आंटी जी, कुछ मदद कर दूं आपकी.. आंटी का दरवाजा खुला था और वह अपने हॉल में कुर्सियां और मेज जमा रही थीं। सूची ने सोचा शायद कुछ प्रोग्राम है इसीलिए आंटी सब कर रही हैं… पड़ोसी होने के नाते सूची ने सुमन जी से पूछा!
“नहीं नहीं बेटा बस हो ही गया है,, बस यह एक बोर्ड बाकी है इसको अपनी बालकनी में लटकाना है” सुमन जी ने अपना काम करते हुए जवाब दिया।
सूची ने अब जरा ठीक से देखा, बोर्ड पर “सुमन हिंदी क्लासेज” लिखा हुआ था। नीचे की तरफ थोड़ा छोटे में लिखा था,”आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को हिंदी की ट्यूशन यहां दी जाती है।”
मतलब आंटी ट्यूशन पढ़ाने वाली हैं बच्चों को और वो भी हिंदी की… हिंदी के ट्यूशन कौन पढ़ता है भला और आंटी को क्या जरूरत पड़ गई इस उमर में इतना परेशान होने की… मन में सोचते हुए सूची अपने घर के अंदर चली गई।
सुबह को पति का ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद सूची और सुमन आंटी कुछ देर अपने अपने घर के बाहर बैठकर आपस में बात कर लेते थे। सुमन आंटी 62 साल की हैं..करीब 10 साल पहले अंकल जी की आकस्मिक मृत्यु के बाद सुमन आंटी बहुत अकेली पड़ गईं। सुमन आंटी की दो बेटियां हैं, बड़ी बेटी की शादी 4 साल पहले हो गई और छोटी बेटी की शादी को भी 2 महीने हो गए हैं।
अंकल जी की कुछ सेविंग्स थीं जिससे सुमन आंटी ने अपनी दोनों बेटियों की शादी धूमधाम से कर दी। छोटी बेटी की शादी के बाद सभी अंदाजा लगा रहे थे कि शायद आंटी अपना घर बेचकर या किराए पर देकर अब किसी एक बेटी के साथ या कुछ कुछ समय दोनों बेटियों के साथ रहेंगी।
छोटी बेटी की शादी के बाद से ही आंटी अपने घर पर नहीं थी इसी कारण से यह सारे अंदाजे लगाए जा रहे थे। आज सूची ने जो कुछ देखा उससे वह थोड़ा अचंभित थी क्योंकि आंटी उससे सारी बातें डिस्कस करती थीं। अभी 5 दिन पहले ही आंटी वापस आए लेकिन कोई ज्यादा बात नहीं करती थीं। सूची ने भी उनको डिस्टर्ब करना सही नहीं समझा। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अब अचानक से ही आंटी ने ट्यूशन क्लासेस करने का निर्णय लिया।
कुछ ही दिनों में आंटी के पास 4 बच्चे पढ़ने आने लगे। सूची के बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते थे और उनको हिंदी की मात्राएं समझने में बहुत परेशानी होती थी। 1 दिन सूची घर के बाहर बैठे धूप सेक रही थी कि आंटी की आवाज उसे सुनाई दी, वो बहुत अच्छे तरीके से बच्चों को हिंदी की मात्राओं के उच्चारण सिखा रही थीं।
मौका देख कर सूची ने आंटी से अपने मन की बात पूछ ही डाली,”आंटी हमें तो लगा कि आप पल्लवी और पूजा के साथ रहेंगी। आपने यहां अकेले रहने का निर्णय क्यों लिया?”
सूची तुम तो अपने घर जैसी हो तुमसे क्या छुपाना… सोचा तो मैंने भी यही था कि बेटियों के साथ रहकर उनकी गृहस्थी देखूंगी। बड़े दामाद ने तो कभी मुझ में और अपने माता-पिता में कोई भेदभाव नहीं समझा। पूजा को भी उन्होंने अपनी छोटी बहन मानकर अपने ही घर से उसकी विदाई कराई और उसके पगफेरे की रस्म के लिए भी वह खुद गए थे उसको लेने।
जब मैं कुछ दिनों के लिए पूजा के साथ उसकी ससुराल रहने गई तो एक शाम उसके सास ससुर के कमरे में जाते हुए मैंने उनकी बातें सुन ली…कि अगर मैं अपनी छोटी बेटी के साथ रहना चाहती हूं तो मैं अपना यह घर अपने छोटे दामाद के नाम कर दूं। यह सारी बातें वह अपने बेटे के साथ कर रहे थे। मैंने पूजा को कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं उसकी नई गृहस्थी में कोई भी तनाव नहीं चाहती।
अगले ही दिन यहां पर कुछ जरूरी काम होने का बहाना बनाकर वहां से आ गई। बहुत सोचा कि सेविंग्स के नाम पर तो कुछ नहीं बचा है। तुम्हारे अंकल जी के जाने के बाद दोनों बेटियों ने ही घर चलाया लेकिन अब तो बैंक में कुछ ही रुपए हैं। हमने अपनी बेटियों को पढ़ा लिखा कर उनके पैरों पर खड़ा किया और दूसरे माता पिता की तरह मैंने भी यही उम्मीद की कि मेरे बच्चे ही मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे।
“आंटी यह तो समाज का नियम बन चुका है कि बिना किसी लालच के तो सगा बेटा भी अपने माता पिता को साथ नहीं रखना चाहता। अब आपने आगे क्या सोचा है आपने,, मेरे से जो भी मदद चाहिए वह मुझे बताइएगा..!!”
