hindi stories with moral : बचपन में जब भी ननिहाल जाती वैदेही निकुंज और ठीक उसके सामने सड़क के उस पार आशुतोष निवास मेरे लिए आकर्षण का केंद्र होता…
बड़े मामा के दोस्त थे डॉक्टर आशुतोष .. सदर अस्पताल में जेनरल फिजिशियन थे..
वैदेही निकुंज की मालकिन भी डॉक्टर हीं थी…
दोनो घरों की डिजाईन बिल्कुल एक समान… कभी कभी बड़े मामा बोलते नुपुर चलेगी डॉक्टर के घर.. मेरी तो लॉटरी लग जाती… बड़ा मजा आता उनके घर जाकर..
बड़ा सा विदेशी नस्ल का कुत्ता मुझे बड़ा प्यारा लगता.. डॉक्टर साहब के बच्चे बड़े बड़े थे और कॉलेज में पढ़ते थे बाहर… इसलिए मैं जब भी जाती खूब प्यार दुलार मिलता.. चॉकलेट केक मन भर खाती…
मैं भी बड़ी हो रही थी… पढ़ाई के कारण ननिहाल जाना बहुत कम हो गया था.. पर मेरी उत्सुकता जरा भी कम नहीं हो रही थी… दो घर एक जैसे आमने सामने… एक स्त्री और दूसरा पुरुष के नाम का.. आखिर ये राज क्या है?
मेरी शादी तय हो गई थी.. पापा से जिद्द कर के एक बार ननिहाल जाने की इजाजत मांगी.. मेरी आंखों में आसूं देख पापा ने इजाजत दे दी..
और इस बार मैं अपनी उत्सुकता को शांत करने को सोच कर आई थी…
बड़े मामा तो नही रहे दुनिया में… पर हमारे ननिहाल में ऐसा रिवाज है बहु के आने पर और बेटी की शादी तय होने पर रिश्तेदार और जिनके घरों से ज्यादा नजदीकी होती है वो बुलाकर पसंद का खाना खिलाते हैं और उपहार भी देते हैं..
मैं बहाने खोज रही थी कि डॉक्टर साहब के यहां से मेरा बुलावा आ गया …
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वाकिंग डिस्टेंस पर हीं डॉक्टर साहब का घर था… खाना खाने के बाद हमलोग आईसक्रीम का मजा ले रहे थे.. डॉक्टर साहब बड़े मामा को याद कर भावुक हो जाते थे..
पर मेरा ध्यान तो वैदेही निकुंज पर हीं टीका था…
मैने बड़े भोलेपन से सामने वाले घर को देखने की इच्छा व्यक्त की.. डॉक्टर साहब और उनकी मिसेज दोनो थोड़े गंभीर हो गए… फिर अपने कम्पाउन्डर के साथ भेज दिया.. जल्दी आना नुपुर..
जल्दी से रोड पार किया.. दिल जोरों से धड़क रहा था..
गेट के अंदर घुसते हीं देखा बगीचा भी बिल्कुल एक सा फूलों की वेराइटी भी एक सी .. कम्पाउन्डर ने आवाज लगाई बुआ जी प्रोफेसर साहब की भांजी आई है आपसे मिलने..
अंदर से लगभग पचपन साल की मझले कद की गोरी मेम सी दिखने वाली डॉक्टर वैदेही मेरे सामने खड़ी थी माथे पर छोटी सी लाल बिंदी…चिकनकारी का गुलाबी शूट.. कुल मिलाकर सुंदर शालीन स्नेहिल ब्यक्तित्व … आओ बेटा.. मैने चरण स्पर्श किया.. आप हॉस्पिटल नही गई मासी .. मैं बातचीत आगे बढ़ाने के लिए पूछा उन्होंने कहा नाईट शिफ्ट ड्यूटी थी सुबह हीं आई हूं..
डॉक्टर साहब ने कहा था जल्दी आ जाना पर मैं यहां सम्मोहित सी चिपक गई..
इधर उधर की बातों के बाद मैने अपने ईष्ट देव को स्मरण कर जी को कड़ा किया और मन हीं मन ख़ुद को क्षत्रिय होने का वास्ता दिया.. देखिए मेरी अगले महीने शादी होने वाली है लड़का विदेश में सेटल है, मैं अपने ननिहाल सिर्फ आपसे मिलने आई हूं.. मेरी उत्सुकता अगर आप को परेशानी ना हो तो शांत कीजिए.
उन्होंने ने कहा पूछो… मैने अपना प्रश्न दोहरा दिया..
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थोड़ी देर चुप रहने के बाद उन्होंने कहना शुरू किया..
