वसीयत –  मधू वशिष्ट

रक्षाबंधन नजदीक आने वाला था लेकिन दीपक  और चाँदनी  दोनों के लिए यह त्यौहार नहीं था। दीपक  और चाँदनी  दोनों के चारों बच्चे अच्छे दोस्त होकर भी बिना वजह की दुश्मनी निभा रहे थे। मामा और बुआ दोनों के घर बच्चों के लिए बंद हो चुके थे। शायद इसका कारण वर्मा जी की अपने बेटे और बेटी को बराबर करने की सनक थी। दीपक  और चाँदनी  दोनों में साल का ही फर्क था। हालांकि दीपक  बड़ा था लेकिन शादी पहले चाँदनी  की हुई थी। वर्मा जी ने उसकी शादी में देने-लेने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी। 

कुछ समय बाद जब दीपक  की भी शादी हुई तो भी चाँदनी  को बहुत कुछ मिला था। दोनों भाई-बहन एक-दूसरे को जी-जान से प्यार करते थे। भाई के दोनों बच्चों के होने के समय चाँदनी  ने एक बहुत अच्छी बुआ का फर्ज निभाया था और भाभी को पलंग से भी नीचे कदम नहीं रखने दिया। चाँदनी  के दूसरे बच्चे होने के समय तक उसकी सासू मां स्वर्ग सिधार चुकी थी। उसके ससुर तो थे नहीं क्योंकि चाँदनी  के पति अकेले ही बेटे थे तो अपने दूसरे बच्चे के समय में वह मायके आ गई थी। भाभी और मां ने मिलकर उसका बहुत ख्याल रखा। लौटकर जब वह वापस अपने  घर गई थी तो ऐसा मालूम हो रहा था जैसे चाँदनी  की आज ही विदाई हो रही हो।

चारों बच्चे मिलजुल कर खेलते थे और दोनों का ही संपन्न परिवार था। चाँदनी  के पति का रेडीमेड गारमेंट्स का बहुत बड़ा शोरूम था। यूं भी उनका ध्यान अपने व्यापार पर ही लगा रहता था। अपने पिता के छोटे से फ्लैट को बेचकर वह 500 गज की तीन मंजिल कोठी बना चुके थे। चाँदनी  के पिता भी सरकारी नौकरी में बहुत बड़े पद से रिटायर हुए थे। उसका भाई भी सरकारी नौकरी करता था। दोनों के घर में कहीं कोई कमी नहीं थी। घर उनका भी बहुत बड़ा था। अचानक एक दिन चाँदनी  के पिता को दिल का दौरा पड़ा और फिर…..।  

चाँदनी  के पिता की लिखी हुए वसीयत जब पड़ी तो पता चला उन्होंने अपने घर को भी अपने दोनों बच्चों में बांटने के लिए लिखा था। चाँदनी  के पास वैसे ही इतना बड़ा घर था, यह अजीब सी वसीयत पर सब हैरान थे। दीपक  ने चाँदनी  को घर में शिफ्ट होने के लिए पूछा तो ना तो यह संभव था और ना ही उन्हें कोई ऐसी जरूरत थी। भले ही घर दो लोगों के नाम हो गया हो लेकिन घर में दीपक  ही अपने परिवार के साथ रहता था। जब से चाँदनी  के व्यापारी पति को यह पता चला कि चाँदनी  के मायके में भी उसके पास जगह है तब से ही उसके मन में आया क्यों ना वह उस घर में भी अपना गोदाम बना दे। 




उसने रेडीमेड कपड़ों का ट्रक चाँदनी  के मायके में उतरवाया और अपने हिस्से के कमरों में गोदाम बना दिया। चाँदनी  को कई बार मां और दीपक  ने कहने की भी कोशिश करी कि इस तरह से ट्रक की आवाजाही में और ऐसे बंद कमरों के कारण मां को और उसके परिवार को बेहद परेशानी होती है। यदि वह यहां आकर रहना चाहे तो सारा परिवार सुख से रह सकता है लेकिन इस तरह से करना तो ठीक नहीं है। वैसे तो कई बार मां ने भी चाँदनी  को समझाने की कोशिश करी लेकिन क्योंकि यह हक चाँदनी  के पापा ने ही दिया था तो मां भी कुछ ज्यादा ना कह सकी।

अब जाने चाँदनी  भी समझना नहीं चाहती थी या उसकी भी यही इच्छा थी की घर का आधा हिस्सा उसका ही रहे। मनों में कटुता बढ़ती ही जा रही थी। बहन को कई बार दीपक  ने कहा कि इस तरह से ट्रक की आवाजाही और घर को स्टोर बनाने से उन्हें बहुत परेशानी हो रही है क्योंकि रेजिडेंशियल जगह पर गोदाम बनाने की मनाही होती है। इसलिए एक दिन छापा पड़ा और घर पर जुर्माना डाल दिया गया। घर को सील होने से तो रुकवा दिया गया। चाँदनी  और उसके पति को लगा कि है यह उसके भाई दीपक  की सोची समझी साजिश है। 

सामान तो उन्होंने जैसे-तैसे जुर्माना देकर छुड़वा लिया लेकिन कुछ दिन बाद दीपक  और उसका परिवार हैरान रह गया जब उन्हें पता चला कि चाँदनी  ने मकान का अपना हिस्सा किसी और को बेच दिया। पूरा घर सकते में आ गया। मजबूरी में घर के बीच दीवार खींचनी पड़ी जिसके कारण कि घर में धूप और हवा दोनों ही बंद हो गए। गुस्से में दीपक  ने जब चाँदनी  से पूछा कि अगर तुझे पैसे ही लेने थे तो तुम बेचने से पहले एक बार मुझसे पूछ तो लेती, मैं ही तुझे पैसे दे देता। चाँदनी  ने भी उधर से भुनभुनाते हुए कहा आपने भी गोदाम की शिकायत करने से पहले हमसे पूछा था क्या? वाद प्रतिवाद बढ़ते गए, दोनों ही एक दूसरे को माफ करने के लिए तैयार नहीं थे। 

यूं ही समय बीत रहा है, प्रत्येक रक्षाबंधन और भाई दूज पर शायद दोनों को कुछ महसूस तो होता होगा? मालूम नहीं, गलती किसकी है? लेकिन मां को तो रह-रहकर एक ही ख्याल आता है और वह अपनी पति की फोटो के सामने रो-रोकर सिर्फ एक ही सवाल पूछती है कि आपने ऐसा क्यों किया?

 मधू वशिष्ट 

 

 

 

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