विनम्र सफलता – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“अरे सुना!मिसेज बंसल के बेटे आयुष ने टॉप किया है…” शोभित ने कहा तो मानसी के हाथ से चाय छलकते

बची।

“आयुष ने टॉप किया है?क्या नीचे से?” वो हंसी।

“मजाक नहीं बिलकुल सच कह रहा हूं,अभी मिली थीं वो रास्ते में,तभी उन्होंने खुद बताया।”

“अच्छा!!”,मानसी सोच में पड़ गई,वो तो बिलकुल सामान्य बच्चा था,कभी थर्ड भी नहीं आया क्लास में अपनी

और अब टॉप!!ये बोर्ड के एग्जाम होते ही अजीब हैं तभी तो सब डरते हैं इतना…चलो!बिल्ली के भाग से छींका

फूटा है…।

“तुम क्यों ऐसा बोलती हो?”शोभित बोला,”बेचारा बिन बाप का बच्चा है,कुछ बन जायेगा आगे।फिर मिसेज

बंसल ने मेहनत की होगी खूब उसके साथ दिन रात।”

“बस जी रहने दो…मैंने श्वेता के साथ कम मेहनत की थी क्या पर वो तो सिर्फ पास ही हुई है…” बुरा सा मुंह

बनाया उसने।

मिसेज कविता बंसल खुद आश्चर्य में थीं कि उनके बेटे के उतने अच्छे मार्क्स कैसे आ गए, माना कि उन दोनो

ने रात दिन एक कर दिए थे पर ऐसी सफलता सबको नहीं मिलती।

आयुष ने जब उनके पांव छुए और आशीर्वाद लिया,उन्होंने एक ही बात कही थी,”बेटा!इस सफलता को माथे

मत चढ़ने देना कभी। बहुत तकदीर से किए का परिणाम मिलता है,अब तुम गुरूर मत करना इस पर।अभी तो

ये पहली सफलता है,आगे आगे बहुत लंबा सफर तय करना है।”

लगातार फोन की घंटी बज रही थी और लोगों की बधाई संदेश आ रहे थे।मिसेज बंसल अपने दिवंगत पति

की फोटो के आगे खड़ी हाथ जोड़े थीं,”देख लो जी!तुम्हारे लाडले ने तुम्हारा सपना पूरा किया है आज।कहते थे

पांचों सब्जेक्ट में डिस्टेंक्शन मार्क्स जरूर लाना और तुम्हारा बेटा तो सब में पिचानवे से भी ज्यादा लाया

है।अब तो बहुत खुश होगे तुम।”

आयुष की जिम्मेदारी रातों रात बढ़ गई थी।अभी तक निश्चिंतता से खेल में लगा रहने वाला वो,बहुत गंभीर

हो गया था।एक तो टेंथ के बाद,अचानक पढ़ाई का स्तर बहुत बदल जाता है।साइंस स्ट्रीम से उसे

पढाना,उसके मम्मी पापा का सपना था और उसे वो पूरा करना था।

ग्यारहवीं क्लास की फिजिक्स,केमिस्ट्री और मैथ्स सब कुछ बहुत कठिन हो गई थी,टीचर्स क्लास में क्या पढ़ा

जाते,आयुष एकदम नहीं समझ पाता था,लोगों की उम्मीदें उससे कुछ अधिक ही बढ़ गई थीं अब।वो मम्मी से

कहता,मां!पढ़ाई बहुत कठिन लग रही है, मै ट्यूशन लगाना चाहता हूं।

इस महीने हाथ तंग है बेटा!अगले में लगवा लेना,कविता कहती और वो चुप रह जाता।

अगले महीने फर्स्ट टर्म के टेस्ट में आयुष के केमिस्ट्री में बीस में से सिर्फ नौ नंबर आ पाए,दूसरी क्लास में भी

ये खबर आग की तरह फैल गई।बच्चे तक उसे चिढ़ाते!”भैया…नौ के आगे का दूसरा नौ कहां खो गया?”

बेचारा आयुष शर्म से जमीन में गड़ जाता।

उसकी केमिस्ट्री की टीचर जो उसकी क्लास टीचर भी थी,पी टी एम वाले दिन,उसकी मम्मी से शिकायत

करते बोली,”आपका लाडला बिगड़ रहा है मिसेज बंसल।”

उनकी टोन में शिकायत कम,ताना ज्यादा था,कविता समझ रही थी,उसने कहना चाहा,उसे केमिस्ट्री बिल्कुल

समझ नहीं आ रही है क्लास में,वो बता रहा था मुझे पर बोली नहीं कहीं उसकी टीचर उससे बदला न उतारे

फिर लेकिन उसके टीचरों का ये रवय्या उसे समझ न आया।

अगर उनका हर बार का टॉपर कम नंबर लाया और आयुष ज्यादा ले आया पिछले बोर्ड में तो क्या उसकी

गलती है?ये सब उसके पीछे क्यों पड़ गए हैं?

