उपेक्षित समय – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : अरे क्या तुम भी जब तब पुरानी बात लेकर बैठ जाती हो, भूलो सब…पैंतालीस साला रमा की बात पर उसके पचास साल के पति किशोर ने मजाक बनाते हुए कहा।

कैसे भूल जाऊं, मेरे अच्छे दिन को बुरे दिन बनाकर रख दिए थे, अब तो सब कुछ एक सा ही लगता है… उस उपेक्षित समय ने सब कुछ ही तो उपेक्षित कर एक समान बना दिया किशोर…रमा आज फिर पति द्वारा पूरी बात न सुने जाने पर दुःखी हो मन ही मन में सोचती वहां से उठ गई।

रसोई में जाकर उसके आँखों के अश्रु धाराप्रवाह बहने लगे और फिर से उसे सब कुछ दिखने लगा। उसे याद आ गया शादी के बाद वो पढ़ाई कर रही थी और प्रोजेक्ट बनाना था, उसे अपने उपर पूर्ण विश्वास था कि वो कर लेगी लेकिन किशोर जिद्द पर अड़ गया और अपने एक रिश्तेदार को प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी पकड़ा कर बैठ गया।

ना तो उस रिश्तेदार से प्रोजेक्ट बना और ना ही रमा का कोर्स पूरा हो सका। रमा को आज भी लगता है किशोर ने ये जानबूझ कर किया था। शायद उसकी लगन से डर गया था या और कुछ पता नहीं।

जाने क्या था उसमें की किशोर को उसका बोलना हॅंसना कभी रास नहीं आया या पुरुष का अहम् उसे ऐसा करने कहता रहा, रमा कभी समझ नहीं पाई। उसकी हर बात हर इच्छा किशोर को बुरी ही लगी, कुछ बोलने या पूछने पर तो घर का माहौल जेल की तरह हो जाता रहा, जबकि उसी किशोर को अन्य दबंग महिलाओं की वही बात पसंद आ जाती ,

जिस बात पर वो रमा को जलील कर चुका होता था। कभी कभी रमा इस बात पर झगड़ भी पड़ती थी । लेकिन किशोर हमेशा उसे अपना रास्ता देख लो, कह चुप करा देता था। शादी के पहले दिन से ही किशोर उसकी हर बात सिरे से नकार देता था।

ना तो उसके साथ कहीं जाना चाहता था और ना ही किसी से मिलवाना चाहता था, वो हमेशा से सभ्य संस्कारी शालीन रही थी। उसके जैसी बहू की इच्छा यदा कदा रिश्तेदार भी जता जाया करते थे।

जब भी उसने किशोर से अपने मन की या बाहर की कोई बात करनी चाही या तो उठ कर चला जाता या मुंह फेर कर बैठ जाता। गलती से , गलती से ही कहा जाएगा एक दो बार उसे कहीं ले भी गया तो बार बार यही कहता रहा  यहां तो मैं पहले भी आ चुका हूं, तुम्हारे कारण पैसा और समय दोनों बरबाद हो रहा है।

वो समझ नहीं पाती कि एक दूसरे के साथ दो दिन समय बिताना वो भी क्वालिटी टाइम निरर्थक कैसे हो गया। उसे याद है ऐसे ही कहीं गए थे, शायद विवाह के पांच छः महीने बाद और वहां ऑटो कर घूमने का प्रोग्राम बना।

वो खुश थी कि चलो तीन चार दिन की स्मृतियों को सहेज लेगी लेकिन कहां सहेज पाई वो। क्या सहेजती यही की किशोर ने ऑटो वाले के सामने ऑटो में बैठे बैठे ही कहा कि मैं तो पहले भी आ चुका है, बेफालतू का पैसा जाया हो गया है और इस पर वो तो सकपका गई थी।

लेकिन ऑटो वाले ने जवाब दिया साहब अकेले आने और नई नई शादी के बाद एक दूसरे के साथ आना और एक दूसरे को समझना स्वर्ग के सुख से कम है क्या…क्या सहेजना चाहती थी और स्मृति ने उसके पिटारे में क्या थमा दिया।

शुरुआत में अक्सर इन बातों पर रमा किशोर से उलझ जाती थी। उसे याद है एक बार यूं ही किशोर के साथ अपने ही शहर के नामी जगह पर घूमने गई थी और किशोर उस पल को जीने के बदले वहां बैठे लोगों की बुराइयां खोज धीरे धीरे ही सही कटाक्ष करने लगा था और पहले तो वो हतबुद्धि सी किशोर को देखती रही और फिर उलझ पड़ी थी।

लेकिन किशोर को न फर्क पड़ता था और न पड़ा। समय के साथ उसने बातों को पीना सीख लिया क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे थे और माता पिता की हर बात पर एक दूसरे से उलझ जाना उनके लिए भयावह सा हो जाता था। खुद के साथ साथ उसने कई बार किशोर को भी ये बात समझाने की कोशिश की थी।

लेकिन किशोर नाम का ही किशोर था, कभी भी सोच से बड़ा नहीं हो सका। उसे याद आ गया एक बार वो पूरा परिवार अपनी जेठानी के यहां गए थे और संयोग से वहां मेला भी आया हुआ था। रमा ने बहुत  इसरार करके सभी को मेला में चलने के लिए तैयार किया था।

किशोर अपनी भाभी और उनके बच्चों की खुशी की खातिर चला तो आया और ये जानते हुए भी रमा को हवाई झूला पर बैठने के बाद तबियत खराब हो जाती है, रमा को ऐसे झूलों से डर लगता है। फिर भी अपने छोटे वाले बेटे के साथ बिठा दिया था।

बेटा भी उस समय छः सात साल का था , वो भी डर कर रोने लगा था और रमा को चक्कर आने लगे। उसने बैठे बैठे ही किशोर से अनुनय किया था, उसे और बेटे को उतरने दे। लेकिन किशोर ने एक नहीं सुनी और तभी रमा की चाहतों का भी पटाक्षेप हो गया था।

उसी दिन उसने एक तरह से कसम ले लिया अब कभी किशोर के साथ छोटी बड़ी किसी जगह नहीं जाएगी और फिर तब से उसके बच्चे और यह उपेक्षित समय ही उसके साथी हो गए थे। आज किशोर के बार बार कहीं चलने की जिद्द पर फट पड़ी थी वो और फिर से एक एक कर उसे अपने समय की उपेक्षा न चाहते हुए भी याद आने लगी थी।

वो किशोर से पूछना चाहती थी क्या वो उम्र, वो चाह, वो समय वापस ला सकता है, जो भूल जाने की चाह रखता है। लेकिन ये सोचकर फिर से चुप लगा गई की जो आज तक ना उसकी कोई बात पूरी सुन नहीं सका, ना समझ सका, उससे क्या अपेक्षा करना और अपनी इस सोच के तहत उसने किशोर के प्रस्ताव की पूरी तरह नकार दिया।

आरती झा आद्या

#उपेक्षा

दिल्ली

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