उतरन – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

शगुन ने धीरे से शौर्य का हाथ अपने बाजू पर से हटाया और तकिये के नीचे फंसे अपने लंबे बालों को आहिस्ता आहिस्ता से निकाला, और बेड के पास लगे आदमकद आईने में अपना अक्स निहारने लगी। यूं तो वह काफी सुंदर थी ही ,पर आज वह खुद को बेहद खूबसूरत महसूस कर रही थी। शौर्य के बदन की खुशबू उसके अंग अंग में समा गई थी,और शौर्य भी उसके यौवन की कस्तूरी की महक में  बहक कर दीवाना हुए कितने इत्मीनान से बिस्तर पर सो रहा था।

शौर्य के साथ बीते इन कुछ पलों में इस दैहिक आत्मिक सुकून को महसूस कर उसे खुद लगा जैसे वह किसी स्वर्ग की अप्सरा हो और उसने किसी देवता की समाधि या उसका ध्यान भंग कर दिया हो।

हां वही तो किया था उसने, उसने अपने रूप के माया जाल में फंसा कर अपनी ही सौतेली बहन बरखा के होने वाले पति को अपनी बहन से पहले अपने रुप यौवन में उलझा कर उस बहन को आज जीवन भर के लिए एक ऐसा पति दिया है जो की प्रथम मिलन की पहली कशिश कभी भी उसकी बहन बरखा को नहीं दे पाएगा।

क्योंकि प्रथम मिलन का प्रथम सुख तो  शौर्य के साथ वह भोग ही चुकी थी, और शौर्य की आत्मा तक को उसने अपने रूप यौवन के मायाजाल  में ऐसा कसा था कि वह जिंदगी भर उसको दोबारा पाने के लिए, उसके  साथ प्रथम मिलन के उस सुख को  दोबारा पाने के लिए जीवन भर कस्तूरी मृग की भांति उसे पाने के लिए छटपटाता रहेगा।

न जान उसे क्यों और किस बात पर इतनी नफरत थी ,अपनी सौतेली बहन बरखा से की उससे बदला लेने के लिए उसने अपने कुंवारेपन अपना स्त्रीत्व सब कुछ दाग पर लगा दिया।

उसे आज भी याद है कि किस तरह उसके पिता ने उसे और उसकी मां को छोड़कर उसकी अपनी ही मौसी यानी उसकी मां की बहन से दूसरा ब्याह कर लिया। कहने  को तो दोनों बहने थी पर आज दोनों सौतन के रूप में एक ही घर में ऊपर नीचे रह रही थी। दोनों के बीच बहनों वाला रिश्ता खत्म होकर उनके मन फट चुके थे, मनमुटाव चरम सीमा पर था।

इसमें ना जाने कसूर किसका था उसके पिता का या  उसकी मौसी का या उसकी खुद मां का जो अपने पति को संभाल कर ना रख सकी। पर इस सबका खामियाजा हमेशा से शगुन को ही भुगतना पड़ा।

 कभी स्कूल में कभी समाज में उसे बरखा को अपनी सौतेली बहन के रूप में स्वीकारना पड़ा, ऊपर से पिता का स्नेह  उसकी सौतेली मां और बरखा पर अधिक होने के कारण जिंदगी भर बरखा के छोड़े गए नए-नए खिलौने और कपड़े के साथ उसे बचपन गुजारना पड़ा ।

दोनों  बहने थी पर फिर भी अधिकांश दोनों के बीच अबोला सा रहता। हालांकि बरखा दिल की बुरी नहीं थी पर शगुन को बरखा की उतरन कभी मंजूर नहीं थी। हमेशा हर वो चीज जो बरखा छोड़ देती या उसका मन भर जाता तब उसे दी जाती। 

उसके कोमल मन पर इस बात का इतना इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वह किशोरावस्था तक आते-आते मन ही मन बगावत कर उठी।

कुछ दिन पहले जब बरखा को देखने शौर्य और उसके परिवार वाले  घर आये तो उसने बरबस ही बरखा के होने वाले पति शौर्य को अपनी ओर चुपके से देखते देखा, क्योंकि कहते हैं कि स्त्री के पास छठी इंद्रिय भी होती है तो वह शौर्य की आंखों को देखते ही समझ गई कि शायद शौर्य उसे पसंद कर रहा है। शौर्य को चाय देते समय उसने अपनी उंगलियों से जैसे ही शौर्य के हाथ को  छुआ, शौर्य के बदन में बिजली सी दौड़ गई, एक अजीब सी बिन बोली कशिश उन दोनों के बीच थी।

