Moral Stories in Hindi : बेटा सीधा पैर”””
सास उमा जी बोली”””
नयी बहू ने सास की ओर देखा, मासूमियत भरी मुस्कान उसके चेहरे पर फैल गयी”””
उसने धीरे से दाहिना पैर रंग से भरे हुऐ बडे थाल में रख दिया”””
एक के बाद दूसरा पैर रखने मे कुछ अलग सा महसूस हुआ””
अब रूको “”
उमा जी ने बहू को आगे बढने से रोक दिया”
न्यारा बेटा जल्दी कर,,,,
आयी मां,,,
सामने से आती हुई न्यारा बोली,उसके हाथ मे सफेद चादर थी!!
ये लो,मम्मी”””
अरे ये वाली नही””उमा जी असंतुष्टता से बोली””
इतना समान फैला हुआ दूसरी चादर कही नही दिख रही””
चलो ठीक है अब यही ले लो”””नही तो”””
मम्मी और कितने सारी रस्मे करोगी ,जल्दी करो नींद आ रही है,अडतालीस घंटे से सोया नही हूं””
उमा जी की बात काटते हुऐ रघु बोला “””
बस एक दो रस्में और बची है बेटा “”” कौन सा रोज रोज शादी होगी”””
अबतक न्यारा ने एक दो लडकियों की मदद से चादर बिछा दी,थी!!
इस चद्दर पर पैर रखकर देवता घर तक चलो””
उमा जी के बोलते ही ,नयी बहू ने पैर बढा दिये””
सात कदम चलते ही घर की दहलीज आ गयी,,चौखट के आगे चमकिले से लोटे मे, चावल भरे नजर आये,
नयी बहू वैदेही को ,कुछ गुदगुदी सी हुई,उसके मानसपटल पर फिल्म और सिरियल के चल चित्र घूमने लगे”””
अब आगे बढ़ोगी”””रघु धीरे से वैदेही के कान के पास जाकर बोला””
बैदेही मुस्कुराई “”””
अभी कदम आगे बढाया ही था की”””
रूको”””
वैदेही ठिठक गयी””
मेरा नेग”””””
ननद न्यारा कमर पर हाथ रखकर बोली””
कैसा नेग”””रघु बोला”
भाई””””
पैसे निकालो”
मै देती हूं”वैदेही धीरे से बोली”””
नही भाई ही देगा “””
लडो मत तुम दोनों, उमा जी ने कंगन का जोडा, बेटी की ओर बढा दिया!
मां हमदोनों भाई बहन को लडने का कभी तो अवसर दिया करों हर बार बीच मे आ जाती हो””
उमा जी मुस्कुराई””
बेटा चावल के कलश पर दाहिने पैर का अगूंठा टच कर आगे बढ जाओ”””
वैदेही कलश को अंगूठे से टच कर आगे बढ गयी””
कोहबर देवता के सामने माथा टेक कर रघु वैदेही दोनों एक साथ वही बीछी चटाई पर बैठ गये!!
रघु और न्यारा दो भाई बहन थे,आगे की रस्म के लिऐ दूर की रिश्ते से भाभी को बुलाया गया था!
लल्ला जीत कर बताओ ,दूध से भरे बडे कटोरे मे ,अंगूठी डालती हुई भाभी बोली”””
वैदेही ने झट से हाथ डाल दिया, अंगूंठी वैदेही के हाथ मे आ गयी””
वैसे वैदेही की पांच भाभियां थी और सबके अपने अपने विचार थे”””
दूसरे नम्बर वाली भाभी को वैदेही से बडा स्नेह था!मां जैसा प्यार उन्ही भाभी से मिलता था!
विदाई वाले दिन भाभी ने रस्मो के बारे में उसे समझाया था!
वैदेही,पति के जीत का कारण बनना हार का नही,तभी तुम अर्धागिनी कहलाओगी””
हा मे सिर हिलाया था वैदेही ने””‘
एक दो तीन”””
जेठानी की आवाज से वैदेही की चन्द्रा टूटी””
वो हो””देवर जी आप तो जीत गये”””
चलो अब दोनों बराबर हो”””
पांच बार हाथ मे आयी हुई जीत वैदेही ने छोड दी””
इस बात को उमा जी भाप गयी!!
आखिरी चांस है,जो जीतेगा वही राज करेगा, भाई हम जीते थे तभी तो आज तक राज कर रहे है”””
जेठानी की अंहकार भरी बात सुनकर वैदेही को हंसी आ गयी!