सोचना क्या है बेटा, मेरे पति ने अपने खून पसीने की कमाई से और मैंने अपनी हजारों ख्वाहिशों को मारकर अपनी बेटियों के लिए मायका बनाया था। सब कहते थे कि माता-पिता के बाद इनका कोई भाई नहीं है मायका खत्म हो जाएगा लेकिन हमने अपनी बेटियों को पढ़ाया उन्हें इस काबिल बनाया कि वह एक दूसरे का सहारा बन सकें और मायके के नाम पर बस यही घर तो है मेरे पास उन्हें देने के लिए.. यह किसी एक के नाम कैसे कर दूं..!!
तुम्हारे अंकल जी कहते थे कि मैं हाउसवाइफ नहीं हूं मैं होम मेकर हूं… “वह जो वक्त आने पर सिर्फ अपना घर बना ही नहीं सकती, अपना घर चला भी सकती है। बड़ी बेटी के साथ रहते हुए मैंने जाना कि आजकल बच्चे अंग्रेजी माध्यम से जब पढ़ाई कर रहे हैं तो उनको हिंदी पढ़ने और समझने में बहुत दिक्कत होती है और मैंने तो हिंदी की ही पढ़ाई की है। बस इसी विचार के साथ मैंने यह क्लासेज शुरू की हैं। आज मैंने अपने आत्मसम्मान के लिए यह पहला कदम उठाया है।
“आंटी बात तो आपकी बिल्कुल ठीक है और मैं बहुत खुश हूं कि आपने इस उमर में आत्मनिर्भर बनने की राह चुनकर अपने जैसी कितनी ही महिलाओं को प्रेरणा दी है।
वैसे आंटी जी मेरी बुआ जी की बेटी इसी शहर में हॉस्टल में रहती है, वो किसी कस्टमर केयर में नौकरी करती है और जो लड़की उसके साथ कमरे में रहती है वह मेडिकल की स्टूडेंट है। उसको बहुत पढ़ाई करनी होती है तो वो रात में भी कई घंटे पढ़ती है।
मेरी कजिन को इससे बहुत परेशानी होती है और वह अपने रहने के लिए कोई पीजी ढूंढ रही है। मैं उसे अपने घर में रख लेती लेकिन आप जानते हो कि मेरे घर में दो ही कमरे हैं 1 बच्चों का और एक हमारा।
अगर आप चाहो तो पूजा या पल्लवी में से किसी एक का कमरा उसे दे सकते हो। वह आपकी घर के कामों में भी मदद कर दिया करेगी और आपके हाथ में भी हर महीने कुछ पैसे आ जाएंगे।
यह तो तुमने बहुत अच्छी बात बताई, पैसे भी आ जाएंगे और मेरा अकेलापन भी दूर हो जाएगा। तुम्हारी जान पहचान की है तो मुझे कोई समस्या नहीं है,, वैसे भी दोनों के कमरे खाली ही पड़े हैं बस कुछ कपड़े हैं जो मैं एक की ही अलमारी में रख दूंगी।
“ठीक है आंटी मैं शाम को ही उससे और बुआ जी से बात करती हूं। बुआ जी की भी कुछ चिंता कम हो जाएगी।”
आंटी एक काम मेरा भी है, आप मेरे बच्चों को भी हिंदी पढ़ा दिया करोगे उनको मात्रा बिल्कुल समझ नहीं आतीं और मैं ठीक से समझा नहीं पाती।”
” यह भी कोई पूछने की बात है आज से भेज देना दोनों को..!!”आंटी ने सूची के सर पर चपत लगाते हुए कहा।
दोस्तों! यह कहानी वास्तविकता से परिचित है,, आपको यह कहानी कितनी जानी पहचानी लगी अवश्य बताइएगा।
#आत्मसम्मान
स्वरचित एवं मौलिक रचना
नीतिका गुप्ता
एक बहुत अच्छी शिक्षाप्रद कहानी ।
Absolutely
Very nice and inspirational
Khub sundar👌
Enough is enough!