“उस रात का राज़” – कविता भड़ाना

राधा काकी आज बहुत खुश हैं,और हो भी क्यों नहीं,अभी थोड़ी देर पहले पड़ोस के गांव से वहा के जमींदार “राजबहादुर”के एकलौते बेटे के विवाह में विशेष रूप से ढोलक बजाने और मंगलगीत गाने का न्यौता जो मिला है, राधा काकी बेचारी बेऔलाद है और अभी कुछ सालो पहले पति के गुजर जाने से अकेली रह गई है पर गांव वाले राधा काकी का बहुत सम्मान करते है,सब के सुख: दुख में हमेशा साथ रहने वाली राधा काकी बहुत ही मधुर वाणी की मल्लिका है। शादी ब्याह हो या कोई भी शुभ कार्य, उनकी ढोलक की थाप और मंगलगीतों के बिना अधूरे ही लगते।चार दिन चलने वाले विवाह समारोह में हल्दी, मेंहदी, शादी वाले दिन और दुल्हन के स्वागत तक, राधा काकी को ही रंग जमाना था। 

इक्यावन चांदी के सिक्के पेशगी मिले थे और बाकी का ईनाम विवाह संपन्न होने पर मिलेगा। राधा काकी भी अपना सामान बांध, जा पहुंची जमींदार के घर और ऐसा शमा बांधा की उनके गीत और ढोलक की थाप से सब मंत्रमुग्ध हो गए।खूब रंग जमाया काकी ने।….

“राजबहादुर” जी ने खुश होकर राधा काकी को कीमती उपहार, मिठाईयां और नगद पुरस्कार दिया।अब दोपहर बाद राधा काकी ने अपने गांव जाने की आज्ञा मांगी और चल पड़ी तेज कदमों से अपनी बड़ी सी गठरी में अपना सारा सामान लेकर ताकि शाम होने से पहले अपने गांव पहुंच जाए।

गांव करीब ही था तो शाम ढले तक राधा काकी अपने गांव की सीमा तक आ पहुंची थी, पर तब तक अंधेरा भी फैल गया था, गांव अभी कुछ दूरी पर था की तभी राधा काकी को औरतों का एक समूह गीत गाता हुआ आता दिखाई दिया तो काकी ने सोचा हो सकता है की उनकी गैरमौजूदगी में किसी के यहां विवाह या गौना हुआ हो और नई दुल्हन को लाया जा रहा हो, बस यही सोचकर वो भी उन औरतों के साथ गीत गाती चलने लगी।



गहराते अंधेरे और अकेली होने के कारण राधा काकी को उन औरतों का साथ बड़ा ही सुकून दे रहा था, 

पर घूंघट डालने और अंधेरे की वजह से काकी उन औरतों को पहचान नहीं पा रही थी। गांव भी आ गया था ।अब सभी औरतें एक दूसरे के गले लग विदा लेने लगी। राधा काकी भी सब के गले लगने लगी की तभी हवा के तेज झोंके से एक औरत का घुघंट हट जाता है और राधा काकी क्या देखती है की अंदर एक बहुत ही भयानक जला हुआ चेहरा अपनी लाल लाल आंखो से घूर रहा है की अचानक से माहौल पूरी तरह बदल जाता है, वहा मौजूद हर औरत का घूंघट हट जाता है, सब एक से एक भयानक और डरावनी थी। कुत्तों की तेज रोने की आवाजे आने लगती है, वातावरण बेहद खौफनाक होने लगता है, ये सब देखकर राधा काकी लड़खड़ाकर गिर जाती है और देखती है की सब के पैर उल्टे है और वह बेहोश होकर गिर जाती है।

सुबह गांववालो को राधा काकी बेसुध अवस्था में गांव के बाहर मिलती है। जब उन्हें होश में लाया गया तो वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी और अपना मानसिक संतुलन भी खो चुकी थी। मुंह से लगातार बहती हुई लार ,हिलती गर्दन और आंखों में खौफ लिए राधा काकी मरते दम तक इसी अवस्था में रही।

“उस रात का राज” हमेशा के लिए राधा काकी के दिल में ही दफन हो कर रह गया।

स्वरचित

कविता भड़ाना

 

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