मैं आठ साल की उम्र में बाल विधवा हो गई.. मेरे पति को टीवी की बीमारी थी.. किसी ने बताया था कुंवारा मरने से प्रेत योनि से मुक्ति नहीं मिलती.. शायद लड़की के भाग्य से आपका बेटा बच जाए… पर होनी को कौन टाल सकता है..
मेरे ससुर ने प्रायश्चित करने के लिए मुझे बेटी बनाकर पढ़ाया..
मेडिकल कॉलेज में मेरी मुलाकात डॉक्टर आशुतोष से हुई.. मैं हमेशा चुप और उदास रहती.. आशुतोष भी बहुत धीर गंभीर और लड़कों से अलग.. धीरे धीरे हमारी दोस्ती हो गई..
एक दिन मैंने आशुतोष को अपने विधवा होने की बात बताई…
हमदोनो दिल हीं दिल में एक दूसरे को पसंद करने लगे थे..
हमारी पढ़ाई खत्म हो गई थी.. आशुतोष बोले एमडी करने के बाद हम शादी करेंगे.. मैं शरमा के आंखें नीची कर ली..
एक रोज शाम को बुजुर्ग दंपति जो वेश भूषा से ग्रामीण क्षेत्र के लग रहे थे मेरा दरवाजा खटखटाया..
मैने पूछा जी किससे मिलना है.. डॉक्टर वैदेही से .. जी बोलिए.. अंदर आईए.. मैं हीं हूं डॉक्टर…
बुजुर्ग दंपति लगा जैसे मेरे पैर पकड़ लेंगे.. हिंदी भोजपुरी मिश्रित भाषा में मुझसे जो कहा उसका अर्थ यही था की आशुतोष की शादी कहीं और तय कर दिए हैं पहले हीं.. पढ़ाई में उन्होंने बहुत मदद की है पैसे से…
हमने जुबान दे दी है… पर आशुतोष जिद्द धरे बैठा है शादी तुमसे हीं करेगा.. एक तो तुम्हारी जाति अलग और बाल विधवा भी, बुरा मत मानना बेटी पर हमारे यहां इसे अच्छा नही माना जाता.. तुम हीं आशुतोष को मनाओ.. अगर वो शादी किया तुमसे तो हमे गांव में भात से छांट दिया जायेगा.. इसकी बहन से शादी कौन करेगा.. हमारे पास आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं बचेगा.. ब्राह्मण हत्या का पाप तेरे सर पर आएगा..
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मैने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उन्हें आश्वस्त कर भेजा की आशुतोष वहीं शादी करेगा…
कितना मुश्किल था खुद को संभालना फिर आशुतोष को समझना… कलेजे में चाकू डालकर जैसे किसी ने घुमा दिया हो उफ्फ..
बहुत मुश्किल था आशुतोष को मनाना.. बच्चों जैसा रोता हुआ आशुतोष ओह… इतनी बड़ी सजा मत दो वैदेही .. जीते जी मार डाला..
आशुतोष ने मुझसे वादा लिया मैं लाल बिंदी अपने सुने माथे पर हमेशा लगाऊंगी.. सुनी मांग तो मैं नहीं भर पाया पर..
ये घर भी आशुतोष ने अपने वादे के अनुसार बनाया है.. अपनी पत्नी और बच्चों से कुछ नही छुपाया.. उसके बच्चे अपनी मां से ज्यादा मुझसे जुड़े हुए हैं.. हम दोनों ने भी कभी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया आजतक… आशुतोष की पत्नी माया पहले सशंकित रहती थी हमारे रिश्ते को लेकर पर धीरे धीरे उसे विश्वास हो गया… आशुतोष भी पत्नी को उसके सारे अधिकार दिए.. माया मुझे दीदी कहती है, मैं भी उसे छोटी बहन की तरह मानती हूं..
यही कहानी है वैदेही निकुंज की नुपुर.. मेरी आंखे नम थी.. मैने माहौल को हल्का करने के लिए कहा, तेरे घर के सामने मैं इक घर बनाऊंगा… ये गाना मुझे याद आ रहा है.. हम दोनो फीकी हंसी हंस पड़े…
बोझिल कदमों के साथ भारी मन से मैं वापस आ रही थी..
ऐसी भी मुहब्बत होती है आम जिंदगी में.. ऐसा तो फिल्मों में होता है… शायद हां…
❤️❤️❣️🙏✍️
Veena singh..
When I was working at Civil Hospital Rajkot as RMO, One of my colleagues, who happened to be a staff had become a widow at a very tender age. She studied later on and got married to one of my friends. Luckily a happy end to the tragic story of a young widow. Thanks for sharing the highly emotional and painful story.