वादा – प्रीति आनंद

“आँटी जी, आप हमें कबसे पढ़ाना शुरू करेंगी?” नन्ही-सी लक्ष्मी का सवाल सुन सुमन चौंक गई। अतीत के अंधकार में जी रही सुमन को मानो उस छोटी बच्ची ने वर्तमान में घसीट लिया हो! कोठियों पर काम करने वाली महिलाओं के बच्चों को वह काफ़ी सालों से घर पर पढ़ा रही थी परंतु पति के गुज़र जाने के बाद ये सिलसिला टूट गया था।

दो साल पहले एक ऐक्सिडेंट में सुनील के सिर पर चोट लग गई थी। फिर तो अस्पताल के चक्करों से उन्हें कभी छुट्टी ही नहीं मिली। उसी गाड़ी में तो वह भी सवार थी परंतु ईश्वर की लीला… उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ!

सुनील के जाने के बाद वह ज़िन्दगी से उदासीन हो गई थी। ऊपर से सासू माँ के रोज़ नए- नए फ़रमान…… ये मत पहनो , वहाँ मत जाओ, पूजा-पाठ करो, व्रत- उपवास की तो कोई गिनती ही नहीं… ऐसा लगता था जैसे ज़िंदा रह कर उसने कोई पाप कर दिया हो जिसका उसे भूखे रह कर पश्चाताप करना होगा!

बचपन से एक ही शौक था उसे …. नए-नए जगहों की सैर करना और उन क्षणों को सदा के लिए अपने दिल में क़ैद कर लेना। पर अपने नूतन व्यापार को स्थापित करने में लगे सुनील ने शादी के बाद एक भी छुट्टी नहीं ली। कभी-कभी वो नाराज़ हो जाती तो इतना ही कहते,

“तुम्हारे बेटे के लिए ही तो कर रहा हूँ, जिससे उसे कभी मेरी तरह स्ट्रगल न करना पड़े।” अभि का भविष्य सुनिश्चित करते-करते उन्होंने अपना वर्तमान ही स्वाहा कर दिया!

अभि के बड़े हो जाने के बाद, खुद को व्यस्त रखने के लिए वह कुछ किट्टियों से जुड़ गई तथा सामाजिक कार्य भी करने लगी। उसका यों घर से निकलना तब भी सास को नागवार गुजरता पर बेटे के सामने उनकी एक न चलती। इस मामले में उसे सुनील का पूरा सहयोग प्राप्त था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

धागे प्रेम के – प्राची अग्रवाल : Moral stories in hindi



कुछ माह पहले, अस्पताल में ही, अचानक वे उसका हाथ थामकर कहने लगे,

“मैंने तुम्हें कोई खुशी नहीं दी सुमन, कभी वक्त नहीं दिया, तुमने मेरी वजह से अपनी इच्छाओं का दमन कर दिया! अब लगता है बहुत अन्याय हुआ तुम्हारे साथ! एक वादा करो मुझसे … अगर मुझे कुछ हो गया तो तुम अपनी ज़िंदगी से मुँह नहीं मोड़ोगी। वो सब करोगी जो तुम करना चाहती थी।”

परंतु अब ऐसी कोई इच्छा रही नहीं उसकी। जिजीविषा ही ख़त्म हो गई थी!

“कल से आ जाना लक्ष्मी। और जो साथ पढ़ते थे न तुम्हारे, उन्हें भी ले आना।” बेटे की आवाज़ सुन वह चौंक गई।

“पर बेटा, मैं..,”

“कोई बहाना नहीं मम्मी, आप वो सब करेंगी जो करना आपको अच्छा लगता है जैसे बच्चों को पढ़ाना, समाज सेवा, देशाटन, आदि।”

“क्या कह रहे हो अभि, बहु अब ये सब नहीं करेगी, ईश्वर ने यह दिन दिखाया है तो अब घर पर ही रहेगी, भजन- कीर्तन में मन लगाएगी।”, “कुमकुम भाग्य” देख रही दादी ने टीवी का वॉल्यूम कम करते हुए कहा।

” ऐसा क्यों दादी? मम्मी को अपने हिसाब से जीने का, ख़ुश रहने का पूरा हक़ है।”


“अरे बेटा, हक़ होता तो भगवान सुहाग क्यों छीनते?”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

रिश्तों की महक – डाॅ उर्मिला सिन्हा : Moral stories in hindi

“नहीं दादी, मैं आप की बात से सहमत नहीं, जब ईश्वर ने ज़िंदगी दी है तो जीना थोड़ी छोड़ देना चाहिए? और दादी ….।”

वह दादी के पास आकर बैठ गया।

“….दादी, हम अगले हफ़्ते गोवा जाने का प्लान बना रहे हैं, पाँच दिन के लिए। आप भी चलिए न?”

“अरे बेटा, इस उमर में मैं कहाँ जाऊँगी!”

“पर दादी आप अकेले कैसे रहेंगी? अच्छा फिर आप बुआ के यहाँ चले जाना या उन्हें यहीं बुला लेना। पास ही तो रहती हैं। वैसे आप भी हमारे साथ चलतीं तो अच्छा लगता।”

“मैं कहीं नहीं जाऊँगी बाबू, और तू चिंता न के, बहु होगी न यहाँ मेरी देखभाल करने के लिए।”

“ नहीं दादी, मम्मी भी जाएँगी। इन फ़ैक्ट, ये प्रोग्राम तो पापा ने ही बनाया था मम्मी के लिए। उन्होंने कहा था कि अगर वे संग न जा पाए तो मैं माँ को लेकर जाऊँ। और सिर्फ़ गोवा ही नहीं, उन्होंने तो मुझे पूरी लिस्ट थमा दी है उन जगहों की जहाँ-जहाँ हमें घूमने जाना है। वादा किया है पापा से दादी, निभाना तो पड़ेगा।”

स्वरचित

प्रीति आनंद

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!