‘वीर कभी मरते नहीं हैं – प्रतिभा भारद्वाज :  Moral Stories in Hindi

“मां इस बार दीपावली पर पापा जरूर आएंगे न” 5 साल का अमन अपने पिता की तस्वीर को हाथ में लिए हुए पास में बैठी अपनी मां से पूछता है।

“हां बेटा इस बार तो जरूर आएंगे।” कहकर निधि सोच में डूब गयी कि इस बार देश की सीमा पर हालात ऐसे रहे कि डेढ़ साल से अरुण आ ही नहीं पाए अब आएंगे तो बहुत खुश होंगे…आखिर उन्होंने अपना ये छोटू भी तो नहीं देखा है दीपावली से 15 दिन पहले जन्म हुआ था और अब पहला जन्मदिन है…जन्मदिन पर आएंगे तो दीपावली करके ही जायेंगे।

      तभी बेटे की बातों से निधि का ध्यान उस पर चला जाता है।

  ” मैं भी पापा से ऐसी बन्दूक मंगवाऊंगा” अमन अपने पिता की तस्वीर की ओर इशारा करके कहता है तो निधि मुस्करा देती है।

  “हां बेटा जरूर मंगवाना, आखिर तुमको भी तो अपने पापा की तरह बहादुर बनना है।”

   “हां मां, मैं भी पापा की तरह बन्दूक से सारे गन्दे लोगों को मारूँगा”

   “जरूर बेटा, लेकिन अब सो जाओ।”कहकर निधि उसे सुला देती है।

    निधि की आखों में नींद कहां थी! वह तो फिर से अपने पति अरुण के साथ बीते हुए पलों को याद कर रही थी यदि कभी झपकी लग गयी तो लग गयी वरना…. एक- एक दिन इसी प्रकार गुजर रहा था

      अभी अरुण को आने में पूरा एक महीना था। उसने छुट्टी स्वीकृत करा ली थीं। वह भी बहुत खुश था। खुली आँखों से रोज नए – नए स्वप्न देखता, रोज नई योजना बनाता कि इस वार घर जाऊंगा तो ये करूँगा… वो करूँगा, अपने छोटे बेटे की तस्वीर अपने मन में बनाता और उसके नए-नए नाम सोचता। आखिर उसको ही छोटू का नाम रखना था, अभी तक इसीलिए सब उसे छोटू ही कहते थे; यूं तो निधि ने उसके लिए बहुत से नाम सोच रखे थे लेकिन उसकी इच्छा थी कि इस जन्मदिन पर उसके पापा उसे देखकर उसका नाम फाइनल करें।

      इसी तरह 20 दिन और गुजर गए अब केवल 10 दिन शेष थे कि फिर से आतंकी हमला हो गया। 

     अरुण ने अपने मन को समझाते हुए निधि को भी फोन पर समझाया “तुम परेशान मत होना।अभी 10 दिन हैं, भगवान ने चाहा तो सीमा पर शांति हो जाएगी। मम्मी, पापा का ध्यान रखना। यदि तुम परेशान हो जाओगी तो फिर वो तो …”

     “ठीक है बाबा, अब ज्यादा मत समझाओ मुझे। मैं आपकी ही बीबी हूं, शेरनी। ऐसे कैसे परेशान हो जाउंगी।हां, आप अपना ख्याल रखना और दुश्मनों को खदेड़ कर मां की रक्षा करने का अपना जरूरी फर्ज़ पूरा करना” कहकर निधि ने अरुण को हिम्मत देने का प्रयास किया। वह अपने दुखी मन को दिखाकर अरुण को परेशान नहीं करना चाहती थी। हालांकि निधि को इतना दुख होता भी नहीं क्योंकि वह एक समझदार महिला थी।लेकिन बेटे अमन को कौन और किस तरह समझाए कि इस बार भी उसके पापा का आना मुश्किल है। वह तो रोज एक एक दिन पूछता है और खुशी- खुशी पूरे गाँव में घूमकर सबको बताता है कि अब तो मेरे पापा आएंगे… मेरे लिए खिलौने लाएंगे, बन्दूक लाएंगे… यह सोच सोच कर निधि का हाल बेहाल था। 

    छोटू के जन्मदिन में आज दो दिन शेष थे और आज ही अरुण भी आने वाला था लेकिन सीमा पर हालात नहीं सुधरे अतः छुट्टी नहीं मिल पाई यह बात निधि को पता थी लेकिन उसने किसी से कुछ नहीं कहा। वह किसी को दुखी नहीं करना चाहती थी। वह सोच रही थी कि जब बताना बहुत ही जरूरी हो जाएगा तब बता देगी अभी से बताकर किसी को परेशान करने से क्या फायदा।

