वन्दे मातरम् – रीता मिश्रा तिवारी

 

जुगनी सुहाग सेज पर पति का इंतजार कर रही है। चेहरे पर घबराहट का नृत्य जारी है।

कमरे में पति परमेश्वर के कदम पड़ते ही,झट लंबा घूंघट किया,और जिठानी की बात याद कर पलंग से उतर सीधा पतिदेव के चरणों में आपनी सारी आकांक्षा, महत्वाकांक्षा, प्रेम सब कुछ अर्पित करने के लिए झुकी गई।

“पैर मालिश का इतना ही शौख है तो,खड़े खड़े करेगी के। चल उठ में लेटू हूं फिर मालिश कर।”

जुगनी तेल ले आई।

“अरे बावरी है के ? की कहवे है..हां आज तो सुहागरत है न चल आजा बैठ।”जुगनी का हाथ पकड़ अपने पास पलंग पर बिठा लिया।

दोनों एक दूसरे को अपलक देखते रहे। शर्माते हुए जुगनी पलके झुका ली।

“इ अंगूठी…थारे वास्ते है,माई कही थी थारे को दे दूं..चल  पहिन ले। माई हिदायत दी थी तुझे पहनाने को “।

जुगनी अपनी उंगली आगे बढ़ा दी।

पति ने अंगूठी उसकी हथेली पर रख्की ” हिम्मत तो देख इसकी अरे…पति हूं थारा; हूं…बावरी है…”और चादर तान कर सो गया।

“अब मारा थोबरा ही देखती रहवेगी।बहुत रात हो गई है थक गई होगी चल सो जा “।

जुगनी मन ही मन बोली “कैसा खड़ूस है,सुना था कि फौजी बड़ा जिंदादिल खुशमिजाज इंसान होवे है। यहां तो ये अपनी माई के कहने पर अंगुठी लाया है। हूं..पहना न सका। बड़ा आया रौब झाड़ने वाला,पति हूं थारा।जैसे मैं इनकी गुलाम हूं,अरे ब्याह कर लाए हो, न की मैं खुद आई हूं। हूं…खड़ूस कहीं का” और धीरे से लाइट बंद करके लेट गई।

जुगनी के ससुराल में बस चार लोग थे।सास,जेठानी, उसका पति और प्यारी सी छुटकी। ससुर और जेठ भी देश की सेवा में शहीद गए थे। तब रणवीर शेखावत पंद्रह साल का था। बीस साल की उम्र में रणवीर माई की मर्जी और अपनी खुशी से फौज में भर्ती हो गया।



सुबह सुबह ही रणवीर को हेडक्वाटर से फौरन वापस आने की खबर आई।

“माई ! मारा छुट्टी खतम हो गया।आज ही वापस लौटना है”।

“अरे ऐसे कैसे अभी जाना है? अभी एक सप्ताह बखत है न बिटवा?”

“जुगनी! हम पहिले भारत मां के पुत्र हैं। इसकी रक्षा सुरक्षा म्हारा(मेरा)प्रथम कर्तव्य है। बाद में सारे नाते रिश्ते। म्हारा बापू ,भायजी देश की खातिर अपनी कुर्बानी दी है। सुन जुगनी! तू सूबेदारनी है सूबेदारनी,वादा कर…यदि हम शहीद हो गए तो तू आंसू न बहाबेगी कमज़ोर न पड़ेगी। छोरा होवे या छोरी उसे भी सुबेदार बनाबेगी “?

उसके माथे को चूमा और कमरे से निकल गया।

आरती की थाल लेकर जुगनी तिलक लगाते हुए बोली “हम वादा करत हैं। ये तिलक और आरती विजय हासिल कर सही सलामत लौट कर आने के बासते है। वादा करो म्हारे से “।

हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच लड़ाई छिड़ गई थी। रणवीर शेखावत अपनी पूरी पलटन के साथ पाकिस्तानी छावनियों और सैनिकों को मारते हुए पहाड़ी की ओर आगे बढ़ते जा रहे थे। दर्जनों की संख्या में हिंदुस्तानी सैनिक मारे जा चुके थे। उसके भी बांह और पैर में गोली लगी थी।खून काफी बह चुका था। उसकी आँखें बंद होने लगी। उसने सोचा अब बचना मुश्किल है।उसने हिम्मत नहीं हारी। दोस्तों को मैं ” ठीक हूं” कहकर आगे बढ़ने का आदेश दिया।खुद को घसीटते हुए एक पत्थर के पीछे छिपकर हिम्मत करके देखा तो उसे, दूर एक पाकिस्तानी छावनी दिखाई दी एक हैंड ग्रेनेड उसके पास बचा था। हाथ में उतना ताकत नहीं बचा था। पुरजोर कोशिश की और फट गया। इधर एक गोली उसके सीने में आ लगी।

सुबेदार रनवीर शेखावत की नजरें ऊपर पहाड़ की चोटी पर लहराते हिंदुस्तानी तिरंगा को देख रहा था। वंदे मातरम् की सलामी के साथ वो मां भारती की गोदी में चिर निद्रा में विलीन हो गया।

युद्ध समाप्त हो गया था। रनवीर का कोई ख़बर न मिलने से सबका मन बेचैन था।

रनवीर शेखावत अमर रहे अमर रहे का नारा सुनकर खुशी से माई और पीछे से जुगनी दौड़ कर बाहर आई। दो पुलिस कर्मी एंबुलेंस से तिरंगे में लिपटा ताबूत बाहर निकाल रहे थे।

जन सैलाब उमड़ पड़ा आंसुओ की बाढ़ आ गई। माई दहाड़े मार रही थी। हे भारत मां एक और बेटा होता तो थारी (तुम्हारी) रक्षा में भेज देती।

जुगनी निःशब्द आरती की थाल ले आई। कलाई से एक एक चूड़ी उतारी और पति के सीने पर माला की तरह सजा दी,बिंदी उसके हथेली में लगा दी , मांग का सिंदूर ले उसके माथे पर विजय तिलक लगा कर आरती उतारी।

उसके सीने से रिश्ते लहू को अंगूठे से अपने माथे पर लगाया और बोली

” सुबेदार साहब! हमने वादा पूरा किया। और आपने…आधा वादा पूरा कियो। आज हम थारे लहू से तिलक करते हैं। म्हारा वादा है… हम आर्मी ज्वाइन करेंगे थारा होनेवाले छोरे को सुबेदार बनाबांगी (बनाऊंगी)

तिरंगे में लिपटे शहीद पति को “वंदे मातरम्” की सलामी के साथ आखरी विदाई दी और दौड़ कर अपने कमरे में जा बंद हो गई

    #रक्षा

रीता मिश्रा तिवारी

भागलपुर बिहार

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