उसूल था उसके जीवन का …”जब तक असमर्थ न हो किसी को तकलीफ न दो । पर नियति भी सबके हिसाब से कहाँ चलती है । हाथों में मेहंदी , भर हाथ चूड़ियाँ, सुंदर गुलाबी सिल्क साड़ी, पावँ में महावर, पायल और बिछुए ..उम्र के जिस मोड़ पर थी वो स्वाभाविक चमक आ जाती है । और आज तो उसकी शादी की दूसरी सालगिरह थी । बन – ठन के बिल्कुल खुबसूरती की मिसाल लग रही थी । नन्दिनी नाम था उसका ।
आठ महीने की बेटी त्रिशा उसके पास थी । अभी तो एक घण्टे पहले ही उसके पति पवन से उसकी बात हुई थी कि ऑफिस से बस निकल रहा हूँ तुम तैयार रहना । आकर डिनर के लिए चलेंगे, अगर टाइम रहा तो तुम्हें शॉपिंग भी करा दूँगा, आज की शाम तुम्हारे नाम ।
और पवन की बातें सुनकर नन्दिनी खिलखिलाकर हँस दी । पवन इनकम टैक्स ऑफिस में काम करता था ।घर से मुश्किल से आधे घण्टे की दूरी पर ऑफिस था ।
समय से निकल चुका था फिर भी नन्दिनी ने घड़ी देखा तो डेढ़ घण्टे में भी वो नहीं पहुंचा था । जैसे ही नन्दिनी बालकनी में देखने जाती है फोन की घण्टी बजती है । नन्दिनी ने फोन उठाया । फोन किसी अंजान के नम्बर से था । समाचार सुनकर नन्दिनी के हाथ से मोबाइल छूट कर गिर गया । उस अंजान ने कहा..”मैं इनकम टैक्स के पास वाले बिजली मार्केट से बात कर रहा हूँ । आपके पति पवन दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं और गम्भीर हैं । उनके पॉकेट में आपका नम्बर मिला इसलिए आपको फोन किया ।
नन्दिनी के होश हवास उड़ गए । और वो बच्चे को पड़ोस में छोड़ कर दौड़ते हुए कदमों से भागी । दुर्घटना वाले स्थान पर पहुँचकर देखा तो बहुत भीड़ थी । लोग अभी अपनी गाड़ी में ही बैठाने में लगे थे । नन्दिनी भी साथ में गयी
लेकिन पवन ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया । अब वातावरण में चारों ओर सिर्फ नन्दिनी की ही चीखें सुनाई दे रही थीं । दो पल में सारे अपने लोग अजनबी लगने लगे थे ।
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पवन के मम्मी – पापा को और अन्य रिश्तेदारों को भी खबर किया गया । नन्दिनी की मम्मी और दीदी एक ही शहर में दो घण्टे की दूरी पर रहते थे । वो दोनो एक ही साथ आ गए । नन्दिनी ने रोते – रोते अपना दुःख बांटते हुए कहा..क्या जवाब दूँगी मम्मी और पापा जी को ? नन्दिनी अंदर ही अंदर विचलित हो रही थी स्थिति को भांपते हुए ।
उसका दिमाग आशंकाओं से घिर गया…”मम्मी जी आएँगी तो मुझे न जाने कितनी खरी – खोटी सुनाएंगी और इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार भी मुझे ही ठहराएंगी।छह से सात घण्टे बीतते – बीतते पवन के मम्मी पापा मृदुला जी और रूपेश जी पहुँच गए नन्दिनी के घर ।
रूपेश जी और मृदुला जी के अपार दुःख की कोई सीमा नहीं थी । नन्दिनी को गले लगाकर दोनों ने अपना दुःख प्रकट किया । पड़ोसी भी नन्दिनी की बेटी को लेकर उसके घर मौजूद थे । मृदुला जी ने उसे अपने गोद में लेकर खूब दुलाराऔर उसका चेहरा अपने दुपट्टे से साफ करते हुए उसे दूध गर्म करके पिलाया । बच्ची अब सो चुकी थी ।
