विष उगलना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

महाभारत युद्ध में मद्र-नरेश शल्य पांडव पुत्र नकुल और सहदेव के मामा थे। महाभारत युद्ध अवश्यंभावी होने पर राजा शल्य भी पांडवों की ओर से युद्ध में शामिल होने के लिए कुरुक्षेत्र की ओर चल पड़े। यात्रा  के दौरान जब वे हस्तिनापुर  पहुॅंचे,तो उन्होंने वहाॅं बहुत बड़ा विश्राम स्थल देखा ।उस विश्राम स्थल में अपना पड़ाव डाल दिया।वहाॅं पर उनकी सेना का विशेष आदर- सत्कार किया गया। वहाॅं की मेहमाननवाजी से राजा शल्य इतने खुश हुए कि उन्होंने घोषणा करते हुए कहा -“युद्ध क्षेत्र में इतना भव्य आतिथ्य -सत्कार करनेवाला व्यक्ति महान है। मैं उसका क़र्ज़ उतारने के लिए मर भी जाऊॅं तो कम है।”

दुष्ट दुर्योधन ने छल से राजा शल्य को अपने शिविर में रखवा लिया था।राजा शल्य की घोषणा सुनते ही धूर्त्त दुर्योधन उनके समक्ष प्रकट हो गया और राजा से कौरवों की ओर‌ से युद्ध लड़ने को कहा। मद्र-नरेश शल्य दुर्योधन के छल को समझ चुके थे, परन्तु वचनबद्ध होने के कारण दुर्योधन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।राजा शल्य पांडवों तथा अपने भाॅंजे नकुल -सहदेव को बहुत प्यार करते थे, परन्तु मजबूरन उन्हें हामी भरी पड़ी।

महाभारत युद्ध के सोलहवें दिन जब राजा शल्य का कर्ण का सारथी बनना तय हो गया,तब  श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा -“वत्स! मद्र-नरेश शल्य भले ही दुर्योधन की ओर से हैं, परन्तु हैं तो तुम्हारे मामा ही। तुम्हें उनसे कम-से-कम एक मदद अवश्य माॅंगनी चाहिए।”

युद्धिष्ठिर ने पूछा -” श्रीकृष्ण!कैसी मदद?”

श्रीकृष्ण ने कहा -” सभी पांडव जाकर उनसे कहें कि आप कर्ण के सारथी के रुप में उसके विरुद्ध विष उगलते रहेंगे,जिससे महान धनुर्धर कर्ण की हिम्मत टूट जाऍं और वह हतोत्साहित होने लगे।”,

श्रीकृष्ण की बात मानकर पांडवों ने मामा शल्य से ऐसी ही मदद माॅंगी।राजा शल्य ने उनकी मदद को स्वीकार कर लिया।वादानुसार युद्ध -क्षेत्र में अर्जुन से कर्ण का सामना होने पर राजा शल्य अर्जुन की प्रशंसा करते और कर्ण के खिलाफ लगातार विष उगलते।राजा शल्य की विष भरी वाणी सुनकर कर्ण अशांत और चिड़चिड़ा हो उठता।गुस्सा आने के कारण कर्ण अशांत होकर अपने लक्ष्य से भटक जाता। उसे और अधिक हतोत्साहित करने के लिए राजा शल्य ने एक कहानी सुनाई,जो निम्न प्रकार थी।

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राजा शल्य -“एक वैश्य परिवार की जूठन पलनेवाला कौआ अपने समक्ष राजहंसों को कुछ नहीं समझता था।हमेशा अपनी अकड़ में रहता था।एक बार उसने अपना बड़बोलापन दिखाते हुए राजहंसों को कहा कि वह सौ प्रकार से उड़ना जानता है।एक दिन राजहंसों से उसने उड़ने की होड़ लगाई और लंबी उड़ान लेते ही जल्द ही वह थककर महासागर में गिर गया।गिरने पर उसने राजहंसों से मदद माॅंगी।दया दिखाते हुए राजहंसों ने कौए को महासागर से बाहर निकालकर अपनी पीठ पर लादकर उसके देश पहुॅंचा दिया।”

कर्ण ने चिढ़कर कहा -“मद्र-नरेश!इस समय ऐसी हतोत्साहित करनेवाली कहानी सुनाने का क्या मतलब?”

राजा शल्य ने अपनी विषभरी वाणी में कहा -“अंग-नरेश कर्ण! तुम भी अहंकारी कौए के समान कौरवों की भीख पर पलकर घमंडी हो गए हो।तुम्हारा भी हाल उस कौए के समान ही होगा।तुम महान धनुर्धारी अर्जुन के समक्ष कुछ भी नहीं हो।”

 सारथी शल्य की विष भरी  बातों को सुनकर कर्ण युद्ध में एकाग्रता खो बैठता।सारथी शल्य द्वारा युद्ध-भूमि में बार-बार हतोत्साहित करने से कर्ण का मन शंकाओं से भर उठता।सारथी शल्य ने अपनी विष वाणी से मनोवैज्ञानिक रुप से कर्ण को हतोत्साहित कर दिया। परिणामस्वरूप परम  धनुर्धर योद्धा और महान वीर होते हुए भी  कर्ण युद्ध में अर्जुन के द्वारा मारा गया।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा  (स्वरचित)

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