स्मृतियों के झरोखों से – वीणा
जब पीछे मुड़ कर देखती हूं
तो दिखते हैं वे लड़के
जो उछाल देते थे एक दिलफेंक मुस्कान
उनकी ओर देखने पर
या गिरा देते थे कागज का एक टुकड़ा
उनके समीप से गुजरने पर
जिस पर लिखा होता था
रटा रटाया जुमला–मैं तुम्हे प्यार करता हूं
अकेले कही जाते वक्त
उनका पीछे लग जाना
कितनी कोफ़्त होती थी तब
पर सुनसान गलियों से होकर गुजरते समय
भय मुक्त कर जाता था उनका पीछे पड़ना
अपने न होकर भी तब
बेहद अपने से लगते थे वो
लफंगे, आवारा से नवाजे जाते
कह देते थे हर वो बात हंसी हंसी में
जो एकदम बेलिबास होती थी
पर बारिश में भीगते जाते देख
तुरंत बढ़ा देते अपनी छतरी
झुकी नजरें ढांप लेती थी अपनी इज्ज़त
उस छतरी के नीचे
पर ओढ़ लिया है उन्होंने अब
जिम्मेदारी की चादर
पुरानी बातों को याद कर
बेसाख्ता आ जाती है अधरों पर मुस्कान
और नितांत अकेले में झांक लेते हैं
किताबों में छुपाए सुर्ख लाल गुलाब
जो वंचित रह गए
अपनी वांछित जगह पहुंचने से
हाँ, वे बेपरवाह लड़के
सिमट कर रह गए हैं
जिंदगी के आखिरी छोर पर
जिन्होंने बड़ी मुश्किल से सीखा था
अलविदा कहना
वीणा
झुमरी तिलैया
झारखंड