सारा क्रिया – कर्म समाप्त होने के बाद एक जगह सबकी बैठक हुई । नन्दिनी को ये भय अंदर ही अंदर सता रहा था कि लोग जिम्मेदार और दोषी उसे ही बताएँगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । नन्दिनी के पापा कमलकांत जी ने अपनी बात नन्दिनी के ससुर के सामने रखते हुए पूछा…”समधी जी ! आगे के लिए विचार तो हमें आपस में मिलकर ही लेना होगा । मेरी बेटी बहुत भावुक और कमजोर है, लोगों की नज़रों का सामना अकेले नहीं कर पाएगी
। अगर आपको ऐतराज न हो तो अपनी बिटिया को हम वापस अपने साथ रखना चाहते हैं । वो इतना बड़ा जीवन अकेले नहीं काट पाएगी यहाँ, यादें जुड़ी हैं उसकी उसके पति के साथ । हर कोने हर दीवार पर पवन की यादों का पहरा है । मानसिक सुकून के लिए बस कह रहा हूँ ।
नन्दिनी की मम्मी ने कहा…समधी जी, समधन जी ! आप सब त्रिशा से मिलते – जुलते रहिएगा हमें कोई आपत्ति नहीं है । # ये जीवन का सच है कि पहाड़ जैसा बड़ा जीवन बिना जीवन साथी के नहीं कटता । हाथ जोड़कर आपसे आग्रह है हमारी बेटी को हमारे साथ विदा कर दीजिए । नन्दिनी के कमरे में सारी वार्तालाप साफ सुनाई दे रही थी । वो अपनी शादी का एलबम निकालकर अपलक अपने और पवन की तस्वीर देखे जा रही थी ।
बातचीत के दौराननन्दिनी की मम्मी ने कहा…” इसकी कोई गलती कोई दोष नहीं । अनहोनी का क्या पता, किसके साथ क्या हो जाए , ताने – उलाहने से भी उसकी मनोदशा खराब हो सकती है । बोझिल माहौल देखते हुए नन्दिनी की मम्मी चाय बनाकर ले आईं । चाय की घूँट भरते ही जैसे सबका सिर थोड़ा हल्का लग रहा था ।
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चाय पीते ही रूपेश जी ने कहा..”आपलोगों की बातें सही हैं कि यादें जुड़ी हैं हमारी बहु की बेटे के साथ, पर क्या आपने सोचा कि हमारे पास तो हमारे बेटे की निशानी भी नहीं रह जाएगी । हमारी इच्छा है कि छोटे बेटे अमन के साथ नन्दिनी शादी के बंधन में बंध जाए ।
नन्दिनी के ससुर के मुंह से ये बातें सुनकर नन्दिनी के मम्मी – पापा अवाक रह गए । नन्दिनी की मम्मी ने कहा…”जब अमन की शादी निधि से तय होने जा रही है अगले महीने तो हम अपने विचार उसपर कैसे थोप सकते हैं । कमलकांत जी कुछ बोलते इससे पहले ही रूपेश जी बोलने लगे..”कमलकांत जी ! हमारे दुःख की कोई सीमा नहीं है, आप सब ये क्यों समझ रहे हैं कि आपलोग हमारे दुःख के जिम्मेदार हैं । शायद ईश्वर ने ही पवन को इतनी सी ज़िन्दगी देकर भेजा । हम आपको नहीं बस स्वयं को दोषी मानते हैं कि जीवन के आखिरी क्षण भी अपने बेटे को नहीं देख पाए ।
जिसे जाना था वो तो गया पर हमारे घर की रौनक को इस तरह मत उजाड़ कर जाइये । जहाँ तक बात है अमन की शादी तय होने का तो अभी तक हुई नहीं है । निधि तो अविवाहित है उसे कोई भी मिल जाएगा और इतना दुःख भी नहीं होगा ।
पर नन्दिनी के टूटे हुए घर को बसाने के लिए हमें अमन से उचित वर नहीं समझ आ रहा ।
नन्दिनी बिस्तर से सिर टिकाकर पवन की फोटो देखते हुए सोच रही थी..”ईश्वर ने मुझसे इतनी बड़ी चीज छीनी तो सास – ससुर के रूप में मुझे इतने अच्छे मम्मी – पापा दे दिया ।
