कुमार जी शहर में एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब करते थे। शहर में ही उनका बंगला था और उनके पास सभी तरह की शहरी सुख सुविधाएँ थी। बच्चे कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ते थे और एक अच्छा जीवन जी रहे थे। वर्ष में एक दो बार कुमार जी का परिवार के साथ गाँव आना जाना हो जाता था पर बेटी के जन्मदिन पर विशेषकर गाँव आना नही भूलते थे।
बेटी के जन्मदिन को वो उत्सव के रूप में मनाते थे। घर मे दिए जलाना, माता पिता को कपड़े देना, पूजा पाठ करना और बच्चों को संस्कार ज्ञान देना नही भूलते थे।
इस बार जान्हवी का आठवाँ जन्मदिन था। गाँव के गरीब घरों के लोगो को भोजन करवाना और दान पुण्य करने की योजना बनी। उन्ही बच्चों के संग शाम को दिए जलवाना और फिर उत्सव का आनंद लेकर भोजन इत्यादि होना था। खुद जान्हवी भी बहुत खुश थी कि हर बार की तरह उसका जन्मदिन दादा दादी जी के पास अपने गाँव वाले घर में मनाया जाएगा।
उस दिन घर की साफ सफाई हुई, गाँव के कुछ चुनिंदा निर्धन लोगों के घर न्योता दिया गया । उस दिन सुबह जान्हवी से पूजा पाठ करवाया गया।
शाम का वक्त हुआ तो घर पर मेहमान आने शुरू हो गए। उन सभी का अच्छे से स्वागत हुआ। करीब बीस बच्चे आये थे और लगभग उतने ही उन बच्चों की माँ या पिता भी थे।
इसके अलावा मिश्रा परिवार के अन्य रिश्ते वाले मेहमान भी आये थे। शाम को बच्चों से दिए जलवाए गए और फिर केक कटिंग हुआ। मिश्रा के रिश्तेदारों ने जान्हवी को उपहार देना शुरू किया
तो गाँव के लोगों को मायूसी हुई कि उन्होंने बच्ची के लिए कुछ नही लाया। पर तभी भीड़ में से एक दस वर्ष की लड़की निकल कर सामने आई और मिट्टी से बनी एक गुड़िया जान्हवी को देने की कोशिश करती हुई बोली…”छोटी मालकिन तुमको जन्मदिन की बधाई,,।
पर तभी लड़की के पिता ने उसे बीच में ही रोक दिया और डांटते हुए बोले..” मुन्नी ये क्या दे रही हो तुम छोटी मालकिन को, साहब लोगो के महंगे उपहार के सामने तुमने ये क्या मिट्टी की गुड़िया दे दी, चलो इधर आओ…!
मुन्नी मायूस हो गई और हाथ बढ़े उपहार को पीछे लेने लगी तो जान्हवी भी मायूसी भरा मुँह बना ली। क्योंकि वो गुड़िया उसे बहुत पंसद आई थी।
मुन्नी, उसके पिता और जान्हवी की मनोदशा का आंकलन करते हुए मिश्रा जी मुन्नी के पास आये और उसके सिर पर हाथ रखकर उसके पिता और जान्हवी से बोले…”यहॉं पर बिटिया के लिए उपहार की कीमत नही दिल देखा जाता है और दिल इस मुन्नी का दिल बहुत साफ है।
तभी जान्हवी बोली…” और पापा रही बात उपहार की तो वो सबसे कीमती है क्योकि इसे स्वयं मुन्नी ने बनाया है, क्यो मुन्नी…?
मुन्नी चहंक कर बोली…” हाँ हाँ मैने ही तो बनाया है..!
जान्हवी की बात सुनकर सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए। मुन्नी का उपहार पाकर जान्हवी उन सभी कीमती उपहारों को भूल गई।
शैलेश सिंह “शैल,,
गोरखपुर उ. प्र.
#उपहार की कीमत नही दिल देखा जाता है।