उपहार  – सुजाता पंत : Moral stories in hindi


Moral stories in hindi : बस से उतरकर वह तेज़ क़दमों से अपने घर की तरफ़ चलने लगी। घर का दरवाज़ा खोल कर वह धम्म से अपने बिछौने पर गिर पड़ी। जापान के ‘ओकिनावा’ द्वीप पर futon( बिछौने) पर लेटी हुई सोनिया शाम की घटना के बारे में सोचने लगी।

६४ वर्षीय ‘मैरी’ सोनिया की एकमात्र सहेली थी। वे दोनों ही जापान के नामी स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रही थीं। ओकिनावा शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता व स्वच्छ जलवायु के लिए जाना  जाता है। कहते हैं यहाँ के लोग १०० वर्षों तक जीते हैं। चारों तरफ़ जहाँ तक नज़र घुमाओ समुंदर का पारदर्शी जल व उसके पीछे ऊँचे ऊँचे पहाड़! मानो ब्रह्मा ने स्वयं इस स्थान की रचना की हो।

तभी तो सेवानिवृति के बाद जापानी लोग ओकिनावा चले जाते हैं। लेकिन आज एक ख़ास बात थी। मैरी अपने देश सिंगापुर वापस जा रही थी। सोनिया को फिर अकेलापन का अहसास खा रहा था। हमेशा की तरह इस सप्ताहांत भी वे दोनों आज मॉल गए। सोनिया मैरी को यादगार स्वरूप कुछ भेंट देना चाहती थी। मैरी ने अपने लिए एक ब्रोच पसंद किया जिसे सोनिया ने तुरंत ख़रीदकर मैरी को प्यार से दे दिया। फिर वे दोनों फिर दूसरी दुकान में गए । मैरी की निगाह एक ख़ूबसूरत से पर्स पर पड़ी जो की ख़ासा महँगा था। थोड़ी देर तक उसे निहारने के बाद उसने चटपट वह पर्स ख़रीदा और सोनिया के हाथ में थमा दिया। सोनिया हतप्रभ रह गई और मैरी का मुँह ताकने लगी। ‘

ऐसे क्या देख रही हो यह तुम्हारे लिए है मैरी बोली।“

‘अरे इतना महँगा पर्स मेरे लिए? क्यूँ?’ 

‘क्यूँ क्या मैं तुम्हें उपहार नहीं दे सकती हूँ?’

‘हाँ दे सकती हो पर मुझसे बिना पूछे, वो भी इतना महँगा?’ सोनिया अचकचा कर बोली’

‘तुम्हें दाम से क्या करना, उपहार का कोई मोल नहीं होता है।‘

‘लेकिन इतना महँगे उपहार का होता है, मैं यह नहीं लूँगी, सोनिया ज़ोर से बोली और उसने वह पर्स मैरी के हाथ में थमा दिया ।

मैरी बिफर उठी और उसने वह पर्स फिर सोनिया को थमा दिया । सोनिया पुनः बोली ‘देखो मैरी! मैं इतना महँगा उपहार किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करूँगी, तुम्हें इसे वापस लेना होगा और फिर वह पर्स मैरी के हाथों में थमा दिया गया। 

यह देख सोनिया अपना आपा खो बैठी और तेज़-तेज़ क़दमों से घर की तरफ़ चलने लगी । आगे-आगे सोनिया और पीछे-पीछे मैरी !




घर आकर सोनिया का किसी काम में मन नहीं लगा उसका ग़ुस्सा बेचैनी में बदल गया था। वह सोचने लगी बात इतनी बड़ी तो नहीं थी फिर मुझे इतना ग़ुस्सा क्यूँ आया ? शायद मैरी की भेंट के सामने मेरा उपहार हल्का पड़ गया? मैं उसके सामने छोटी बन गई । अगर मुझे पता होता कि वह इतने क़ीमती उपहार देगी तो मै भी……….

एक तो अहं की चोट और अच्छी इकलौती मित्र खोने का ग़म! वह अपनी और मैरी के विदाई के पल सुनहरे बनाना चाहती थी। यह मैरी ही तो थी जो इस अनजाने शहर में उसका परिवार थी । उसे खाँसी आने पर अपने घर से कभी कहवा तो कभी पाइनएपल जैम बना कर ले आती थी। यूँ नोक-झोंक तो दोनों की चलती रहती थी परंतु अगले पल वे फिर से सहेलियाँ बन जाते थे। रोज़ स्कूल साथ आना जाना और सप्ताहांत में साथ घूमना। ऐसी मित्रता का इतना कड़वा अंत !

