उसे कैसे माफ कर दूं – कमलेश आहूजा   : Moral Stories in Hindi

“मम्मी,बुआ रोज रोज मुझे फोन करके बोलती है,कि आप उसे माफ कर दें और पहले की तरह दोनों परिवार एक हो जाते हैं।आप बुआ को माफ करदो ना..माफ करने वाले का दिल बहुत बड़ा होता है।”रोहित दुखी होते हुए बोला।

“काश! माफ कर पाती..!! पर क्या करूँ जब भी तेरी बुआ की बातें उसका व्यवहार याद आता है तो मैं तड़प उठती हूँ और न चाहते हुए भी मुझे उससे नफरत होने लगती है।” सरिता की आँखों से आँसू बहने लगे वो फिर से बीती बातों को दोहराने लगी..


“तेरी बुआ से हमारी खुशियाँ देखी नहीं जाती थीं।हमेशा यही कहती रहती थी,कि तुम लोग तो खुश हो तुम्हें किस बात की चिंता है।एक ही तो बेटा है वो भी पढ़ाई में होशियार है।उसकी अपने पति के साथ बनती नहीं थी इसलिए उससे मेरे और तेरे पापा का प्यार देखा नहीं जाता था।

किसी न किसी बात को लेकर पापा को टेंशन देती रहती थी।आए दिन पापा से पैसे भी माँगती रहती थी।छोटी बहन थी इसलिए पापा ने कभी मना नहीं किया।चाहे जैसे भी परिस्थिति रही हो उसकी डिमांड पूरी की।मैंने भी कभी उनका हाथ नहीं रोका।क्योंकि पापा ने मुझे किसी चीज की कमी नहीं रखी थी।

बुआ की डिमांड्स तब और बढ़ गईं जब उसके पति का देहांत हो गया।पापा ने जैसे तैसे भाग दौड़कर उसकी विधवा कोटे में सरकारी नौकरी लगवा दी। जबकि उसका भरा पूरा परिवार था फिर भी वो हर बात के लिए पापा को ही परेशान करती थी

क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि हम लोग शांति से रहें।जब उसके बेटे बेटी बड़े हो गए और नौकरी भी करने लगे तो एक दिन पापा ने उससे कहा,कि अब तो तुम तीनों कमा रहे हो किस चीज की कमी है?तो उसने सहानुभूति पाने का एक और बहाना ढूँढ लिया।

वो पापा से बोली,कि उसका बेटा तो सारी कमाई खाने पीने में उड़ा देता है।घर में कुछ देता ही नहीं।पापा बेचारे फिर परेशान हो गए।” सरिता एक साँस में सब बोल गई।

“पापा ने तो कभी ये सब मुझे बताया नहीं।”

“हाँ बेटा,क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि तू परेशान हो और तेरी पढ़ाई में किसी प्रकार की रुकावट आए।और फिर बुआ की तरह उन्हें रोने की आदत नहीं थी ना।बस मेरे साथ शेअर करते थे वो सब बातें।क्योंकि दादा दादी जब तक रहे वो भी बुआ की ही बात सुनते थे

उन्हें पापा से कोई हमदर्दी नहीं थी।चलो सब बातों पे एक बार को मिट्टी डाल भी दूं पर वो दिन कैसे भूल जाऊँ..जब रविवार के दिन पापा खाना खाकर दोपहर को आराम कर रहे थे..कि किसी का फोन आया।पापा जोर जोर से बात कर रहे थे।कामवाली उस कमरे मे पोछा लगा रही थी।

बाहर आकर मुझसे बोली,भाभी जाने किसका फोन था?भैया जोर जोर से बात कर रहे थे।उसके जाने के बाद मैंने पापा से फोन के बारे में पूछा तो वो बोले बुआ का फोन था।पता नहीं उसने ऐसा क्या कहा,कि शाम को पापा की तबियत बिगड़ गई।मैं घबरा गई और पड़ोस वाले शर्मा अंकल को बुला लाई।

हम उन्हें हॉस्पिटल ले जा ही रहे थे कि रास्ते में उन्होंने दम तोड़ दिया।डॉक्टर ने पापा की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया था।पापा का बी पी हाई रहता था

तो शायद हार्ट अटैक का कारण टेंशन भी हो सकता है,ऐसी डॉक्टर ने संभावना जताई थी।तू उस समय इंटरव्यू देने गया हुआ था।तुझे तो सब मालूम है ना।”

“हाँ माँ,इसी बात का ही तो दुख है कि मैं आखिरी समय में उनके पास नहीं था।”

“मौत तो इक दिन सबको आनी ही है,चाहे फिर कारण कुछ भी हो बस यही सोचकर मैंने अपने मन को समझा लिया पर उस दिन पापा के चौथे पर जब तेरी बुआ को किसी रिश्तेदार से ये कहते सुना,कि मेरा लड़का बहुत ही लायक है और बड़ी कंपनी में नौकरी करता है।

तनख्वाह भी अच्छी है उसके लिए कोई लड़की बताओ तो मेरे सब्र का बाँध टूट गया।कोई बहन कैसे इतनी निष्ठुर हो सकती है.?जवान भाई को गए अभी चार दिन भी नहीं हुए और उसे अपने बेटे की शादी की पड़ गई।उससे भी बड़ी बात तो ये थी कि जिस बेटे को लेकर पापा को परेशान किया करती थी

कि मेरा बेटा गलत संगत में है,वो उनकी मौत के तीन दिन बाद ही इतना लायक कैसे बन गया?मैंने उस समय तो कुछ नहीं कहा..!!”

“पर बाद में बुआ को तेरवी की रस्म में आने से मना कर दिया।क्योंकि आप नहीं चाहती थीं कि बुआ को देखकर आप और दुखी हों।इस बात के लिए बुआ ने आपको पूरी बिरादरी में गंदा भी किया।” रोहित ने सरिता की बात को पूरा किया।

“जिससे मेरी खुशियाँ देखी नहीं गई?जिसने मेरे पति को चैन से जीने नहीं दिया?तू ही बता कैसे माफ कर दूं उसको?मेरा दिल नहीं है इतना बड़ा।”

“मैं आपका दुख समझता हूँ माँ।पर माँ बुआ जैसी भी हैं आखिर हैं तो पापा की बहन ना।और वो अपनी बहन से कितना प्यार करते थे..ये तो आप भी जानती हैं।तो बस पापा कि खातिर आप बुआ से बात करो और उन्हें माफ कर दो।” कहकर रोहित सरिता से लिपटकर रोने लगा।

बेटे की बातों से सरिता का दिल पसीज गया और उसने अपने दिवंगत पति की खातिर नंद को फोन किया।
“हेलो,वीना कैसी हो?”


“भाभी,मैं आज बहुत खुश हूं.. आपने मुझ जैसी नालायक बहन को माफ कर दिया।सच में आपका दिल बहुत बड़ा है।मैं आपके पास आ रही हूं।”वीना उत्साहित होकर बोली।
वीना सरिता से मिलने आई तो उसने भी पिछली बातों को भुलाकर उसे दिल से अपना लिया।

वीना अब बिल्कुल बदल चुकी थी..सरिता के हर दुख सुख में उसके साथ खड़ी रहती थी..सरिता खुश थी बस उसे यही दुख था कि काश ! ये दिन देखने के लिए उसके पति भी होते।

कमलेश आहूजा

“मनमुटाव”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!