उपहार की कीमत नहीं दिल देखो …… – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

रीमा और सीमा भाई के जन्मदिन पर आती है, सीमा अपनी भाभी चेतना को गोल्ड की चैन दिखाते हुए कहती- ” भाभी देखो मैं भैया के लिए गोल्ड की चैन लाई हूं, देखो भाभी भैया को ये डिजाइन अच्छी लगेगी? ” तब उसकी भाभी चेतना कहती – अरे वाह इतनी मंहगी चैन !! ये तो बहुत ही सुंदर है, फिर रीमा को देखकर भाभी उससे पूछती- रीमा दीदी इस बार आप क्या लाए हो, अपने भैया के लिए?? 

तब रीमा पैकेट को खोलते हुए बोलती – देखो भाभी मैं तो भैया के लिए कुर्ता पैजामा लाई हूं। तब सीमा हंसकर कहती- ये क्या रीमा सिर्फ कुर्ता पैजामा लाई है और तू मुझे देख ,मैं कितनी मंहगी चैन भैया के लिए लाई हूं। क्या तुम्हारे पास इतने पैसे भी नहीं है

क्या कोई ढंग की चीज लाओ। सोने कान सही चांदी का कुछ ले आओ।इतना सुनते ही उसकी भाभी कहती – ” अरे दीदी आप रीमा दीदी से क्या उम्मीद कर रहे हो, वो तो राखी में ऐसे ही सस्ती चीजें लाती है, एक आप हो, जो सोने चांदी से नीचे की कोई चीजे नहीं देती हो। 

तब रीमा कहती -भाभी ये कुर्ता एक हजार का है, मुझे लगता है जो सामान उपयोगी हो वो ही देना चाहिए। ना कि दिखावे के लिए मंहगी चीजें….. 

उसी समय हंसी उड़ाते हुए सीमा कहती- बहन भाई इतना कुछ विदाई में देता है उसके हिसाब से तो उपहार लाया कर…..! 

भाभी कहती- हां हां आप दोनों को बराबर का शगुन और विदाई मिलती है पर रीमा दीदी तो अपने पैसे बचा लेती है। खैर छोडो़……. 

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मैं आप लोगो के लिए चाय नाश्ता लाती हूं। नाश्ते के लिए सीमा से उसकी पसंद पूछती – दीदी आप मलाई रोल और मिल्क केक तो खाओगी ना आपकी पसंद का है ,इसलिए खास आपके लिए मंगाया है , और चेतना कहती रीमा दीदी आप सब ले लेती हो मैं अपने हिसाब आपके लिए सभी प्लेट लगाती हूँ।वह यह सब बात कर रही होती है ,तभी उसका भाई राजीव उन तीनों की बात सुन लेता है। उसे बहुत दुख होता है। रीमा की इन दोनों के लिए कोई अहमियत ही नहीं है। 

मन में कुछ सोचता है। 

  थोड़ी देर बाद वहां बैठकर वह दोनों बहनों को कहता -दीदी आप दोनों यहां आती हो तो घर बहुत भरा भरा लगता है घर में रौनक लगने लगती है,आप दोनों दो चार दिन रुक जाओ।मुझे और चेतना को भी अच्छा लगेगा। फिर वो दोनों बहनें मान जाती है। 

अगले दिन जब बैल बजती है ,तब चेतना दरवाजा खोलती है तो उसे एक नोटिस मिलता है। तब वह खोलकर देखती है ये तो मकान का नोटिस है, वह अपने पति और ननदों को बताती है- देखो ये तो अपना घर नीलाम होने का नोटिस है ।

तब उसका पति कहता – हाँ चेतना मैनें घर गिरवी रख दिया था, पर बिजनेस में नुकसान होने के कारण लोन मैं नहीं चुका पाया, अब ये घर नीलाम हो जाएगा और हम लोग रोड पर आ जाएगें। तब चेतना चितिंत होकर पूछती – फिर हम लोग कहां रहेगें? 

