विश्वासघात – प्रीती सक्सेना

मैं माया, छोटे से शहर की, साधारण शक्ल सूरत की,BA पास लड़की, दुबली पतली, सांवला रंग,

ऐसा कुछ भी असाधारण सा नहीं था मुझमें जो

कुछ अलग सा हो।

पढ़ाई में खास दिलचस्पी नहीं थी, किसी तरह BA कर ही लिया, पिता अकाउंटेंट की नौकरी पर थे दो बहन एक भाई भी थे। बड़ी बहन ब्याह चुकी थी , भाई का ब्याह हो चुका था, वो भाभी

बच्चों के साथ दूसरे शहर में नौकरी करते थे।

 अब पिताजी को मेरी शादी की चिंता शुरू हुई, रिश्तेदारों को बोल दिया गया, लड़का देखने के लिए, पर कहीं मेरा रंग रूप आड़े आ जाता, कहीं पढ़ाई और कहीं कहीं जरुरत से ज्यादा दहेज़ की मांग।

समय बीतने लगा, साथ ही घर वालों की चिंता भी, नजदीक के एक रिश्तेदार ने पास के शहर का एक परिवार सुझाया  , लडका सरकारी नौकरी में था, मां बेटे ही बस थे परिवार में।

पिताजी भाई लड़का देखने गए, लौटकर आए तो संतुष्ट थे, बोले सब ठीक है, ज्यादा कुछ मांग नहीं है, छोटा सा परिवार है, बेटी खुश रहेगी।

मां बहन सब खुश हो गए, और मैं भी उस अजनबी के खयालों में खोने लगी।

शायद वो कुछ खामोश तबियत के थे, तभी न कभी फोन किया, न ही पत्र लिखा, मेरा मन चाहता था हम एक दूसरे से खूब बातें करें, एक दूसरे को जानें, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।


आखिरकार वो पल आ ही गया, जिसका मुझे बेकरारी से इंतजार था, बारात आई, मेरे खयालों का राजकुमार आया और ले चला अपने साथ अपने घर

घर पर ज्यादा लोग नहीं थे, मुझे देखकर वो सब अपने अपने घर चले गए, रात हुई पति आए, न बात की न हाल पूछा बस पति धर्म निभाकर चले गए, मैं सोचती रह गईं ये कैसी शादी है, कैसा ये रिश्ता है, फिर पिताजी मां का निरीह चेहरा सामने आया, और मैं सब भूलने लगी।

जल्दी ही एक बेटे की मां बन गई मैं पर पति का व्यवहार पूर्ववत ही रहा, मेरे परिवार से संबंध उनके सामान्य थे, पर मुझसे जरुरत भर का रिश्ता था।

एक दिन आए और ढेर सारे कागजों पर मेरे दस्तखत करवाए, पूछने की तो मेरी हिम्मत ही नहीं थी न ही हक।

उसके बाद मुझसे कोई वास्ता ही नहीं रहा उनका, सास का व्यवहार वैसे ही रूखा था, मुझे अनजानी सी बैचनी रहने लगी, समझ नहीं पाती थी आखिर ये लोग क्या चाहते हैं मुझसे।

आखिकार एक दिन मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर मुझे मिल ही गया, पति और सास मेरे कमरे में आए एक मिठाई का टुकड़ा मुझे खाने को दिया, जैसे ही मैंने मिठाई अपने मुंह में डाली , मुझे ऐसा लगा जैसे तेज चाकू मेरी आंतो को काटता चला जा रहा है मैं चीख भी न सकी, मेरे प्राण वहीं निकल गए।

आज मेरे पति की उनकी प्रेमिका के साथ शादी है , बहुत खुश हैं वो क्योंकि मेरी मृत्यु के बाद जीवन बीमा निगम से 50 लाख रुपए का इंश्योरेंस क्लेम जो मिला है उन्हें, मेरा नन्हा बेटा किसी निस्संतान को गोद दे दिया गया है

पुलिस रिकार्ड में मेरी आत्महत्या दिखाई गई है

इस तरह मेरी मौत हो गई।

ये सत्य कथा है जो नजदीक के ही परिवार में बहुत पहले हुई थी।

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