आज कांताजी और उनके पति वीरेंद्रजी को स्वास्थय दिवस के अवसर पर सरकार द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप मे सम्मानित किया जा रहा था। इतना सम्मान पाकर उनकी आंखों से खुशी के आंसू आ गए और कुछ पलों के लिए वो अपने अतीत में खो गई।
कांताजी उस समय केवल अठारह वर्ष की थी,जब उनकी शादी वीरेंद्रजी से हुई। वीरेंद्र जी के परिवार वालो ने उन्हे एक विवाह समारोह में देखाऔर अपने डॉक्टर बेटे के लिए पसंद कर लिया। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लिए ऐसा रिश्ता वरदान से कम न था । परिवार में कांताजी से छोटी तीन और बहने थी ।
परिवार में हर कोई बहुत प्रसन्न था कि वह इतने बड़े घर की बहु बनने जा रही है। घर में अगर कोई दुखी था तो वो थी कांताजी क्योंकि बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी रही कांताजी को अपना डॉक्टर बनने का सपना टूटता स्पष्ट दिखाई दे रहा था। यहाँ ये कहावत चरितार्थ हो रही थी कि गरीब को बेटी को सपने देखने का भी हक नही होता है।
अपने सपनो को मन में दबाकर वो वीरेंद्र जी की अर्धांगिनी बनकर अपने ससुराल में आ जाती हैं। सारी रस्मो के बाद उन्हें विरेंद्र जी के कमरे में आराम करने के लिए भेजा गया, वहां बहुत जीवविज्ञान की पुस्तके देखकर वो अपने आप को रोक नहीं पाती।
वो पुस्तके उठाकर देखने लगती हैं। उनके पति जो छिपकर खिड़की से अपनी पत्नी को देख रहे थे ,उनका पुस्तक प्रेम देखकर बहुत ही प्रसन्न होते हैं। वीरेंद्र जी उनसे पूछते हैं कि क्या आप आगे पढ़ना चाहती है।
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कांताजी को अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ। वो जवाब में कहती है कि मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं। उनके पति यह सुनकर कहते है कि अब यह सपना हम दोनो का हैं,हम दोनो इसे मिलकर पूरा करेंगे। उसके बाद उनके पति उन्हे मेडिकल की प्रवेश परीक्षा का आवेदन पत्र जमा करवाते है ।
कांताजी पूरी जी जान से तैयारी करती हैं।वह परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर लेती हैं । डॉक्टर बनने के बाद दोनो मिलकर अपना निजी अस्पताल खोलते हैं, जहां गरीबों का निशुल्क इलाज किया जाता हैं। समाज के लिए अपने इस अमूल्य योगदान के लिए उन दोनों को आज सम्मानित किया जा रहा था।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कांताजी का नाम पुकारा जा रहा था , जिसे सुनकर वह अतीत के गलियारे से निकल वर्तमान में आती हैं। साथ की कुर्सी पर बैठे अपने पति की तरफ वह श्रद्धा और प्यार से मुस्कुराती हैं। मन ही मन परमात्मा को इतना समझदार जीवनसाथी देने के लिए धन्यवाद करती हैं।
उनकी इस कहानी से ये सिद्ध हो जाता हैं कि हर सफल महिला के पीछे भी एक पुरुष हो सकता हैं। वो पुरुष उसके जीवन में पिता , पति , पुत्र या मित्र किसी भी रूप में हो सकता हैं।
#पुरुष
ममता भारद्वाज
गाजियाबाद