जैसे ही अंगूंठी कटोरे मे गयी,वैदेही और रघु दोनों ने एक साथ अंगूठी को पकड लिया””
उमा जी ने आंखो ही आंखो से बेटे को इशारा किया!
और अंगूंठी पर रघु की पकड ढीली पड गयी!!
वैदेही की समझ मे आ गया की ऐसा क्यूं हुआ, उसने भी अंगूठी छोड दी”””
चलो बताओ कौन जीता “”” जेठनी ने पूछा “”
दोनों ने बाहर हाथ निकाले।
दोनों के हाथ खाली,,जेठानी आवाक् अंगूठी गयी कहा!
देवर जी,,,
भाभी पराधीन सपनेहूं सुख नाही””‘रघु हंसते हुए बोला, रही रस्म की बात तो वो हम पूरी कर देते है”””
रघु ने वैदेही के हाथ को पकडा और इसबार अंगूठी दोनों के हाथ मे थी!!!
सारी रस्म पूरी हो चुकी थी””
खीर कन्या रस्म के बाद वैदेही न्यारा के रूम मे चली गयी थी””
और थकान की वजह से रघु बैठक मे ही सो गया था!
अधिकतर मेहमान जा चुके थे!
जो दूर से आये थे वो भी जाने वाले थे!!!
अगले दिन घर खाली हो चुका था,
सुबह के नौ बज चुके थे,उमा देवी रामायण पढकर अभी उठी थी, कौशिल्या, माता सा प्रेम उनमे साफ झलक रहा था!
उन्होने देखा न्यारा पैकिंग कर रही थी!!
मम्मी मुझे निकलना होगा, शादी की भाग दौड मे मैसेज पर ध्यान नही गया “” कल से पेपर है””
अरे,सुनकर हाथ-पैर फूल गये उमा जी के”””
बेटा अब कैसे करेगी ,तेरे लिऐ कुछ बना भी नही पायी””
मां मै “अपना ख्याल रख लूंगी चिन्ता मत करो”””न्यारा बोली”
वैदेही भाभी कहां है””
शायद सो रही है””‘
ठीक है मां वो थक गयी थी!
मां समय बदल चुका है,ज्यादा उम्मीद मत रखना, जितना ख्याल मेरा रखती हो भाभी का भी रखना “””
ठीक है दादी मां””
नाश्ता बना देती हूं”””
हा मां ठीक है”””
उमा जी ने पांच प्लेटो मे नाश्ता लगाया “”
न्यारा जा बेटा रघु और वैदेही को भी बुला ला, ,
जी”””
न्यारा के जाते ही ,उमा जी मन ही मन सोचने लगी”””
वैदेही बिन मां की बच्ची है,जैसे न्यारा वैसी बैदेही””
उसे कौशिल्या मां जैसा प्यार देगी””
उमा जी सोच मे डूबी ,,जाने क्या क्या कल्पना कर रही थी!
उमा जी ने पैर पर कोमलता से किसी का छूना महसूस किया””
अरे बेटा “””
उमा जी ने देखा वैदेही उनके पैर को छू रही है”””
मम्मी जी सॉरी, नींद लग गयी,थी कल से”””
कोई बात नही बेटा”” उमा जी ने बीच मे ,बात काट दी””
बहुत प्यारी लग रही हो”
थैक्यू मम्मी जी”””
एक वादा करोगी”””
कैसा वादा मम्मी जी””
तुम विदेह की हो न””
हा मम्मी जी,,,
वैदेही समझ नही पा रही थी की उमा जी बोलना क्या चाह रही है!
रघु की वैदेही और कौशिल्या की सीता बनोगी”””
मम्मी जी”
वैदेही उमा जी के गले लग गयी”””
उमा जी ने उसे सीने, से चिपका लिया, तभी न्यारा, रघु, उमा जी क पति तन्मय जी एक साथ प्रविष्ट हुऐ,
उन पर नजर पडते ही उमा जी की आंखे भर आयी”””
क्या हुआ, तीनों के मुहं से एक साथ निकला “””
कुछ नही”””मेरे राम जी ने विदेह से मेरी वैदेही को भेज दिया “”
उमा जी की बात सुनकर ,सब एक साथ हंस पडे “””
समाप्त “””
कथाकुंज संरक्षक “
रीमा महेंद्र ठाकुर, वरिष्ठ लेखक सहित्य संपादक “”
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत
दिल को छूने वाली और समझने वाली बहुत ही मीठी कहानी बहुत अच्छा लगा पढ़कर
Absolutely