लेकिन क्योंकि पूरा परिवार बरखा को देखने आया था और बरखा में भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी इसलिए उस वक्त बरखा के लिए ही वह रिश्ता मंजूर किया गया  और जैसा कि होता आया है सबसे पहले हर चीज पहले बरखा को सौंपी जाती रही है इसलिए शौर्य का भी रिश्ता भी बरखा के पसंद करने पर बरखा की ही शादी शौर्य के साथ तय हो गई।

उधर शौर्य ने भी इसे अपने लिए बेहतर समझा और बरखा में ही अपना भविष्य ढूंढने लगा, उसे भी लगा कि शायद शगुन के प्रति आकर्षण  इस उम्र की कशिश भर है जो बरखा के साथ शादी होने पर स्वयं ही खत्म हो जाएगी। 

शौर्य और शगुन ने किसी से भी इस बात का कोई जिक्र नहीं किया। लेकिन इस बात से शगुन के मन में एक और कड़वाहट भर गई और वह दिल ही दिल उन सभी जख्मों की भरपाई करने के लिए तैयार हो गई जो जाने अनजाने उसके और उसकी मां के दिल पर उसके पिता और बरखा की मां के द्वारा लगे थे।

उधर बरखा अपने इस गोल्डन समय को यादगार बनना चाहती थी, तो उसने अपने कुछ खूबसूरत एहसास एक प्रेम पत्र में लिखकर शगुन के हाथों शौर्य के पास भिजवाना चाहा। पहले तो शगुन ने ना-नुकर की, पर न जाने अचानक उसके मन में क्या सूझा ,वह शौर्य के पास जाने के लिए तैयार हो गई।

बस आज ये वही समय समय था जब शगुन देने तो बरखा का प्रेम पत्र आई थी पर अपना सबकुछ शौर्य को सौंपकर जा रही थी। शगुन आईने में देख अपने बाल बांध ही रही थी कि तभी शौर्य की आंख खुली और उसने शगुन का हाथ पकड़ कर उसे अपनी और जैसे ही खींचा उसके लंबे केश शौर्य की छाती पर चारों ओर फैल गये।

शौर्य ने शगुन को कसकर अपनी बाहों में भरते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया, और उसने कहा शगुन प्लीज मुझे छोड़कर मत जाओ मैं दोनों के घर वालों से कह दूंगा कि मुझे बरखा नहीं, तुम चाहिए,

 तो इस पर शगुन ने शौर्य के मुंह पर उंगली रखते हुए कहा शशशशशश ….

जनाब आपके बदन की खुशबू  अपने रोम रोम में समाये लिए जा रही हूं पर इस बात का कहीं जिक्र तक नहीं आए तो यही हम दोनों के लिए अच्छा होगा ,नहीं तो न जाने कौन सी महाभारत हम दोनों के घर में  हो जाएगी। इसलिए समझे ना  होने वाले जीजाजी,जो कुछ भी आज हम दोनों के बीच हुआ उसे एक सुंदर स्वप्न समझ कर भूल जाना और बारात लेकर घर समय पर आ जाना ,मेरी बहन तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही होगी।

ये कहकर शगुन ने शौर्य के बाजूओं से अपने को छुड़ाया  और अपने अस्त-व्यस्त कपड़े समेटते हुए बालों का जूड़ा बनाते हुए घर की ओर चल दी।

निश्चित समय पर बारात घर आई, बरखा दुल्हन की तरह सजी, जयमाला, फेरे सभी रस्में दोनों परिवारों ने बहुत खुशी से मनाई,

जब विदा की रस्म होने लगी तो शगुन ने बरखा को गले लगाते हुए कहा जिस तरह मैंने तुम्हारी उतरन ,तुम्हारे छोड़े हुए खिलौनों से अपना पूरा बचपन जिया है, ठीक उसी तरह अब तुम मेरे छोड़ें हुए खिलौने संग पूरी उम्र बिताओगी और हर रात मेरी उतरन तुम्हारे संग होगी। 

तुम्हारी नये वैवाहिक जीवन के सफर के लिए दिल से शुभकामनाएं मेरी प्यारी बहन। 

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर 

उत्तर प्रदेश

#मनमुटाव

3 thoughts on “उतरन – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi”

  1. उतरन कहानी इस्मत चुगताई की कहानी ‘उतरन ‘को पात्रों के नाम बदल कर चुराई गई है

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