बचपन में थोड़ा बड़ा हुआ तो मां मुझे खरीददारी के लिए बाजार भेजने लगी थी।सब्जी लाना हो फल लाना हो मां अब मुझे ही कहती और जितने रुपए देती पूरा हिसाब पूछती और फिजूल खर्ची उसके बर्दाश्त के बाहर थी।पहले पहल तो बहुत बुरा लगता था मुझे बाजार जाना और सब्जी मंडी में घुस कर सब्जी खरीदना और फिर गिन गिन कर एक एक पैसे का हिसाब देना…इतना नीरस काम!! लेकिन धीरे धीरे अपने दोस्तों की संगत से सब्जी और मां के हिसाब किताब में जब मैने अपना भी हिसाब किताब बिठाना सीख लिया समझ लीजिए सब्जी खरीदने जाना मेरी जिंदगी का सबसे स्वादभरा काम हो गया था।
अब तो मैं उत्सुकता से मां के सब्जी लाने के आदेश की प्रतीक्षा करता रहता मां चकित भी हुई और खुश भी कि चलो धीरे से जिम्मेदारी तो आई लड़का सुधर रहा है घर के कामों में रुचि ले रहा है।
उस दिन भी जैसे ही मां ने रुपए और थैले देते हुए मुझे बाजार से सब्जी और फल लाने को कहा मैं उछलते हुए बाजार की ओर चल पड़ा।
सबसे पहले अपने लिए गटागट बुढ़िया के बाल संतरे वाली टॉफियां और गट्टे खरीदे फिर जो सब्जियां मां ने कहा था वे सब खरीद कर घर वापिस आ गया।वापसी में आलू प्याज के दाम में अपनी टाफियो का हिसाब किताब मन ही मन फिट कर लिया।
घर आते ही मां को सब्जी और हिसाब किताब बता दिया।इतने महंगे आलू प्याज हो गए हैं वो भी इन दिनों सुनते ही मां ने बहुत अचरज से कहा तो मैंने भी मासूमियत से हां मां वही तो कह मां को हमेशा की तरह भरोसा दिला दिया था।
तभी मेरे दोस्त की मां सब्जी खरीद कर वापिस आ रही थीं रास्ते में हमारा घर देख आ गईं अरे दीदी आज तो मजा ही आ गया आज आलू प्याज इतने ज्यादा सस्ते मिल गए की मैं तो पूरे दस किलो आलू चिप्स बनाने के लिए भी ले आई देखो हाथ दुख गया मेरा..!!बेटा जा दौड़ के थोड़ा पानी पिला दे…!!
मां ने तुरंत मेरी ओर देखा था और मुझ पर तो मानो #घड़ों पानी पड़ गया था।
आज मां को मेरा अगला पिछला सारा हिसाब समझ आ गया था।
मां खामोश थी और मैं मां के सामने नजर नहीं उठा पा रहा था… पैर पकड़ कर वादा किया था उसी समय मां से कि आज से अभी से कभी भी हिसाब किताब में अपना हिसाब नही लगाऊंगा नियत साफ रखूंगा वादा करता हूं मां ….और मां तो मां थी तुरंत दुलार से लिपटा लिया था मुझे।
यकीन मानिए तब का दिन था और आज का दिन है ऑफिस हो ऑडिट हो चाहे घर हो या जिंदगी का अपना हिसाब हो सही सही हिसाब करता हूं … गलत तरीके से धन कमाने पर कभी नीयत नही डिगाता हूं…!
मां से वादा जो किया था।
लघुकथा#
लतिका श्रीवास्तव