रोजी-रोटी चीज ही ऐसी है जिसके लिए कई बार हम लोगों को किसी कारण से अपना देश छोड़कर विदेश में बसना पड़ता है। अधिकतर हम भारतीय संस्कारों से जकड़े लोग अपने देश में रहकर अपने देश के बारे में कुछ भी सोचें पर विदेशी धरती पर अपने नैतिक मूल्य और संस्कृति को बहुत याद करते हैं।
ऐसी ही कहानी है कुछ सरदार जसवंत सिंह जी की, आज से 15 साल पहले वो यू. एस की धरती पर रोज़गार के लिए क्या गए, फिर वहीं के होकर रह गए। उनके किराने की दुकान जो वहां सरदार डिपार्टमेंटल स्टोर के नाम से प्रसिद्ध थी, काफी चल पड़ी थी। जब यू. एस गए थे, तब काफी जवान और अविवाहित नवयुवक थे। मां-बाप को लगा कहीं बेटा विदेश जाकर किसी मेम से शादी ना कर ले,इसलिए अपनी पसंद की लड़की से रिश्ता तय करवाके ही विदेशी धरती पर भेजा।
अब जब बेटा विदेश में थोड़ा कामयाब होने लगा तो उसे शादी करने के लिए हिन्दुस्तान आने को कहा। विदेश में रहकर भी जसवंत सिंह के दिल हिंदुस्तान में ही था, उस पर विदेशी चकाचौंध का असर नहीं था। वो कुछ दिन के लिए वतन आया और शादी की सब रस्में निभाकर अपनी धर्मपत्नी को भी अपने साथ यू. एस ले गया। अब जिंदगी की नई शुरुआत थी, बहुत खूबसूरत पल थे पर कहते हैं खूबसूरत समय थोड़ा जल्दी बीत जाता है। असली जिंदगी शादी के 1-2 साल बाद शुरू होती है।
अब जसवंत सिंह को विदेशी धरती पर रहते-रहते 15 साल के करीब समय हो गया था। इन 15 सालों में उनका परिवार भी बढ़ गया था। अब वो चार लोग थे। समय के साथ घर में बेटे का आगमन भी हो गया था। जसवंत सिंह और उनकी पत्नी बेटे को भारतीय संस्कार देने की कोशिश में लगे रहते पर बाहरी दुनिया के उन्मुक्त वातावरण को बदलने में वो
नाकाम थे। बेटा धीरे धीरे विदेशी सभ्यता में रंगने लगा था। देर रात दोस्तों के साथ घूमना और आवारागर्दी करना उसके शौक बन गए थे। जसवंत जी उसको समझाने की कोशिश करते,पर एक दिन तो हद ही हो गई जब बेटा उन्हें उल्टे जवाब देने लगा। एक हिंदुस्तानी पिता अपने बेटे को अपने सामने जबान चलाते देखकर गुस्से में भर गया।जैसे ही बेटे को एक तमाचा मारने के लिए हाथ उठाया वैसे ही बेटे ने चाइल्ड हेल्प लाइन पर कॉल करके पुलिस बुला ली। सरदार जसवंत जी के लिए ये बहुत बड़ी बेइज्जती थी। आगे से बेटे को ना मारने का कुबूलनामा करने पर ही पुलिस की हिरासत से छूट पाए।
दिल तो बहुत टूटा था पर हिंदुस्तानी पिता कहां आसानी से हार मानने वाला था, मन ही मन कुछ सोचते विचारते पत्नी से अपनी जड़ों में वापिस अपने वतन जाने के निर्णय लिया। अभी इसका जिक्र बेटे के सामने नहीं किया। धीरे धीरे अपना कारोबार समेटना शुरू किया और जल्द ही वतन वापसी भी हो गई। यू. एस की धरती से लेकर फ्लाइट तक अपने पर नियंत्रण बनाए रखा। जैसे ही बेटे संग दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर आए,वैसे ही सरदार जी ने बेटे को दो तीन थप्पड़ रसीद किए और कहा अब बुला किसे बुलाना है।
वहां एक पुलिस गार्ड को देखकर बेटे ने उसको अपना पक्ष रखने की कोशिश की पर पुलिस गार्ड ने ये कहकर की तुम्हारा पिता है, तुम्हारी किसी गलती पर ही मार रहा होगा, चुपचाप इनकी बात सुनो कहकर उसकी सारी दलीलें अनसुनी कर दी। तब सरदार जी ने हंसते हुए कहा बेटा ये हिंदुस्तान है यहां मां-बाप से मार खाने वाले को खुशनसीब समझा जाता है । यहां मां बाप बच्चे को 18 साल का होने पर अलग नहीं करते बल्कि पूरी ज़िंदगी साथ-साथ रहने का सपना देखते हैं। बेटा अब कुछ शांत था। उसके लिए सब थोड़ा अलग था पर फिर भी उसके मां-बाप ने सही समय पर अपनी जड़ों में वापसी कर ली थी।
मैं यह नहीं कहती कि विदेश में रहने वाले बच्चे संस्कारी नहीं होते पर कई बार अपनी जमीं पर वापिस लौटना बहुत जरुरी हो जाता है।
डॉ पारुल अग्रवाल