विरासत का फैसला – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

शर्मा परिवार का गाँव एक छोटा लेकिन संपन्न गाँव था। इस गाँव में स्थित विशाल हवेली में दादाजी रामलाल शर्मा अपने चार बेटों और उनके परिवारों के साथ रहते थे। दादाजी ने अपने जीवनभर की मेहनत से एक विशाल संपत्ति अर्जित की थी। उनके निधन के बाद, इस संपत्ति के बंटवारे को लेकर परिवार में मतभेद उत्पन्न हो गए।

शर्मा हवेली में हमेशा चहल-पहल रहती थी। दादाजी के चार बेटे विजय, विवेक, संजय और मनीष अपने-अपने परिवारों के साथ यहाँ रहते थे। हवेली में एकता और प्रेम का वातावरण था। दादाजी ने हमेशा सभी को साथ रखने का प्रयास किया और उनकी एकता और संपत्ति ही परिवार की पहचान थी।

दादाजी का अचानक निधन परिवार के लिए एक बड़ी क्षति थी। उनके जाने से सभी दुखी थे, लेकिन असली चुनौती उनके बाद आई। उनके निधन के बाद संपत्ति के बंटवारे का मुद्दा उठ खड़ा हुआ। दादाजी की वसीयत में सभी बेटों को समान रूप से संपत्ति बाँटने की बात कही गई थी, लेकिन हर किसी की अपनी अपेक्षाएँ और इच्छाएँ थीं।

वसीयत पढ़ने के बाद, पहली बैठक में ही विवाद शुरू हो गया। विजय ने अपनी बात रखी, “मैंने दादाजी के साथ कारोबार को संभाला है, मुझे ज्यादा हिस्सा मिलना चाहिए।” विवेक ने विरोध करते हुए कहा, “लेकिन वसीयत में सबको समान हिस्सा देने की बात है।” संजय ने भी सहमति जताई, “हमने भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाई है।” मनीष ने शांत स्वर में कहा, “भाईयों, हमें बंटवारे से ज्यादा परिवार की एकता पर ध्यान देना चाहिए।”

संपत्ति के बंटवारे को लेकर परिवार में मतभेद और तनाव बढ़ने लगा। पत्नियाँ भी अपने-अपने पतियों का समर्थन करने लगीं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। बच्चे भी इस विवाद से प्रभावित हो रहे थे। परिवार की एकता अब टूटने के कगार पर थी।

मनीष ने परिवार की एकता बनाए रखने के लिए एक समझौता प्रस्तावित किया। उसने सुझाव दिया कि कारोबार को एक संयुक्त परिवार ट्रस्ट के रूप में चलाया जाए, जिसमें सभी का समान हिस्सा हो और संपत्ति का लाभ सभी को मिले। लेकिन विजय और विवेक को यह विचार पसंद नहीं आया। उन्होंने अपने हिस्से की माँग पर जोर दिया।

समझौता न होने की स्थिति में, परिवार के सदस्य धीरे-धीरे अलग होने लगे। विजय ने अपने हिस्से के लिए कानूनी कदम उठाने का फैसला किया। विवेक और संजय भी अपने-अपने हिस्से की माँग करने लगे। मनीष ने खुद को इस विवाद से दूर रखते हुए अपने हिस्से को त्याग दिया। परिवार में दरारें और बढ़ गईं और एकता टूट गई।

समय बीतता गया और परिवार के सदस्य अपने-अपने हिस्से के लिए लड़ते रहे। इसी दौरान, कारोबार में भारी नुकसान हुआ और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। यह नुकसान सभी भाइयों के लिए एक बड़ा झटका था। कारोबार में हुए नुकसान ने परिवार के सभी सदस्यों को झकझोर दिया। विजय, विवेक और संजय ने महसूस किया कि उनके झगड़ों ने न केवल उनके संबंधों को बल्कि उनके आर्थिक भविष्य को भी नुकसान पहुँचाया है। वे मनीष के पास गए और माफी माँगी। मनीष ने उन्हें समझाया कि परिवार की महत्ता संपत्ति से कहीं अधिक है।

सभी भाइयों ने मिलकर फिर से कारोबार को खड़ा करने का फैसला किया। उन्होंने दादाजी के सिद्धांतों को अपनाया और एकता के साथ काम किया। मनीष के नेतृत्व में, सभी ने मेहनत की और कारोबार को फिर से सफल बनाया। 

शर्मा परिवार ने फिर से एकता और प्रेम के साथ जीना शुरू किया। उन्होंने अपनी संपत्ति को एक संयुक्त परिवार ट्रस्ट में परिवर्तित कर दिया, जिससे सभी को समान लाभ मिले और परिवार की एकता बनी रहे। वे समझ गए थे कि संपत्ति से बढ़कर परिवार की महत्ता है।

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि संपत्ति और व्यक्तिगत अपेक्षाओं के बावजूद, परिवार की एकता और महत्ता को समझना और बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। आपसी समझ, सहयोग और प्रेम ही परिवार की असली शक्ति होती है।

आरती झा आद्या 

दिल्ली

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