अमन अब तक मूक बैठे सबकी बातें सुन रहा था । रूपेश जी ने इशारों में उससे पूछा तो वो मान गया और दो टूक बोला..”अगर मैं इस तरह भाभी के खुशी का कारण बन सकता हूँ पापा तो मैं तैयार हूँ ।
नन्दिनी की मम्मी ने कहा..”रिश्ता थोड़ा अजीब नहीं होगा, कल तक भाभी कहलाने वाली नन्दिनी अमन को पति के रूप में कैसे स्वीकारेगी ? कितना बुरा लगेगा ।
मृदुला जी ने सबको भर नज़र देखते हुए कहा..”यहाँ अच्छे और बुरे सोचने का समय नहीं अब , इस एक फैसले पर सबकी खुशियाँ टिकी हुई हैं । हमारी बहु हमारी ही रह जाए, हमारी गृहस्थी खुशहाल हो जाए और नन्दिनी को भी जीवनसाथी मिल जाए और क्या चाहिए ।
रिश्ते के लिए नन्दिनी के मम्मी – पापा और अमन ने नज़रों से ही स्वीकृति दे दी ।
बातें लगभग खत्म हो चुकी थीं । सब उठने ही वाले थे कि नन्दिनी सिसकते हुए आकर मृदुला जी और रूपेश जी के गले लगकर ज़ोर – ज़ोर से रोने लगी ।
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मृदुला जी ने बगैर कुछ पूछे अपने आगोश में उसे भरकर कंधे से चिपका लिया और बालों को चेहरे से हटाते हुए आँखें बंद करके कहा..”आपलोगों ने तो अपना फैसला सुना दिया मम्मी – पापा । मुझसे भी मेरी मर्जी पूछिए । रूपेश जी ने नन्दिनी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा..”क्या बेटा ! तुम्हारी ही ज़िन्दगी के लिए हम रास्ता निकाल रहे हैं ।
नन्दिनी ने आँसू पोंछते हुए कहा..”मुझे अमन के साथ रिश्ते में नहीं बंधना, वो मेरे देवर हैं और रहेंगे, पवन के चले जाने से रिश्ते बदल नहीं जाएँगे । और मम्मी पापा ! मुझे मायके भी मत भेजिए । आपलोगों ने इतना प्यार और स्नेह दिया मैं पवन की यादों के सहारे त्रिशा के साथ आप सबका मुख देखकर ज़िन्दगी काट लूँगी । पर इस तरह से शादी करके अमन का सामना नहीं कर पाऊंगी ।ये मेरा फैसला है , अगर आपको स्वीकार हो तो ठीक नहीं हो तो भी मुझे एक कमरे में कहीं जगह दे दीजिए, खुशी – खुशी गुजर – ,बसर कर लूँगी ।
मृदुला जी ने अपनी पकड़ ढीली करते हुए कहा ..#ये जीवन का सच है । तुम्हें स्वीकारना होगा बेटा । बिना पति के स्त्री अधूरी है हर जगह उसे झेलना पड़ता है ।
नन्दिनी ने कहा ..”आप दोनों के साथ रहूँगी हमेशा और तीसरी हिम्मत मेरी बेटी है । मुझे किसी और के लिए सोचने देखने की जरूरत नहीं है । पर ये भी #जीवन का सच है मम्मी – पापा कि किसी के चले जाने के बाद कोई उसका रिक्त स्थान ले नहीं सकता । किस्मत ने मुझे इतना बड़ा धक्का तो दिया पर इतने अच्छे माँ – बाप से भी मिलवाया । मुझे रिश्ते में बांध कर कमजोर मत कीजिए और सबके आगे नतमस्तक होकर वो धीरे – ,धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ रही थी ।
अब किसी की हिम्मत नहीं थी कि उसकी हिम्मत देखकर कोई सवाल – ,जवाब कर सके । सबको अपने सवालों का जवाब मिल गया था और उसका चेहरा दृढ़ता और आत्मविश्वास से भरपूर दिख रहा था ।
मौलिक, स्वरचित
#जीवन का सच है