उसमें जरा भी संस्कार नहीं है…(भाग 2)-रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : मम्मी अकेली ना पड़ जाए ये सोच कर पृथा ने कार्तिक से कह कर अपनी मामी सास को भी अपने घर बुला लिया (जो उसी शहर में पास में ही रहती थी और उन लोगों को अच्छें से जानती भी थी और हमेशा उनका यहाँ आना जाना लगा रहता था)ताकि दोनों समधन का मन भी लगा रहे और मेहमानों का आवभगत भी हो सके….क्योंकि पृथा की माँ जेठानी के परिवार को बस छह साल से ही जान रही थी पर मामी सास बारह साल से। 

खैर पृथा दो दिन कलकत्ता घूम कर आ गई।

जेठानी के पिता और भाई चेकअप करवा कर चले गए थे 

घर में मामी सास  मम्मी ही रह गई थी… मामी सास भी जाने को तैयार थी की पृथा ने कहा चाय बनाकर लाती हूँ पीकर जाइएगा ।

मामी सास और मम्मी बातें कर रही थी,”देखिए पृथा को ये सब मत बताइएगा जो भी बड़ी बहू के पिताजी बोल रहे थे….मैं भी छह साल से पृथा को देख रही हूँ वो ऐसा कभी कर ही नहीं सकती….वो बस अपनी बेटी की तारीफ करते रहते है….आप भी दिल छोटा मत कीजिए…वो आदमी है ही ऐसे कुछ भी बोलते रहते हैं…आदत से लाचार है क्या कीजिएगा।” 

ये सब बातें कमरे में आ रही पृथा कानों में पड़ी जो हाथ में चाय की ट्रे लेकर इधर ही आ रखी थी वो सोचने लगी आखिर ऐसी क्या बात जेठानी के पिताजी मेरे लिए बोल गए।

खैर वो तब कुछ भी ना पूछी जानती ही थी कि माँ बता ही देगी।

मामी सास चाय पीकर अपने घर चली गईं।

‘‘बेटा तुमसे कुछ बात पूछनी है?‘‘ माँ ने उनके जाने के बाद कहा

‘‘ हाँ पूछो ना क्या हुआ?‘‘ पृथा परेशान तो थी ही पर खुद को संयत कर बोली

‘‘तुम अपने ससुराल में कभी ऐसा की हो क्या कि घर के सभी बड़े भूखे बैठे है और तुम कार्तिक के साथ बैठ कर एक ही थाली में खा ली हो वो भी तब जब तुम्हारे ससुराल में बहुत सारे लोग आए हुए थे ?”

‘‘ ये क्या बोल रही हो माँ? मैं तो सबसे आख़िरी में अपना खाना लेती हूँ वो भी सबको खिलाकर….ये तुमसे किसने कहा और तुम मान भी गई ?”पृथा  को सुनकर गुस्सा आया

‘‘ वो ऽऽ वो तुम्हारी जेठानी के पिता बोल रहे थे,…आपकी बेटी संस्कारहीन है …उसको जरा भी संस्कार नहीं है कि पहले घर के बड़ों को खाना खिलाए फिर खुद खाए …..एक बार घर में इतने सारे लोग थे पर किसी को भी वो खाने को नहीं पूछी और खुद कार्तिक के साथ खाने बैठ गई….मेरी बेटी तो ऐसा कभी नहीं करती।”

 ‘‘माँ तुम ये सब सुनकर …सच मान ली….ओहहहह हाँ याद आया …माँ वो ऐसा क्यों बोल रहे होंगे…..एक बार ससुराल में कोई प्रोग्राम था ….घर में बहुत सारे लोग आए हुए थे सबने दोपहर का खाना खा लिया था….पर कार्तिक उस वक्त घर पर नहीं थे मैं उनका इंतज़ार कर रही थी…शाम का वक्त था जब कार्तिक बाहर से भूखे आए ….मैं उनको खाना देने गई तो वो मुझसे पूछे तुमने खा लिया….? 