तब उसका पति राजीव कहता- चेतना तुम चिंता मत करो, हमारी सीमा दीदी है ,हम उनके पास रह लेगें उनके पास कौन सी कमी है…. 

तब सीमा कहती- अरे राजीव ऐसे कैसे सोच सकते हो कि तुम दोनों मेरे पास रह लोगे। मेरा सास ससुर वाला घर है, मुझे अपने पति से पूछना पडे़गा। दो चार दिन की बात होती तो मैं हां भी कह देती, पर ना बाबा कितना समय तुम्हारी स्थिति ठीक होने में लगे। 

तब रीमा कहती- भैया आप चिंता क्यों करते हो, आप मेरे साथ मेरे घर में रह लेना , मेरा घर हाई फाई तो नहीं है, पर रहने लायक है। आप दोनों जब तक चाहो तब तक रह लेना ,आखिर अपने कब काम आएगें….. मैं अपने पति को समझा दूंगी। 

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तब चेतना की तरफ देखकर राजीव कहता -देख लिया चेतना….तुम सीमा दीदी…सीमा दीदी…. करते थकती नहीं थी। केवल सीमा दीदी अपने पैसों का दिखावा करती थी। उन्हें पता है कि भैया को जितना देगें उसके हिसाब से लौटा भी देगें। पर मेरी रीमा दीदी में कोई लालच और दिखावा नहीं था। वह जो उपहार देती वो दिल से देती थी इसलिए उपहार देने वाले का दिल देखना चाहिए ना कि उसकी कीमत…. 

तब वह कहती -रीमा दीदी हमें माफ कर दो हमने आपको बहुत गलत समझा ,जो उपहार की कीमत देखकर मैं आपकी उपेक्षा करती थी। औरअंदर से वो सम्मान नहीं था जो सीमा दीदी के लिए था। तब ये सब देखकर सीमा कहती -ये सब कहना आसान है, मैं अपने घर में रख लूंगी। आप हमारे साथ रह लो। पर वास्तविक रुप में संभव नहीं है। 

तब राजीव कहता- क्यों संभव नहीं है दीदी, यदि बहन पर मुसीबत आए तो भाई साथ नहीं देता क्या??आज भाई पर पर मुसीबत आई तो ये कह रही हो। तब सीमा की नजरें झुक जाती है। 

तब राजीव दोनों बहनों और अपनी पत्नी चेतना को पेपर दिखा कर कहता- देखो ,ये नकली पेपर है ,मैंने ये पेपर जानबूझकर कर बनवाए, ताकि रीमा दीदी को भी आप और चेतना वो सम्मान दो जिसकी वो हकदार है। तब चेतना कहती – राजीव आप ने मेरी आंखें खोल दी।अब से मेरे लिए रीमा दीदी के लिए उतना ही सम्मान रहेगा। जितना सीमा दीदी का….

ये सुनकर सीमा भी कहती- रीमा तू मुझे माफ कर दे। मैंने अपने उपहार के सामने तेरी हमेशा उपेक्षा की और भाभी को भी भड़काया। और तब वो भी ऐसा बोल देती थी जो उन्हें और मुझे नहीं बोलना चाहिए था। मैंने तेरी हमेशा बेइज्जती की । अब मुझे एहसास हो रहा है कि उपहार कीमत देखकर नहीं दिल से देना चाहिए। तू जो भी लाती थी वो कितना मन से लाती थी।

तब रीमा कहती- मुझे आप सबका प्यार और सम्मान मिल गया,इससे ज्यादा क्या चाहिए। अब पिछली बातें भूल जाओ। जो हो गया सो हो गया।ये सुनकर राजीव कहता- नहीं रीमा दीदी अपने लिए बोलना चाहिए। आप कुछ नहीं बोलती थी तो मुझे बुरा लगता था इसलिए मुझे ये सब करना पड़ा। 

ये सुनकर सीमा और चेतना ने कहा -जो आपने किया वो बिलकुल सही था। तभी हमें भी एहसास हुआ कि हम लोग कितने गलत थे। ये सुनकर रीमा अंदर खुश होकर मुस्कुरा उठी। 

 

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया 

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