आज मां की विदाई का मंडप सजाया जा रहा था । अरे सब सोच रहे होंगे ये कैसे संभव है। नमिता हां यही तो है कनिष्क, शौर्य,रुचि,संवेदना,चारू,तोषी की यशोदा मां । उसने समाज का दंश झेला था क्योंकि यह किन्नर थी । कोई रात के अन्धेरे में इसे कचरे के ड्रम में कपड़े में लपेट कर डाल गया । वह तो भला हो कि किसी कचरे उठाने वाले ने इन्हें देखा और उठा लिया ।
जब सब एकत्रित हुये देखा तो पता लगा ये किन्नर बच्ची है। किन्नरों ने अपनी टोली में शामिल किया व बहुत अच्छी तरह लालन पालन किया । जैसे जैसे बढ़ती गयी सुन्दरता भी बढ़ती गयी । नमिता को नाच गाना पसंद नहीं था उसे कुछ बनना था कुछ करना था यतीम बच्चों के लिये । जिससे सब उसे पंसद करे उसके कार्यो से प्रभावित हो बस अपनी पालित मां से और अपने समूह से इजाजत लेकर एक छोटा सा बना दिया ” रंग से सजा बाल गृह ” बस धीरे धीरे बन गयी इन सब बच्चों की मां ।
नमिता की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी पूरा किन्नर समाज उसकी सहायता करता । अब सब बच्चे भी पढ़ने में होशियार थे धीरे धीरे बच्चे बढे हो रहे थे और नमिता मां की उम्र बीत रही थी । नमिता के साथ के भी बहुत से साथी हमेशा के लिये साथ छोड़ गये पर नमिता ने हार नहीं मानी क्योंकि सारे बच्चे एक उज्जवल भविष्य के मोड़ पर थे । जिसमें कनिष्क और तोषी की मैडीकल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी ।शौर्य और रूचि एक कालिज में अध्यापक हो गये । संवेदना और चारू ने नर्सिंग ट्रेनिग की थी ।
बस अब नमिता थक चुकी थी । कुछ दिन से उसने बच्चों से कहना शुरू कर दिया था कि अब मेरी विदाई का समय आरहा है। मेरे इस काम को तुम लोग बढ़ाओगे । सब बच्चे आंसू छिपाते बोले मां आप कहां चली अभी तो हमें आपकी सेवा करनी है। नमिता ने कहा बच्चों आना और जाना प्रकृति का नियम है।
बस वायदा करो तुम लोग आपस में मिलजुल कर रहोगे और मेरी बाबुल के यहाँ से तो विदाई नहीं हुई तुम मेरे को मंडप से विदा करना ।
रात को नमिता सबसे बात करके कमरे में जाकर सोई तो सुबह उठी ही नहीं । जब सब किन्नर साथियों को पता लगा बहुत दुखी हुये बच्चों का रो रो कर बुरा हाल था । सबने उन्हें समझाया बच्चों ने नमिता मां की आखिरी इच्छा सबको बताई और सबने मंडप सजाया । अब नमिता मां की बिदाई होनी थी। बच्चों के लिये आसान नहीं था नमिता को सजाया गया मंडप में ।
कहीं दूर एक गाना बज रहा था ” चल री सजनी अब क्या सोचे कजरा ना बह जाये रोते रोते ” ।