विधि का विधान – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

ऋतु और उसका भाई अजीत आपस में लड़ रहे थे,ऋतु का कहना था कि इस बार छुट्टियों में वो गोवा घूमने

जायेंगे,उसकी कितनी सहेलियां वहां के किस्से सुनाती थीं अक्सर उसे ,पर अजीत चाहता था कि वो लोग

मुंबई जाएं।

आखिर अजीत की बात ही सुनी गई और वो खंडाला चले गए।ऋतु किलस उठी थी,हर बार मम्मी पापा

इसकी बात ही मानते हैं,चाहे कहीं घूमना हो या कुछ खरीदना,खाने में क्या बनेगा से लेकर,किसको किसकी

शादी में क्या दिया जाएगा तक।

वो अपनी मां से कुछ कहना चाहती वो उसे डांट के चुप करा देती,”लड़कियों को एडजस्ट करना आना

चाहिए,क्या हुआ को भाई की बात मान लेते हैं,कभी कोई बात गलत तो नहीं कहता।”

ऋतु पैर पटकती गुस्से में ,तब उसकी दादी उसे समझाती…”कोई बात नहीं बेटा!उसकी बात ऊपर रखने से तू

छोटी थोड़े ही हो जायेगी?फिर जो होता है,अच्छे के लिए ही होता है।”

“खाक अच्छे के लिए होता है”,वो बड़बड़ाती।

ऋतु की शादी हो गई,संयुक्त परिवार में गई थी वो,जेठ जेठानी , सास ससुर और पति देव।

जेठानी जॉब करती और ऋतु घरेलू थी तो सारे घर में उनकी ही तूती बोलती थी।

हर बात में जेठानी की राय ली जाती,ऋतु फिर तड़पती रह गई।यहां भी मेरी कोई नहीं सुनता पता नहीं मेरा

भाग्य ही खराब है।हर जगह बस मेरे साथ ही पक्षपात किया जाता है।

ऋतु पाक कला में बहुत निपुण थी,घर की रसोई उसने अच्छे से संभाल ली थी ।एक दिन उसकी जेठानी रूपा

ने बताया ..

“ऋतु!कल मै किटी कर रही हूं,क्या तुम कुछ खाने पीने का इंतजाम कर लोगी?ये लो रुपए,और चाहिए तो

सामान मंगवाते हुए ले लेना।”

पहले तो ऋतु को ये सुनकर अच्छा न लगा पर बाद में वो मान गई,जिस काम की वैल्यू है,वो तो कर ही लूं,नहीं

तो मेरी कोई पूंछ ही नहीं घर में।

ऋतु ने ढोकला,इडली,सफेद रसगुल्ले,बेसन की बर्फी,ठंडाई,नमकीन,बहुत से आइटम तैयार कर लिए थे,उसके

हाथ की कोल्ड कॉफी पीकर तो उसकी जेठानी की सहेलियां वाह वाह कर उठीं।

उसकी जेठानी रूपा सेवी बोली,बड़ी लकी हो तुम तो…क्या बढ़िया देवरानी मिली है, भई वाह!मेरे घर पार्टी

होगी, मै ऋतु भाभी की ही कॉन्ट्रैक्ट दूंगी,आप अपना टिफिन बिजनेस शुरू कर दो या कैटरिंग का काम भी

खूब चलेगा।

पहली बार ऋतु की तारीफ हो रही थीं घर में और वो बहुत खुश थी।तभी रूपा की एक अमीर दोस्त मिसेज

गोयल ने कहा…

ऋतु!अगले हफ्ते हम सब चार दिन की पिकनिक पर शिमला जा रहे हैं,वहां तुम खाने नाश्ते का इंतजाम देख

लेना,इसके लिए हम सब मिलकर तुम्हें पे करेंगे,देखो!अच्छा अवसर है इसे जाने ना देना हाथ से,इसी तरह

तुम्हारे बिजनेस की शुरुआत भी हो जायेगी।

ऋतु ने अचकचा के जेठानी को देखा,”अम्मा जी नहीं मानेगी,न इनके देवर मानेंगे।”

उन्हें मै मना लूंगी पर मिसेज गोयल को मना करने का दुस्साहस कोई नहीं कर सकता।रूपा बोली।

ऋतु बहुत खुश थी इस बात को लेकर,उसे लगा कि अब शायद उसके बुरे दिन खत्म हो रहे हैं,उसकी एक नई

पहचान बनेगी समाज मे और उसका भाग्य पलटा खा रहा है।

वो तैयारियों में लग गई लेकिन ऐन वक्त पर जब वो सब जाने को तैयार थीं,उसके ससुर ने सख्ती से उसे इस

काम के लिए जाने को मना कर दिया।

ऋतु अपना सा मुंह लेकर रह गई और अपने कमरे में जाकर खूब रोई,रोते रोते वो खुद को कोसती जा रही

थी,”घूरे के दिन कभी नहीं फिरते…मैं भी ऐसी ही तकदीर लिए हूं।”

उसे दादी पर भी खूब गुस्सा आ रहा था,”कहती हैं हर काम अच्छे के लिए होता है…माय फुट!!”

अगले ही दिन वो उदास सी घर का काम समेट रही थी,घर में वो और उसकी सास ही थे बस,बाकी लोग

ऑफिस गए थे या बाजार।

अचानक उसकी सास की बहुत तेज चीखने की आवाज आई,वो बाथरूम में फिसल है थीं नहाते हुए,उनके

सिर पर चोट लगी थी।

बहुत सा खून देखकर भी ऋतु घबराई नहीं,उसने झट एंबुलेंस बुलाने के लिए फोन किया और अपनी सास

को फर्स्ट एड दी।उसके हाथ फुर्ती से चल रहे थे।वक्त पर वो हॉस्पिटल आ गई और उन्हें समय पर इलाज

मिल गया।

डॉक्टर्स ने ऋतु की सूझबूझ की बहुत तारीफ की, कि उसने बिना हिम्मत खोए एंबुलेंस बुलाई और उनको

फर्स्ट एड दी जिससे इनकी जान बच गई।

आज पहली बार ऋतु को दादी की कही बात का मतलब समझ आया,हर काम अच्छे के लिए होता है,अगर

वो भी चली जाती पिकनिक पर तो शायद उसकी सास के साथ हादसा हो जाता।

अब ऋतु सबकी प्यारी बहू बन चुकी थी,उसने आइंदा कभी नहीं कहा कि सब बुरा मेरे साथ ही क्यों होता है।वो

समझ चुकी थी जो कुछ आपके साथ होता है,वो विधि का विधान भी है और उससे नाराज न होकर उससे

सामंजस्य बैठाना चाहिए,अंततोगत्वा परिस्थितियां आपके अनुकूल भी बन सकती हैं।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

#आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है

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