Moral stories in hindi : घर में बेहद खुशी का वातावरण था। घर की सबसे बड़ी बेटी संगीता का रिश्ता एक बहुत अच्छे परिवार में तय हो गया था। घर की पहली पहली शादी, सभी बहुत खुश थे। संगीता के दादा दादी, दो चाचा और चाचियां, उनके बच्चे, संगीता के मम्मी डैडी और छोटे भाई बहन सब बहुत खुश थे।
शादी होने तक जब भी संगीता के ससुराल से कोई आता तो संगीता के घर चाचा चाची उनके बच्चे सब इकट्ठा हो जाते। संगीता की मम्मी उन्हें पहले से ही बता देती थी कि मेहमान आने वाले हैं। सुबह से रात तक वही बैठना, खाना-पीना और बातें चलती रहती।
रात को मेहमानों के जाने के बाद ही, वे लोग भी खा पीकर कर अपने अपने घर जाते। संगीता के मम्मी डैडी उन्हें बिना खाना खाए जाने ही नहीं देते थे।
संगीता के ससुराल वालों को भी सब से मिलकर बहुत अच्छा लगता था। बीच वाली चाची की बेटी हर्षा सबसे पहले पहुंच जाती थी क्योंकि वे बिल्कुल पास में ही रहते थे। संगीता की मम्मी को वह बड़ी मम्मी कहती थी और डैडी को डैडी।
उन दोनों ने भी कभी उसे अपने भाई की बेटी ना समझ कर, अपनी ही बेटी माना था। हर्षा का एक छोटा भाई भी था नोनू। दोनों बच्चों पर बड़ी मम्मी और डैडी जान छिड़कते थे।
जो भी कपड़े या खाने की कोई चीज आती तो संगीता और हर्षा को एक जैसी मिलती। हर्षा ,संगीता से 2 साल छोटी थी।
ऐसे ही हंसते खेलते सगाई के बाद छह-सात महीने कैसे बीत गए, पता ही ना चला। इस बीच खूब शॉपिंग हुई। संगीता, उसकी मम्मी, हर बार हर्षा और उसकी मम्मी को अपने साथ शॉपिंग पर ले जाती थी और जब कभी अगर उनके पास समय नहीं होता था
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तब घर आकर उन्हें सारा सामान ,एक एक चीज खोलकर खुशी खुशी उन्हें दिखाती थी। साड़ी की छोटी सी पिन से लेकर, शादी की साड़ी तक एक एक चीज उन्होंने देखी थी। उनसे कुछ छुपा नहीं था।
शादी वाला दिन भी आ गया और धूमधाम से संगीता की शादी हो गई। समय अपनी निर्बाध गति से चलता रहा और अब हर्षा के विवाह की बातें घर में चलने लगी थी।
एक दिन दिल्ली से लड़के वाले आए और हर्षा को पसंद कर लिया। थोड़े दिनों में उसकी सगाई भी हो गई। अब जब भी उसके ससुराल वाले आते तो हर्षा और उसकी मम्मी, बड़ी मम्मी को बताना तो बहुत दूर की बात है, उन्हें भनक भी लगने नहीं देती थी।
अंदर ही अंदर सारी तैयारी कर ली जाती थी और मेहमानों के जाने के बाद हर्षा की मम्मी कहती थी कि-“अचानक आ गए, हमें भी कहां पता था।”
बड़ी मम्मी और डैडी को उपेक्षित व्यवहार से बहुत दुख होता था पर फिर भी वे बड़प्पन दिखाते हुए कुछ नहीं कहते थे।
समधियों के साथ खूब खाना पीना, हंसी ठिठोली होती और संगीता के घर से ना बड़ों को बुलाया जाता ना ही बच्चों को।
यहां तक कि उन्हें साथ में भोजन खाने के लिए या फिर चाय पानी के लिए भी कहा नहीं जाता था और फिर बिन बुलाए जाता ही कौन है?
अब तो हर्षा ने शादी की शॉपिंग भी शुरू कर दी थी। एक दिन उसने बड़ी मम्मी से कहा-“बड़ी मम्मी आप भी चलिए हमारे साथ शॉपिंग करने।”
बड़ी मम्मी सारी बातें भुलाकर, उनके साथ शॉपिंग करने चली गई। बाजार पहुंचकर, ऑटो से उतरते ही हर्षा ने अपनी मम्मी के कान में कुछ कहा और बड़ी मम्मी से बोली-“बड़ी मम्मी, आप अपना देख लो, जो खरीदना है खरीद लेना, हम तो यहां से दूसरी मार्केट में जा रहे हैं।
“ऐसा कहकर दोनों रिक्शा में बैठ कर चली गई। बड़ी मम्मी सोचती ही रह गई कि आखिर यह क्या हुआ? यह दोनों कैसा व्यवहार कर रही है मेरे साथ, अगर मुझसे सब छुपाना ही था या फिर मुझ से कोई सलाह लेनी ही नहीं थी तो मुझे साथ आने को कहा ही क्यों,
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यह लड़की हर्षा जिसे मैंने अपनी गोद में पाला पोसा है आज यह मेरी उपेक्षा कर रही है। ना चाहते हुए भी उनके दिमाग में यह बात आई कि हमने तो कभी संगीता की शादी के समय या वैसे भी कभी इनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया है।
दो पल में ही बड़ी मम्मी का दिमाग मानो सुन्न हो गया और उनकी आंखों में आंसू भर आए और फिर वह वहां खड़ी ना रह सकी। उनका मन शॉपिंग करने का बिल्कुल नहीं हो रहा था ।वह ऑटो में बैठी और वापस घर आ गई। शाम को हर्षा आई और बोली-“बड़ी मम्मी, हम तो आपको उसी मार्केट में ढूंढ रहे थे पर आप तो मिली ही नहीं।”
ऐसा कहकर वह चली गई और जितने दिन भी उसने शॉपिंग की, एक भी सामान उसने कभी बड़ी मम्मी को नहीं दिखाया और ना ही उन्होंने पूछा।
हर्षा शादी करके अपनी ससुराल चली गई और आज तक उसका व्यवहार स्वार्थी ही है। बड़ी मम्मी आज तक उसके उपेक्षित व्यवहार को भूल नहीं सकी है, उनके मन में अपनी उपेक्षा का दर्द अभी तक समाया हुआ है।
#उपेक्षा
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली