Short Moral Stories in Hindi : “बस करो ना माँ… अब क्या सारा खाना मुझे ही खिला दोगी… थोड़ा खुद के लिए भी बचा लो।” कस्तूरी ने माँ लीला से कहा
“ आज तो तेरी माँ तुझे जी भर कर खिलाएगी…।” बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते लीला ने कहा
“ माँ अब मुझे भी हर दिन अच्छा खाना देंगी ना ….फिर मैं पक्का कभी वहाँ कुछ ना माँगूँगी।” कस्तूरी खाने का निवाला लेते हुए बोली
“ हाँ मेरी लाडो….अब तुम्हें तेरी माँ वो सब देगी जो तुम्हें चाहिए….. बस वादा कर कल से उस चौखट पर कदम ना रखेगी?” लीला कुछसोचते हुए बेटी से बोली
कस्तूरी माँ के हाथ पर हाथ रख वादा करते हुए सहमति में सिर हिला दी
खाना खा कर माँ बेटी जमीन पर बिछे बिस्तर पर पसर गई…पर कुछ बातें उसे रह रह कर उस उपेक्षा का भान करा रही थी जो उसेकचोट रहा था….पर बड़ी मेमसाहेब ने सब सँभाल लिया ।
लीला कई दिन से देख रही थी… कस्तूरी स्कूल के छुट्टी के बाद सीधे अहिल्या निवास पहुँच जाती थी….
वहाँ पर लीला पूरे दिन काम करती.. खाना बनाती… कभी कभी कस्तूरी स्कूल की छुट्टी बाद वहाँ आकर माँ से मिल कर अपने घर आजाती थी… एक दिन लीला खाना बना रही थी… कस्तूरी को बहुत भूख लगी थी… वो माँ से कुछ खाने को माँगने लगी… लीला नेइधर-उधर देखा कोई नहीं दिखा तो उसने बेटी के मोह में उसे उधर ही बिठा कर खाने को दे दिया
“ अरे वो लीला … ये खाना मुफ़्त का नहीं है जो तू अपनी बेटी को खिला रही है और अभी मेरे बच्चों ने खाया तक नहीं और तूने अपनीबेटी को परोस दिया… ये इसलिए यहाँ चली आती है क्या … कि इसे खाने को कुछ अच्छा मिलेगा…।” रचना जो उस घर की इकलौतीरईस बहू थी रसोई में कस्तूरी को खाते देख लीला को डपटते हुए बोली
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“मेमसाहेब बिटिया स्कूल से मुझे मिलने आ गई…घर में खाना बना कर रख कर तो आई हूँ पर इसे भूख लगने लगी मैं देख रही थी आपया बड़ी मेमसाहेब दिख जाती तो पूछ कर ही खाने को देती … पर बेटी का भूखा चेहरा देख रहा ना गया तो दे दी… गलती हो गई माफकर दो ।” लीला लाचारी से कभी बेटी तो कभी रचना को देखती
“ ठीक है ठीक है पर आगे से ये सब यहाँ नहीं चलेगा… हम ऐसे खाना बाँटने नहीं बैठे हैं…. पता चला कल को तेरी बेटी को यहाँ ही खानेकी आदत पड़ गई ।” रचना कहते हुए निकल गई
लीला को आज ये उपेक्षा बुरी तरह कचोट गया…. बेटी को जरा सा खाना क्या दे दिया मेमसाहेब ने इतना सुना दिया… दिन भर इन लोगोंके लिए सब बनाती रहती जरा सा खाने को दे दिया तो क्या ही बिगड़ गया…
“ माँ बहुत अच्छा खाना है ये तो…तुम घर पर बस वही दाल भात ( चावल) रख देती हो … यहाँ कितना कुछ बनाती हो…अब से मुझे यहीखाना खिला देना ना…।” मासूम कस्तूरी रचना की जली कटी बातों से अनजान माँ के गले लग बोली
