विश्वास से ही विश्वास है..! – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : रिजल्ट आना था आज… सुधीर जी सुबह से बेटे अमन के फोन का इंतजार कर रहे थे…

फिर इस बार इसका सिलेक्शन नहीं हुआ…..

मैं कब तक इस पर भरोसा करता रहूं और रुपए भेजता रहूं तीन साल से कह रहा है बस पापा इस बार हो जायेगा एक मौका और दे दीजिए

इस बार तो दुकान बड़ी करने के लिए जमीन खरीदने के लिए जो जमा पूंजी जोड़ी थी वह भी थोड़ी थोड़ी करके सब खत्म हो गई इतनी पूंजी तो अपनी दुकान में लगा देता तो आज बात अलग होती सुधीर जी अपने भाई सोहन से अपनी चिंता साझा कर रहे थे।

अरे हां आजकल नौकरी किसे मिल रही है मिलेगी भी तो हजार लफड़े सरकारी मिली तो खुशामद करते रहो और प्राइवेट मिले रगड़ के काम करते रहो अपनी जिंदगी भुलाकर सोहन ने भी भाई की बात आगे बढ़ाई।

इससे अच्छा है घर की खेती बाड़ी कर लो या अपना खुद का कोई व्यवसाय खोल लो मैंने भी तो कपड़े की दुकान खोली है खाने लायक तो मिल ही जाता है सोचा था लड़का बड़ा होकर मेरे धंधे को आगे बढ़ाएगा लेकिन आजकल के नौजवान पिता  के नाम पर नहीं खुद अपने नाम पर आगे बढ़ना चाहते हैं सुधीर जी आज काफी दुखी महसूस कर रहे थे।

भाईसाहब… आप को अमन पर इतना भरोसा नहीं करना चाहिए यही आपकी सबसे बड़ी गलती है कभी शहर जाकर उसके कॉलेज में जाकर पता लगाया है आपने क्या कर रहे हैं आपके साहबजादे … पिता तो बिचारा पेट काट के पैसे भेजता जा रहा है और पुत्र की मांग ही कम नही हो रही है बाहर जाकर सब लड़के बिगड़ ही जाते हैं…मेरे बेटे नवीन को देखिए दसवी से ही कान पकड़ के दुकान पर बिठाना शुरू कर दिया था आज मैं चिंता से मुक्त हूं  बड़े दर्प से सोहन ने कहा।

 

भैया जी …नवीन का मन तो शुरू से ही पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता था उसके लिए तो ठीक ही रहा दुकान पर बैठना स्कूल से तो फेल होने के कारण नाम वैसे भी कटने ही वाला था.. सुधीर जी की पत्नी मालिनी से नहीं रहा गया तो बीच में बोल उठीं।

मालिनी जानती थीं सुधीर वैसे ही परेशान हैं अभी तक अमन का कोई समाचार भी नही मिला है तिस पर अपने छोटे भाई सोहन की ये भड़काऊ बातें उन्हें और चिंतित कर देंगी.. संयुक्त परिवार है सब साथ रहते हैं लेकिन अपने धंधे अपने बेटों की तरक्की साथ साथ नहीं बांटी जा सकती आपसी जलन ईर्ष्या की बघार आ ही जाती है।

उनके बेटे अमन और छोटे भैया के बेटे नवीन में शुरू से ही पढ़ाई को लेकर कोई मुकाबला नहीं था अमन बहुत मेधावी और अनुशासित था जबकि नवीन स्कूल में समय बर्बाद करता था उसकी ढेरो शिकायते स्कूल से आती थीं अक्सर अमन को नवीन की हरकतों के कारण डांट खानी पड़ जाती थी।

रिजल्ट के दिन सोहन अपने बेटे की पिटाई करते थे पर अमन के अच्छे रिजल्ट की कभी तारीफ नहीं करते थे बल्कि उन्हें हमेशा यही लगता था कि अमन के साथ स्कूल वाले पक्षपात करते हैं वे कई बार नवीन के शिक्षकों के घर मिठाई और उपहार भी पहुंचाने जाया करते थे जिसका पता लगने पर सुधीर उन्हें डांट भी दिया करते थे।

अमन पढ़ता गया तो बढ़ता गया और सुधीर का बेटे पर  भरोसा  भी बढ़ता ही गया … शहर के कॉलेज में पढ़ने चला गया ….जब भी जितने रुपए मांगता पिता सुधीर तुरंत भिजवा देते थे…. धीरे धीरे उसके खर्च बढ़ने लगे और रुपए की डिमांड भी…. ।

सुधीर परिवार के सबसे बड़े थे और अपनी दुकानदारी में ऐसे फंसे थे कि अमन के कॉलेज जाकर मिलने देखने का समय ही निकाल पाते थे…!