तुम जानती ही हो माँ मैं उनके बाद ही खाती हूँ….मैं बोली आपका ही इंतजार कर रही थी तो बोले आओ साथ में ही खा लो….शायद उस दिन ही वो देखे होंगे….जिस बेटी की वो इतनी तारीफ कर रहे हैं ….वो तो घर में सबसे पहले खा लेती है….कहती हैं भूख बर्दाश्त नहीं होता ….उपर से सबके खाने का कोई वक्त तय तो है नहीं…..मैंने खुद कितनी बार देखा है….कैसे इंसान हैं वो …. देखो मेरे घर में आकर मेरी ही माँ से मेरी झूठी शिकायत कर गए और अपनी बेटी को संस्कारी और मुझे संस्कारहीन बता गए….तुमने कुछ कहा तो होगा नहीं?”पृथा को जेठानी के पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था

‘‘ बेटा तेरी जेठानी के पिता थे…..मैं कैसे कुछ बोल सकती थी…गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर ये सोच ज़रूर रही थी कि मेरी बेटी ऐसा कर ही नहीं सकती …..पर कुछ बोल ना पाई क्या पता कार्तिक को पता चले तो वो बुरा ना मान जाए ये सोच चुप रह गई….पर मामी सास ने कहा था पृथा कभी ऐसा नहीं करती है…..यहाँ तो हम लोग अक्सर आते रहते हैं ….हम जब भी आते हैं या किसी फंक्शन में ही क्यों ना जाए सबको पूछ कर ….खाना देकर ही खुद खाती है आपको गलतफहमी हुआ होगा…..बेटा मुझे सच में गुस्सा बहुत आया उस वक्त ऐसा लगा कि ऐसे इंसान के लिए कार्तिक मेरी बेटी को छोड़ कर जा रहे थे उनकी सेवा करने के लिए जिनके मन में तेरे लिए कुछ है भी नहीं और तुम पागल खुद के पापा नही है तो जेठानी के पिता को पिता समझ रही थी।”पृथा की माँ दुखी होकर बोली

पृथा ने जब ये बात कार्तिक से कही तो वो बोले,‘‘ अरे वो कुछ भी बोलते रहते हैं उनकी बात पर गौर मत किया करो।”

‘‘ नहीं कार्तिक ये बात मेरे दिल के लगी है… गलती करती तो समझ आता.. और मुझे संस्कार हीन कह कर चले गए… अब मेरे मन में उनके लिए कुछ भी नहीं रह सकता… ना सम्मान ना आवभगत करने की हिम्मत….जो एक माँ से उसकी ही बेटी के घर में चाय की चुस्की लेकर उसकी बुराई करें….जिसके घर में आकर वो रह रहें हैं ऐसे इंसान को इज़्ज़त तुम दे सकते हो मैं नहीं….मुझसे अब उनकी तीमारदारी की उम्मीद ना ही करना ….अगले महीने जब वो फिर से आए तो तुम समझ लेना कैसे क्या करना है…पता नहीं संस्कार किसे कहते हैं और संस्कारहीन किसे?” पृथा का मन उनकी इस बात से खट्टा हो चुका था वो सोच रही थी जब भी वो अपने जेठ जेठानी के घर जाती थी और वो लोग होते है तो बहुत इज़्ज़त सम्मान देती थी पर क्या अब दे पाऊँगी…शायद कभी नहीं ।

उसके बाद एक बार पृथा ने अपनी सास से भी पूछा ,”क्या मैं यहाँ आकर ऐसा करती हूँ जैसा की भाभी के पिताजी ने मेरी माँ से कहा ?”

तो वो भी बोली,‘‘ नहीं बहु ,पर उनकी आदत है कुछ भी बोलते रहते हैं उसपर ध्यान मत दो।”

पर पृथा ये बात भूल नहीं पाई कोई इंसान ऐसा कैसे हो सकता है जो उसके घर आकर उसे ही संस्कारहीन की उपाधि दे जाए जब सामने वाले ने कभी ऐसा कुछ किया ही नहीं हो।

जिसकी बात होती वो भी झूठी शिकायत वो इंसान चाहकर भी पहले जैसा ना बन पाता ना पहले जैसी इज्जत दे पाता है ….बहुत बार जेठानी के पास जाना हुआ उनके पिताजी से सामना हुआ पर पृथा नमस्ते से ज्यादा इज्जत ना दे पाई….ये शायद उसके संस्कार ही थे या वो संस्कारहीन थी जो वो ये बात  कभी भी अपनी जेठानी से कह ना पाई।

झूठी बात बहुत गहरे लगती हैं जो पृथा के दिल को लग गई थी।

आप सब इस बारे में क्या कहेंगे क्या पृथा गलत थी या फिर संस्कारी  नहीं थी… या सच में वो संस्कारहीन थी ?

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#संस्कारहीन

story P M 

2 thoughts on “उसमें जरा भी संस्कार नहीं है…(भाग 2)-रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi”

  1. दुनिया की रीति है
    बस नजर और नजरिए का अंतर है
    कोई पत्थर भगवान की पदवी तभी पाता है जब देखने वाले का नजरिया सही हो अन्यथा वह उसे पत्थर ही समझेगा।

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