यही सोचते सोचते रात के १२ बज गए । नींद थी कि आँखो से कोसों दूर! आख़िर सोनिया ने निर्णय लिया ऐसे तो नहीं चलेगा । वह बिस्तर से उठी चप्पल और जैकेट पहनी और तेज़-तेज़ क़दमों से मैरी के घर की ओर चल दी । जापान में रहने का यह एक सबसे बडा फायदा था, यहाँ लड़कियाँ बिना भय के रात्रि में आ जा सकती थी । इस बात को समझने व मानने में सोनिया को एक साल लगा था।

३८ वर्ष उम्र में जब वह पहली बार जापान के नगोया शहर में आयी तो उसे यह बात समझने में एक साल लग गया कि सुरक्षा व स्वतंत्रता उसका अधिकार है। शुरू-शुरू में रात को कहीं आते जाते सोनिया आदतवश मुड़ मुड़ कर देखती थी कोई पीछा तो नहीं कर रहा । फिर उसने महसूस किया यहाँ के लोग इतने व्यस्त रहते है कि उनके पास किसी और को देखने का समय ही नहीं है। यह बात एक तरह से तो सोनिया के हक़ में थी परंतु यही चलन उन्हें एकाकी भी बना देता है। जबकि हिंदुस्तान में सड़क पर एक से रास्ता पूछो तो चार लोग अपना काम छोड़ कर रास्ता बताने आ जाएँगे। शायद सांस्कृतिक विभिन्नता इसे ही कहते हैं ।




मैरी के घर पहुँच कर उसने दरवाज़े पर जैसे ही पहली दस्तक दी, अंदर से आवाज़ आई सोनिया!

शायद वह भी बिस्तर में करवटें ले रही थी । पुष्टि होने पर उसने तुरंत दरवाज़ा खोला परंतु उसके चेहरे की त्योरियाँ कम नहीं हुई थी । सोनिया उसके चेहरे पर निगाह गड़ाते हुए बोली मुझे तुमसे बात करनी है। मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ, ‘मैरी, मुझे उपहार लेने की आदत नहीं है। यही नहीं कोई घर पर भी मुझे महँगा उपहार देता है तो मैं नाराज़ हो जाती हूँ। शायद इसलिए क्यूँकि मेरे लिए पैसे का बहुत महत्व है।

विदेश में अकेले रहना हम भारतीयों के लिए सोने में पिंजरे में रहने के समान है। अकेलेपन की त्रासदी क्या होती है और दोस्ती का महत्व क्या होता है, यह मैं यहाँ आकर समझी हूँ। मैंने तुम्हें कभी माँ के रूप में नहीं एक दोस्त के रूप में देखा है और मैं यह दोस्ती खोना नहीं चाहती हूँ, सोनिया उसका हाथ पकड़ते हुए बोली।’

थोड़ी देर तक चुप रहकर मैरी ने ठंडी साँस ली और बोली  “सोनिया मेरे लिए रिश्तों के सामने पैसे का कोई मोल नहीं है। ‘लेकिन मैरी मैंने कई बार देखा है किया है हम जब भी बाहर भोजन करने जाते हैं तुम सबसे सस्ते खाने का order देती हो, कई बार तुम चाय कहीं और से लेती हो और burger कहीं और से । जब तुम अपने लिया इतनी कंजूसी करती हो तो मेरे लिए इतना ख़र्च करने का किया मतलब है?’ सोनिया बोली।

एक फीकी सी मुस्कराहट के साथ मैरी बोली, सोनिया तुम ग़लत समझ रही हो, मैं चाय इसलिए नहीं लेती हूँ क्यूँकि मैं सिर्फ़ मार्क्स और स्पेंसर ब्राण्ड की चाय पीती हूँ और जिसे तुम सस्ता भोजन कह रही हो वह पौष्टिक भोजन है, इसलिए मैं केवल वही खाती हूँ और यह भी मेरी मजबूरी है। इतना कह कर मैरी यकायक चुप हो गई । सोनिया ने उसे प्रश्न भरी निगाहों से देखा, ठंडी साँस भरकर मैरी बोली सोनिया मैं कैंसर सरवाइवर हूँ।

मुझे अपना ख़्याल स्वयं रखना होता है। सोनिया हल्के से बोली और तुम्हारी family?…….. I am a divorcee मैरी सपाट आवाज़ में बोली, शादी के १६ वर्ष बाद एक दिन मेरे पति ने मुझे अपने से आधी उम्र की लड़की के लिए छोड़ दिया। मैंने एक लड़की गोद ली थी जिसका अब विवाह हो चुका हाई और वह Australia में रहती है। मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती हूँ इसलिए भोजन बहुत सोच समझकर करती हूँ।

मुझे किसी बात का ग़म नहीं है। जीवन के थपेड़ों ने मुझे जीना सिखा दिया है। मैं जीवन का हर पल जीना चाहती हूँ, अपनों के साथ……. तुम मेरी दोस्त ही नहीं शायद मैं तुममें अपनी बेटी का रूप भी देखती हूँ। सोनिया का मुख खुला का खुला रह गया। आज सोनिया ने जीवन का नया व महत्वपूर्ण पाठ पढ़ा, जीवन काटना नहीं, जीना है और उसने मैरी का हाथ कसकर दबा दिया।

कुछ पल तक दोनों चुप रहे फिर सोनिया चिल्लाकर बोली मेरा पर्स वापस करोssss 

(आज मैरी को इस दुनिया से अलविदा हुए एक वर्ष हो गया है। सोनिया अभी तक इस धक्के से ऊबर नहीं सकी है। हमेशा अपनी मैरी को आस -पास महसूस करती है। अपनी दोस्ती की बेल को हरा भरा रखने के लिए उसने अपने नए प्रोजेक्ट को अपनी दोस्त व सलाहकार, ‘मैरी’ को समर्पित किया)

कहीं दूर कोई हिंदुस्तानी गुनगुनाता हुआ जा रहा था “ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेगें………

 

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