उपेक्षित पड़ाव जिंदगी का .! – अंजना ठाकुर : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : अनु बेचैनी से बार बार  दरवाजे की और देख रही थी उसकी बेटी पांच बजे तक कोचिंग से आ जाती है अभी छे बज रहे थे फोन भी नही उठा रही थी तब शिवी आते दिखी अंदर आते ही अनु बोली कहां रह गई थी शिवी और फोन भी नही उठा रही थी। मुझे कितनी चिंता हो रही थी

शिवी चिढ़ कर बोली ओहो मां अब मैं बच्ची नही हूं फ्रेंड से बात करने लगी थी तो क्लास मैं फोन साइलेंट पर रखना होता है इसलिए ध्यान नही रहा और शिवि अपने कमरे मै चली गई

अनु  मन मसोस कर रह गई वो दिन भर इस आस मैं रहती है की सब लोग शाम को आए तो उस से बातें करें पर अब ऐसा नहीं होता

अनु इन दिनों खुद को उपेक्षित सा महसूस कर रही थी उसे लग रहा था अब उसकी किसी को जरूरत नही है उसे याद आ रहा था शादी हो कर आई तो उसके पति ज्यादा से ज्यादा उसके साथ वक्त बिताते फिर एक साल बाद शिवी का जन्म हुआ और तीन साल बाद बेटे आदित्य का फिर तो वक्त पता नही कहां पंख लगा कर उड़ने लगा

अपने बारे मैं अनु कुछ सोच ही नही पाई घर ,पति और बच्चों की जिम्मेदारी बस यही जिंदगी थी जिसमे वो काफी खुश भी थी बच्चे जब तोतली भाषा मैं भी अपनी एक एक बात बताते और फिर बड़े होने पर अपनी हर बात मैं सलाह लेते तो अनु खुद को बहुत गर्वित महसूस करती देखते देखते शिवि और आदित्य बड़े हो गए अब पति भी थकान के कारण कम बात करते और बच्चे  कहते  आप नही समझोगी मां।

अभी कुछ दिन पहले बेटे के कमरे मै गई मोबाइल मैं  कुछ पूछने तो बोला मां अभी मुझे समय नही है

बाद मैं देखता हूं अनु  को याद आया की बचपन मै कैसे जब तक काम नही हो जाता था जिद्द पर अड़ा रहता की अभी करो

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यही हाल शिवि का था उसे भी अपना ग्रुप अच्छा लगता  अनु धीरे धीरे उदास रहने लगी अपनी उपेक्षा उस से सहन नही हो रही थी एक दिन उसने पति से भी बात करी तो बोले अब बच्चे बड़े हो गए है उनकी दुनियां अलग है तुम अपने बारे मैं सोचो क्यों उनके पीछे लगी रहती हो।

अनु ने सोचा शायद उसने अपने बारे मैं कभी सोचा ही नहीं शुरू से बस परिवार को ही अपनी खुशी समझा कभी ये जानने की कोशिश नही करी की खुद को इच्छा क्या है इसलिए आज ऐसा महसूस कर रही है

उसकी सहेली निशा कितनी बार बोल चुकी थी की तुम हमारा ग्रुप ज्वाइन कर लो  जिस मैं हम सब कुछ न कुछ सिखाते है और एक दूसरे से सीखते है और साथ मैं मस्ती भी हो जाती है

पर अनु कहती उसे तो  परिवार के साथ रहना और उनकी देखभाल करना ही पसंद है पर अब बच्चों को शायद ये पसंद नही है की मम्मी उनके आगे पीछे घूमती रहे उसे यही रास्ता सही लगा की अब अपने लिए जिया जाए

उसने निशा को फोन किया और ग्रुप ज्वाइन किया कुछ ही दिनों मै उसने खुद मैं बदलाव महसूस किया  अब वो फ्री समय मै योगा,म्यूजिक सुनती  अब बच्चों को मां की कमी महसूस हुई जब उनके आगे पीछे नही घूमी शिवी बोली मां  आप कहां चली जाती हो हमे अच्छा नही लगता

तब अनु ने कहा की अब किसी को मेरे लिए समय नहीं है तो मैं भी अपने बारे मैं सोचूंगी अब उन्हे गलती का अहसास हुआ अब शाम को  सब साथ मैं बैठकर अपने किस्से सुनाते है अनु की जिंदगी से उपेक्षा अब खुशी मैं बदल गई थी ,।।

हमारी जिंदगी मै एक मोड़ ऐसा आता है जब हम खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते है और धीरे धीरे अकेलेपन से घिर जाते है इसके लिए जरूरी है कि अपने शौक पूरा करे दोस्तों रिश्तेदार से मिलना जुलना शुरू करे ।

स्वरचित

अंजना ठाकुर

#उपेक्षा

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