सबसे पहला काम, उस दिन,कविता ने जो किया वो आयुष का ट्यूशन लगाने का किया,कहीं और बचत कर

लूंगी पर इसका ट्यूशन जरूर लगेगा अब।

आयुष मन लगाकर पढ़ने लगा था,उसके भी दिल पर लगी हुई थी इस बार।उसकी काफी मेहनत के बाद भी

फाइनल एग्जाम तक उसकी बहुत अच्छी तैयारी न हो पाई और वो एलेविंथ के वार्षिक परिणाम में सिर्फ

पास ही हुआ इस बार।

स्कूल में उसके विरोधियों के चेहरे खिल गए थे। जितने मुंह उतनी बातें!अब सब खुश थे ,खुसुर पुसुर कर

जतला ही देते,अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे!पता नहीं किसने इसे बोर्ड एग्जाम में इतने ऊंचे नंबर दिए थे?

आयुष बहुत दुखी हो जाता ऐसी बातें सुनकर पर उसकी मां उसे समझाती,बेटा!ज्यादातर उन लोगों की

सफलता लोग कम हजम कर पाते हैं जो हमेशा विनर नहीं होते,अभी तुमने एक रिकॉर्ड बनाया है,लेकिन तुम्हें

बार बार इसे दोहराना पड़ेगा तब लोग तुम्हें वैल्यू करेंगे।

“लेकिन मां! मै एफर्ट्स डाल रहा हूं ना,पर भगवान तो नहीं मैं?”वो निराश होकर गुस्से से कहता।

कोई बात नहीं…जिसे जो कहना है,कहने दो,तुम्हारा बढ़िया रिजल्ट ही इन लोगों के मुंह पर तमाचा है।बस तुम्हें

किसी भी स्थिति में खुद पर जहां गुरूर नहीं करना वैसे ही अपने अच्छे कामों को भूलना भी नहीं।

अब सब सब्जेक्ट्स की तैयारी कैसी है तुम्हारी? बोर्ड्स के एग्जाम पास आ रहे हैं।वो बोली।

एकदम फर्स्ट क्लास मां!सर से मैंने तीनों सब्जेक्ट्स खूब अच्छे से तैयार किए हैं,इस बार मेरी परफॉर्मेंस

इलेवंथ से कहीं अच्छी होगी।

शाबाश!कविता ने आयुष को गले लगा लिया।वो खुद भी शायद नहीं चाहती थी कि आयुष नंबर वन हो,लोग

कितना चिढ़ जाते हैं,नजर लगाते हैं,इन सबको तो बात बनाने का बहाना चाहिए।

क्लास के सब टीचर्स निश्चिंत थे कि इस बार क्लास टॉपर वंदना ही बनेगी।वो बहुत नियमित,परिश्रमी और

होशियार लड़की थी वहां की और उसे बधाई दी करही थीं एडवांस में ही।

आयुष को बहुत डर था दिल में,अच्छे से पास हो जायेगा,ये विश्वास तो था मन में पर क्या इतिहास दोहरा

पाएगा?”करिश्मे हर बार नहीं होते”किसी को कहते सुना तो आयुष मुस्करा दिया,वाकई में करिश्मा तो कभी

कभी ही होता है।

थोड़ी देर मे टवेल्थ बोर्ड का परिणाम सबके सामने था और आयुष एक बार फिर अखबार की सुर्खियों और

टीवी की हेडलाइंस में था।

कविता बंसल,उसकी मां का नाम भी बोला जा रहा था और आयुष हकबका के सब कुछ देख रहा था,उसने

पढ़ाई तो की थी रात दिन,पूरी मेहनत से की थी लेकिन साथ ही उसकी मां का सिखाया मंत्र उसके साथ

था,कभी गुरूर मत करना,सफलता को सिर मत चढ़ने देना,वो शुक्रगुजार था उन टीचर्स का और सहपाठियों

का जिन्होंने उसे हमेशा ताने मारे और उसके अंदर कुछ कर दिखाने की ललक की आग को कभी बुझने

नहीं दिया।

उसकी मां ने उसे गले लगाते हुए कहा,”आज दूसरी सीढ़ी चढ़ी है बेटा,अभी मंजिल दूर है पर हौसला कम मत

होने देना,फॉर्मूला तुमने सीख ही लिया है वहां तक पहुंचने का बस वो ही याद रखना है।फिर दुनिया की कोई

रुकावट तुम्हारा रास्ता अवरुद्ध नहीं कर पाएगी,मुझे,मेरे बेटे पर गर्व है।”

समाप्त

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#गुरूर

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