भाई सोहन हमेशा उन्हें उलाहना और व्यंग्य मारता था कि इतना भरोसा मत करिए …. आज उन्हें भी दिल से महसूस हो रहा था कि अपने खुद के बेटे पर इतना ज्यादा विश्वास करना ही मेरी गलती थी बेटे ने इसी का नाजायज फायदा उठा लिया।

अभी तक अमन का कोई फोन नहीं आया था ना ही उसने अपना कोई समाचार पिता को बताना उचित समझा जबकि वह अच्छे से जानता है कि आज उसके रिजल्ट की पिता को बेसब्री से प्रतीक्षा थी…. फिर से चयन नहीं हुआ होगा किस मुंह से फोन करेगा अब….!

गुस्से के मारे उन्होंने खुद ही अमन को फोन लगा दिया ..” हेलो हां अमन अब मैं तुम्हें एक पैसा भी नहीं भेजूंगा तुम पर विश्वास करना ही मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी .. तुम चुपचाप घर आ जाओ और मेरे साथ दुकानदारी करो… बस इतना ही कह बिना उसकी सुने फोन काट दिया।

मालिनी जी मना करती रह गईं कि ऐसे नहीं बोलो बाहर रहता है … पर उनकी बात सुनी ही नही।

शाम से रात हो गई मालिनी के साथ सुधीर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी अमन का अभी तक कोई समाचार नही मिला ना ही उसने फोन ही किया।

तभी दरवाजे पर आहट हुई और अमन सामने खड़ा दिखा मालिनी जी लपक के दौड़ पड़ी अरे बेटा आ गया तू…! मां के पैर छू कर पिता की तरफ बढ़ आया अमन ..”पापा अब आपसे एक भी पैसे नही लूंगा लेकिन आपके साथ दुकान में भी नही बैठूंगा..कहता पैर छूने झुका तो सुधीर ने झटक कर अपने पांव हटा लिए…तो क्या करेगा भीख मांगेगा वह भी तुझे नहीं मिलेगी पिता के विश्वास को तोड़ता रहा पहले ही लौट आना था घर जब तुझसे नहीं हो रहा था तो बार बार ” कर लूंगा कर लूंगा “ये भरोसा क्यों दिलाता था!

क्योंकि मुझे पूरा विश्वास था कि मैं कर लूंगा और मैने कर लिया इस बार मेरा सिलेक्शन हो गया है पापा अमन ने आगे बढ़ पापा के पैर पकड़ लिए ।

क्या कह रहा है … फिर से झूठ बना रहा है अगर ऐसा था तो सुबह से क्यों नहीं बताया सुधीर ने शंका जाहिर की।

क्योंकि ये खुशखबरी मैं घर आकर देना चाहता था … इस खबर को सुन कर आपके चेहरे की खुशी खुद देखना चाहता था पापा ये आपका ही भरोसा  था मुझ पर जिसने मुझे कठिन हालात का मुकाबला करना सिखाया आपका विश्वास ही मेरा विश्वास बन गया मैं जानता हूं कितने कष्ट आपने सहे आर्थिक कठिनाई झेली पर मुझसे कभी जिक्र तक नहीं किया मेरी हर मांग हमेशा पूरी करते रहे बिना कोई सवाल किए ..

बस कर बेटा तूने तो मेरा दिल भर दिया मैं तो तुझे कोस रहा था … आजा गले लग जा मेरे … मेरा विश्वास है तू तो ..!

 

अरे सोहन.. ओ भाई सोहन आ देख अमन आ गया है इसका सिलेक्शन हो गया है मैं ना कहता था मेरा बेटा जरूर सफल होगा ..भरोसा देने से ही भरोसा मिलता है….. बल्कि तेरी बातों पर मुझे भरोसा नहीं करना चाहिए था वही गलती मुझसे हो गई …!

सोहन शर्मिंदा हो रहा था  मालिनी जी ईश्वर को हाथ जोड़ रही थीं और सुधीर गर्व से अपने बेटे को गले से लगा रहे थे।

लतिका श्रीवास्तव

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