Moral stories in hindi : सेठ दीनानाथ व्यापर जगत में एक जाना-माना नाम था। वे मृदुभाषी मिलनसार एवं सरल व्यक्ति थे। उनके के आकर्षक व्यक्तित्व का प्रभाव सामने वाले को प्रभावित करता था समाज में उनका मान सम्मान बहुत था। किसी भी सामाजिक सरोकार सम्बन्धित मामले में उनकी राय सर्वमान्य होती थी।उनका अच्छा कपड़ों का व्यवसाय था। बीच बाजार उनका बड़ी सी कपडों की दुकान थी।
एक बार उन्हें दुकान में काम करने के लिए लड़के की आवश्यकता थी। अत: स्थानीय पेपर में विज्ञापन दिया। दूसरे ही दिन राघव नाम का लड़का उस विज्ञापन के आधार पर उनसे मिलने आया। उन्होने उससे कुछ आवश्यक जानकारी ली। राघव उन्हें सीधा सादा लगा। उसकी बातचीत से सन्तुष्ट होने के बाद उन्होंने उसे काम पर रख लिया, किन्तु एक शर्त के साथ कि वह पन्द्रह दिन उसका काम देखेगें क्योंकि उसे अन्य जगह काम करने का अनुभव नहीं है अगर उन्हें काम पसंद नहीं आया तो वे उसका हिसाब कर विदा कर देगें।
वह बोला नहीं नहीं सेठजी मुझे काम की बहूत जरूरत है अत: मैं पूरे मन से जैसे आप कहेगें काम करूंगा आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगा, मुझें काम दे दीजिए।
दीनानाथ जी बोले ठीक है कल से तुम काम पर आ जाओ।
दूसरे दिन राघव समय पर दुकान पर पहुँच गया। उसे सब काम समझा दिया गया। वह पूरे ध्यान से बताये कामों को फूर्ति से करता। जल्दी ही वह काम सीखकर चतुराई से काम करने लगा सेठ जी उसके काम से सन्तुष्टथे। धीरे-धीरे उसने उनका भरोसा जीत लिया अब कभी-कभी सेठजी उसे घर भी भेज देते बाहर के कुछ छोटे-मोटे काम करने की लिए । छाह माह बीतते – बीतते वह उनका विश्वास पात्र बन गया। वे उस पर आँख मूँद कर भरोसा करने लगे।
उसे कार्य करते डेढ बर्ष बीत गया ।उसकी विनम्रता एवं सेवाभाव देखकर सेठ जी का भरोसा कुछ ज्यादा ही उस पर हो गया। अब तो कभी कभी वे अपने बेटे को उसके काम करने की लग्न का उदाहरण दे देते ,देखो वह कितने समर्पित भाव से काम करता है। काम करने से दिल नहीं चुराता। उनके बेटे एवं सेठानी जी को उनकी यह बात नागवार गुजरती। सेठानीजी बीच-बीच में उन्हें कहती भी कि, इतना ज्यादा भरोसा मत करो कभी तो चेक कर लिया करो। किन्तु उनके ऊपर तो उसकी मेहनत और ईमानदारी का भूत सवार था वह उन्हें कहीं से गलत न लगता।
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वे सेठानीजी को बोलते – अरी भागवान ज्यादा व शक मत किया कर वह तो अपने बच्चे जैसा है। वे चुप रह जातीं। अब दुकान जाने से पहले सेठजी उसको चाबीयाॅ भी देने लगे । वह दुकान खोलता गल्ला ,गद्दी सब व्यावस्थित करता और रोज गल्ले में से कुछ रूपये निकाला लेता ।अब उसका रोज का यही नियम हो गया था। कम ही पैसे इतनी चतुराई से निकालता दीनानाथ जी को उस पर कभी सन्देह ही नहीं हुआ। अब वह जो घर का सामान लेने जाता उसमें भी ऊपर नीचे करके कुछ बचत कर लेता। सेठानीजी को बार बार शक होता वे कहती भी किन्तु दीनानाथ जी उनकी बात मानने को तैयार ही नहीं होते।
कहते हैं कि कभी न कभी पाप का घडा भर ही जाता है। सो आज राघव के साथ हुआ। सेठजी उसे चाबी देते हुए बोले आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं हैं। सो मैं दो घंटे लेट आऊंगा तब तक दुकान तुम सम्हालो। वह चावी लेकर मन ही मन बहुत खुश था कि आज वे लेट आयेंगे उसे अच्छा मौका मिलेगा। वह दुकान खोल व्यवस्थित कर बडे आराम से गेट की ओर पीठ कर कुर्सी पर बैठ फोन पर किसी से बात कर रहा था। तभी दीना नाथ जी चुप-चाप वहाँ पहुँच गये।
वह कह रहा था अरे, वो बुढा मेरे ऊपर फिदा है, वह तो मुझे अपना बेटा ही समझने लगा है, इतना भरोसा करता है कि वह कुछ देखता ही नहीं। मैं भी उसके भरोसे का फायदा उठाकर जम कर उसे चूना लगा रहा हूॅ, जितनी वह मुझे तन्ख्वाह देता है उससे ज्यादा मैं गल्ले से हर माह निकाल लेता हूॅ और वह बुढा कुछ समझता ही नहीं। हाॅ बुढिया जरूर चौकन्नी रहती है,वह उसके कान भी भरती है किन्तु वह मेरे ऊपर इतना विश्वास रखता है कि उसकी बात ही नहीं सुनता। यार मजे हैं अपने तो ।
इसके आगे दीनानाथ जी नहीं सुन पाए। क्रोध से उनका शरीर काॅपने लगा, मुट्ठीयाॅ भींच गई किन्तु उन्होंने अपने को संयत किया और एकदम दुकान पर चढ कर उसके सामने खडे हो गए । वह बातों में इतना मशगूल था कि उनके आने की आहट भी न सुन सका।
एकाएक उन्हें
सामने देख कर खड़ा हो गया बाबूजी आप, आप तो देर से आने वाले थे न।
हाॅ आने वाला था किन्तु ईश्वर ने मुझे जल्दी आने की प्रेरणा देकर भेज दिया ताकि तुम जैसे आस्तीन के साँप की असलियत जान सकूं। बाबूजी क्या कह रहें हैं आप।
बाबूजी नहीं बूढा जो तुम पर ऑख मूंदकर भरोसा करता है।
अब राघव को समझते देर नहीं लगी कि दीनानाथ जी ने उसकी बातें सुन ली हैं। अब उसकी नजरें नीचे झुक गई।
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अब वह दीनानाथ की नजरों में गिर चुका था। वे बोले एहसान फरामोश अभी निकल जा यहाँ से। मेरा एहसान मान कि मैं तुझे पुलिस में नहीं दे रहा। इसी वक्त दुकान से नीचे उतर जा।
राघव गिडगिडाने लगा बाबूजी ऐसा मत कीजिए मुझे नौकरी से मत निकालिए मैं कहाॅ जाउंगा।
तेरे धोखे ने तुझे मेरी नजरों में गिरा दिया है तू भरोसेमंद नहीं है बल्कि बहुत धोखेबाज है जो दूसरे की भावनाओ से खेलता है। मैं अब तुझे एक मिनिट भी यहाँ बरदाश्त नहीं कर सकता, अत: मेरी नजरों से दूर हो जा।
राघव सिर झुकाए चला गया गया।
ऑखों से गिरना
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मोलिक अप्रकाशित