहता है, जो मैंने कहा है वह बिलकुल सत्य है!… मेरे पास प्रमाण व्हाट्सऐप में सुरक्षित है।… बुलाइए मैं उससे भी बातें करना चाहती हूँ। “
थोड़ी देर में दक्षेश भी पहुंँच गया, मोबाइल को दक्षेश के हाथ में दिया गया, तब नम्रता ने कहा,
” आज दहेज के लालच में क्यों वादा-खिलाफी करना चाहते हो दक्षेश? मेरे साथ।. भूल गए अपने संवाद जो तुमने कहा था कि वह तुम्हारे बिना जिन्दा नहीं रह सकता है, तुम्हारे बगैर जीने का कोई मतलब नहीं है… जब शादी करेगा तो तुमसे ही…”
“चुप रहो!… मैं कुछ नहीं जानता, जो बातें करनी है पापा-मम्मी से करो, जो वे कहेंगे वही मैं करूंँगा। ”
लड़के बड़े भाई ने कहा कि उसका खांदान श्रेष्ठ है कि बाजार में उसका रुतबा है कि शादी का डिसीजन बहुत बड़ा डिसीजन होता है कि आजकल लड़के-लड़कियों को साथ-साथ घूमना-टहलना, साथ-साथ फिल्में देखना आम बातें है कि जवानी के दिनों में अक्सर ऐसी बातें हो जाती है कि इसमें कोई खास या अनर्थ वाली बातें तो नहीं है… “
” चुप रहिये!… आप जैसे ही लोग गलत कार्यों को बढ़ावा देकर समाज की गरिमा पर दाग लगा रहे हैं ” घनश्याम ने उत्तेजित होकर कहा।
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साथ में आए मध्यस्थ टाइप के शुभचिंतक ने समझाते हुए कहा,” आपलोगों की ये आपसी बात है… दोनों की इसमें कच्ची उम्र की नासमझी है… इतना तो स्पष्ट हो गया कि दोनों में संबंध थे… इंसानियत और मानवता यही है कि आप दोनों समधी बन जाइए… और इन बातों पर धूल डाल दीजिए, ऐसा नहीं होने पर दोनों के खांदान पर कलंक का टीका लगेगा, मान-मर्यादा धूल में मिल जाएगी।… हम लोगों की राय नहीं मानने पर इंसाफ के लिए अगर कोर्ट-कचहरी की शरण में जाना पड़े तो उस पर भी विचार कर सकता हूँ। क्योंकि सारे सबूत नम्रता के पास मौजूद है… वैसे हमलोग कोर्ट-कचहरी के झंझट में नहीं पड़ना चाहते हैं। “
” बिलकुल ठीक कहा मेरे साथी ने। “
कुछ पल तक वातावरण में सन्नाटा छाया रहा
उसका बड़ा बेटा कुछ बोलना चाह रहा था, उसको तल्ख आवाज में ‘चुप रहने’ की हिदायत देकर , लोगों की बहसों व दलीलों को सुनने के पश्चात निर्णय सुनाया,
” मैं महिलाओं द्वारा लड़की देखने के प्रोग्राम को कैंसिल(रद्द) करता हूँ।… आपलोग निश्चिंत रहिए… किसी को भी किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने का हक नहीं है… चाहे वह अमीर हो या गरीब… मैं अपने पुत्र की शादी आपकी पुत्री से करने के लिए तैयार हूँ, मैं शीघ्र ही शादी संबंधी बातें करने के लिए आपको खबर करूंँगा… निश्चिंत रहें, चिंता न करें। “
जब उसके पिता ने वीडियो काॅल करके इस खबर को सुनाया तो नम्रता का चेहरा हर्ष से खिल उठा।
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छठवीं बेटियाँ जन्मदिवस प्रतियोगिता
चौथी कहानी
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
©® मुकुन्द लाल
हजारीबाग(झारखंड)