कस्तूरी को घर भेज कर लीला बड़ी मेमसाहेब के पास गई और बोली,” मेमसाहेब मैं यहाँ तब से काम कर रही हूँ जब मेरी माँ इस घर मेंकाम करती रही…उसके गुजर जाने के बाद भी मैं यहाँ काम कर रही हूँ…पति परदेस में कमाता है… मैं अपनी बिटिया के साथ रहती हूँ वोकभी-कभी यहाँ आ जाती है…अकेले घर में उसका मन नहीं लगता … आज उसे भूख लग रही थी मैं आप दोनों को देख रही थी कि पूछकर ही उसे खाने को दूँगी पर उसकी भूख के आगे मैं विवश हो खाना दे दी… रचना मेमसाहेब ने देख लिया और उपेक्षा भरे लहजे में चारबातें सुना दी… मैं जानती हूँ मुझे पहले पूछना चाहिए था पर एक माँ अपनी बेटी को भूखा नहीं देख सकी … मैं आपसे विदा लेने आई हूँ…मैं खाना बनाती हूँ आप सब के लिए पकवान बना कर रख सकती हूँ पर अपनी बच्ची को ही रूखा सूखा खिला रही हूँ…लानत है मुझपर… मैं कहीं और काम खोज लूँगी पर अब यहाँ काम नहीं कर पाऊँगी ।” लीला ने सिर झुकाते हुए कहा
“तुम यही काम करोगी लीला… हमें पता है तुम कभी कोई गलत काम नहीं कर सकती… मैं रचना से बात करूँगी…और हाँ अब से जबघर जाओगी कस्तूरी के लिए यहाँ से खाना ले ज़ाया करना… समझ सकती हूँ बच्ची है और उसका मन भी करता होगा तरह तरह केपकवान खाने का…एक उस बच्ची के खा लेने भर से हमारा गोदाम ख़ाली नहीं हो जाएगा ।” बड़ी मेमसाहेब ने प्यार से लीला से कहा
लीला के जाने के बाद रचना को बुला कर उन्होंने उसे समझाते हुए कहा,”बहू एक बच्ची के खाना खा लेने से हमारी ना तो आर्थिक स्थितिबिगड़ेगी ना राशन पानी कम होगा पर जो बिगड़ेगा… वो है सब के जीभ पर चढ़ा लीला के हाथों का स्वाद…. हम सबने कभी इसकीशिकायत नहीं की ..बच्चे भी पेट भर खा लेते हैं… रसोई देखने की अब मेरी हालत नहीं और तुम्हारे पास समय नहीं… कोई नई मिली तोउसे फिर से नए सिेरे से सिखाने समझाने को तुम्हारे पास वक्त नहीं होगा… ऐसे में लीला ही हमारे लिए एकमात्र उम्मीद है..कल से यहाँजो भी बनेगा लीला अपनी बेटी के लिए ले जा सकती है और मुझे नहीं लगता तुम्हें इससे कोई आपत्ति होगी… लीला में जो हुनर है वोतुम भी जानती हो..कहीं तुम्हारी उपेक्षा को दिल से लगा कर वो अपनी अपेक्षाओं को पूरी करने ना निकल जाए इस बात का ध्यान रखना।”
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रचना ने सब सोचते हुए सहमति में सिर हिला दिया था ।
और आज जब लीला काम करने अहिल्या निवास आई रचना ने सामने से ही कह दिया,” लीला कल जो भी कहा मुझे नहीं कहना चाहिएथा…. तुम अब से अपनी बेटी के लिए खाना यहाँ से ले जा सकती हो।”
ये सुन कर लीला के चेहरे पर एक चमक आ गई…अब उसकी कस्तूरी भी अच्छा मनपसंद खाना खा पाएगी.. उसे बस दाल भात खा करनहीं रहना पड़ेगा ।
अचानक कस्तूरी ने करवट ली और लीला के पैर पर अपने पैर रखे तो लीला विचारों से निकल कर बेटी के तृप्त चेहरे को देख संतोष कीसाँस ले आँखें बंद कर सो गई ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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