वो ईनाम कुल्फी का – लतिका श्रीवास्तव

कॉलेज की सर्वश्रेष्ठ  वक्ता की ट्रॉफी मिली थी स्वाति को आज….

इस बेमिसाल इनाम के बारे में अपने विचार व्यक्त करने के लिए उसे मंच पर आमंत्रित किया जा रहा था..,सभी ये जानने को उत्सुक थे कि आखिर इस वक्तृत्व कला की प्रेरणा क्या है..!!

प्रेरणा हैं वो दो कुल्फियां स्वाति ने हंसते हुए कहा और अपने बचपन के गलियारों में घूमती हुई वहां पहुंच गई थी जहां उसके बाबा यानी कि दादाजी कहानियां सुना रहे हैं और वो उनकी गोद में किसी राजकुमारी की तरह बैठी हुई पूरे मनोयोग से सुन रही है …. सभी भाई बहन आंखें बड़ी बड़ी करके और अपनी अपनी कहानी की फरमाइश के शोर गुल के साथ बाबा की ओर देख रहे हैं..!

मेरी तबियत ठीक नहीं है इसलिए मैं आज कहानी नहीं सुना पाऊंगा…”बाबा मतलब दादाजी के मुंह से सुनते ही हम सभी भाई बहनों के चेहरे लटक गए …

गर्मी की छुट्टियां मतलब नानी दादी के घर जाना जी भर के मस्ती …..मम्मी पापा की टोका टाकी  और पढ़ाई परीक्षा की चिंता से निष्फिकर …..दादी बाबा के वात्सल्य में डूब कर बिना मोबाइल और टीवी के वो छुट्टियां जन्नत की तरह लगती थी इतनी लंबी गर्मी की छुट्टियां यूं बीत जाती थीं जैसे एक दो दिनों की बात हों…..ना ही कभी बोर होने का भाव आता था ना ही बिना एसी कूलर के भीषण गर्मी की तपन महसूस होती थी..!!

…. “आज तुम लोग कहानी सुनाओगे और मैं सुनूंगा आखिर मुझे भी तो कोई कहानी सुनाए कभी ……बाबा ने  हम सबका मुंह लटका देख कर पोपले मुंह की वात्सल्य भरी हंसी के साथ  कहा था।

हम सब श्रोता गण जिनका सर्वाधिक पसंदीदा समय रात के भोजन के पश्चात बाबा से रोज नई नई अद्भुत कलेवर वाली चटपटी,मीठी,अलबेली कहानियां सुनना और उसी तरंग में जाने कहां कहां की काल्पनिक सैर करना रहता था आज अचानक बाबा के कथन से दुखी हो उठे थे….तो बाबा ने हमें फिर से उत्साह दिलाते हुए कहा …और हां जिसकी कहानी सबसे बढ़िया लगेगी मुझको ही नहीं तुम सभी को भी…उसको कल दो कुल्फी का इनाम भी मिलेगा…. मेरी तरफ से।

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कुल्फी वो भी दो दो …कुल्फी की चटोरी स्वाति जो बाबा की लाडली गुड़िया थी और उन्हीं की गोद में बैठी हुई थी ने सबसे पहले हाथ उठाया …बाबा….बाबा मैं सुनाऊं…..” हां हां सुनाओ मेरी नन्हीं गुड़िया ….बाबा ने बहुत लाड़ से कहा…..तो स्वाति तुरंत शुरू हो गई…




….एक समय की बात है बच्चो के एक बाबा थे जो बहुत प्यारे सुंदर और अच्छे थे,वो बच्चों को रोज रात में मीठी खट्टी कहानियां सुनाया करते थे, बच्चों की फरमाइश पर ….किसी को राजा की किसी को बंदर की किसी को राक्षस की किसी को परियों की किसी को मिठाई की किसी को शेर की…..जिसकी जो इच्छा हो बाबा चटपट उसी विषय पर कहानी सुना देते थे….बच्चो को लगता था ये रात कभी खत्म ही ना हो…हम लोग यूं ही बाबा के पास बैठे रहे और बाबा यूं ही हंसते हुए ढेर सारी लंबी लंबी कहानियां एक के बाद एक सुनाते रहे……. सुनाते रहे…….(फिर उसने सभी श्रोताओं की ओर देखा मंत्रमुग्ध चेहरे देख कर अपनी कहानी पसंद आने का गर्व और उत्साह उसके अंदर आ गया) पर एक दिन बाबा की तबियत अचानक  खराब हो गई तो उन्होंने कहानी सुनाने से मना कर दिया बच्चों को बिलकुल अच्छा नहीं लगा वो बहुत उदास थे उन्होंने भगवान जी से प्रार्थना की … हे अच्छे अच्छे भगवान जी हमारे बाबा को जल्दी से अच्छा कर दीजिए ताकि वो हम लोगों को  हमारी पसंद की कहानी फिर से सुनाने लगें…..।सब लोग कहते हैं भगवान जी बच्चों की प्रार्थना बहुत जल्दी सुनते हैं…और स्वाति ने अपने नन्हे नन्हे हाथ जोड़ लिए…!

….. सभी बच्चे जैसे नींद से जागे ….सबने स्वाति के साथ अपने अपने नन्हें हाथों को जोड़कर  भगवान जी से प्रार्थना की……खूब तालियां बजीं और सबने एकमत से स्वाति की कहानी को सबसे बढ़िया कहानी माना….बाबा ने भी स्वाति की तुरत बनी कहानी और कहानी सुनाने के अंदाज की बहुत प्रशंसा की और शाबाशी दी थी।

दूसरे दिन दोपहर में कुल्फी वाले का सबसे ज्यादा इंतजार स्वाति ही कर रही थी….जैसे ही कुल्फी वाले की घंटी बजी…स्वाति दौड़ कर बाबा को बुला लाई चलिए बाबा कुल्फी वाला आ गया हे…..और अपने दोनों हाथों में कुल्फी का इनाम संभालती स्वाति विजेता का भाव लिए खुद पर गर्व महसूस कर रही थी…….।

….आज भी इस ट्रॉफी से ज्यादा बड़ी और मेरी जिंदगी की अनमोल यादगार ट्रॉफी वो दो कुल्फियां ही हैं जिनके साथ मेरे बाबा की मीठी प्रेरक स्मृतियां जुड़ी हैं।

स्वाति की बात सभी के दिलों को छू गई थी……तालियां बजती रहीं…!!

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 

लतिका श्रीवास्तव

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