बेटे ने एम टेक किया और उसकी सर्विस दूर शहर में लग गयी , छै सात साल से वो अपने घर साल में दो तीन बार ही आ पाता था गाडियाँ भी बदलनी पड़तीं ।
पहले होस्टल और अब रूम पर उसके लौटते समय घर का वारावरण बोझिल हो जाता । ये एक दो दिन पहले से ही आँखों मे आँसू लिए बेटे की पसंद के नमकीन डिब्बे में भरने में लग जाती !
इसे ये पता ही नहीं था कि बेटे की पसंद अब बदल चुकी थी और ये डिब्बे पहले होस्टल की मेस के लड़के और अब सिक्युरिटी गार्ड खा रहे थे ।
शुरू में उसके वॉलेट में हम दोनों वयस्कों का फ़ोटो ही होता जिसकी जगह अब एक जवान फ़ोटो आ बैठा था जिसे हम दोनों ही नहीं जानते थे ।
होस्टल या मेस में पता नही क्या कैसा खाता होगा ? इनकीं ममतामयी दलील पर हम दोनों मुस्कुरा उठते ।
बेटे की कद काठी और वजन को दिन ब दिन बढ़ता देख मेरे बहुत सारे सवालों के जवाब खुद ब खुद मिल रहे थे ।
बेटे से धौलधप्पे पर मेरा एक ही सवाल होता , ” कुछ चक्कर हो तो बता !” बेटे के चेहरे पर उस वक़्त आयी शर्म मुझे बेहद सुकूँ देती । मैं समझ जाता की कुछ है तो ज़रूर पर उसके चक्कर मे बेटा संस्कार भुला नहीं !
चिंता मुझे शायद तब होती , अगर वो नही शर्माता । माँ इन सब बातों को देखती ही नहीं थी । उसकी हिदायतें बेटे के घर से निकलते वक्त बस ‘ खिड़की से बाहर मत झांकना , गाड़ी से उतरना मत प्लेटफॉर्म पर , ट्रेन में अजनबी से खाना मत लेना ‘ .. तक ही सिमट जातीं ।
बेटे के चेहरे पर उठती खीज़ को मैं देख लेता और उसकी तरफ देख एक आँख मार देता ।
बेटा अब मेरे करीब और अपनी माँ से दूर होता जा रहा था जिसका एक ही कारण था । मैं बेटे के साथ साथ नई हवाओं में उड़ते हुए उसकी उड़ान को और बड़ा और पुख़्ता कर रहा था पर उसकी माँ ? उसके जन्म – वजन को पकड़े थी , उसे छोड़ ही नही रही थी !
अगले साल तक वो शादी कर लेगा आज प्लेटफॉर्म पर उसने वॉलेट में रखा फ़ोटो दिखाते हुए सच बता कर मेरे मन का बोझ उतार दिया था ।
पर क्या उसकी माँ अपने बेटे के वॉलेट में बिना उसको पूछे आ बैठे एक फ़ोटो का वजन सह पाएगी ? सोचता हुआ मैं स्टेशन से बाहर निकल आया ।
निरंजन धुलेकर ।