    आज छोटू का जन्मदिन है और निधि अमन की खातिर अपने दुःख को छुपाकर मुस्कुराने का प्रयास कर रही है और न चाहते हुए भी बेटे की खुशियों की खातिर जन्मदिन की तैयारियों में व्यस्त रहती है और इसी तरह सुबह से शाम हो जाती है।

        अमन बाहर अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था तभी सेना की एक गाड़ी आकर रुकती है। अमन उसे देखकर दौड़ता हुआ घर में आता है और चीखते हुए अपनी माँ से कहता है-“माँ,माँ देखो मेरे पापा आ गए।”

    निधि चौंक जाती है और बाहर आती है उसके साथ साथ अरुण के माता पिता और सभी रिश्तेदार बाहर आ जाते हैं….

सभी लोग तिरंगे में लिपटा अरुण का पार्थिव शरीर और सैनिकों को देखकर स्तब्ध रह जाते है  क्योंकि गांव में ठीक से विद्युत न आने के कारण यह सूचना गांव में किसी को नहीं थी। 

निधि तो बेचारी इसी बात से दुखी थी कि इस जन्मदिन पर भी नहीं आ  पाए लेकिन इस बात से अपने को संभाल लेती थी कि शायद दीपावली तक आ ही जायेंगे। लेकिन ये….

      अमन निधि का हाथ झकजोर कर पूंछता है -“माँ, माँ, क्या हुआ आपको? आप चुप क्यों हो?”

अमन की बातें सुन उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगते है।

      इतने मैं एक सैनिक आकर निधि को एक पत्र और एक बैग देकर कहता है “यह पत्र अरुण ने मरने से ठीक पहले अपने लहू से लिखा था।”

      निधि तुरन्त खोलकर उसे पढ़ती है- 

मेरी प्यारी निधि मैं इस बार भी तुम सबसे मिलने नहीं आ पाया इसके लिए मुझे अंतिम बार माफ कर दो। और मैंने ही सबसे ये सूचना देने को मना किया था। मैं चाहता हूं कि तुम्हारी आँखों से आंसू की एक भी बूँद न गिरे… आखिर तुम शेरनी हो… मेरे छोटू का पहला जन्मदिन है अतः मुझे अंतिम सलामी देने से पहले इसे उसी प्रकार धूमधाम से मनाओ जैसा हम चाहते थे। मैंने अमन और छोटू के लिए बहुत सारे तोहफे (बन्दूक आदि) भी भेजें हैं जो उनको बहुत पसंद आएंगे। उनको तुम बहुत बहादुर बनाना जिससे वो भी भारत माँ की रक्षा कर सकें और तुम दोनों बच्चों के साथ साथ मेरे माता पिता की भी देखभाल कर सको……मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे और बच्चों के साथ है।

 जब बहुत देर हो जाती है और बालमन अमन की समझ कुछ नहीं आता कि ये सब क्या हो रहा है तब अमन निधि से पूछता है- “माँ, पापा कहां हैं?”

      तब निधि अपने आंसुओं को  अपने पल्लू से साफ कर इस असहनीय दर्द को दिल में छिपा अमन को अपने गले से लगाकर गर्व से समझाते हुए कहती है- “बेटा तेरे पापा दुश्मनों से लड़ते- लड़ते बहुत थक गए थे इसलिए इस तिरंगे में गहरी नींद में सो गए हैं। अब वो हम सबको आसमान में से सबसे चमकता हुआ तारा बनकर देखेंगे। तेरे पापा सदा के लिए अमर हो गए।”

      निधि अरुण की अंतिम इच्छा का मान रखते हुए अपनी आंखों में आंसुओं को रोक सबको छोटू के जन्मदिन की मिठाई देती है और फिर अरुण को श्रद्धांजलि देते हुए यह कहते हुए छोटू का नाम अरुण रख देती है कि– “वीर कभी मरते नहीं हैं….”

धन्य हैं हमारे सैनिक जो अपने प्राणों की बाजी लगा भारत माता और समस्त भारतवासियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनसे भी धन्य हैं उनकी पत्नियां जो उनके गम को अपने दिल में दबाकर फिर से नए सैनिक को तैयार करती हैं जो उनकी शेष जिम्मेदारियों को पूर्ण कर सके…. 

जय हिंद जय भारत

लेखिका/लेखक बोनस प्रोग्राम के अंतर्गत

लेखिका : प्रतिभा भारद्वाज

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