ऊपर की कमाई – नेकराम : Moral Stories in Hindi

पत्नी काफी दिनों से मेरे पीछे पड़ी हुई थी तुम कारखाने की नौकरी छोड़ दो और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करो आजकल सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी में ऊपर की कमाई बहुत है हमारे पड़ोसी राकेश अंकल अस्पताल में काम करते है बहुत पैसा इकट्ठा कर लिया है उन्होंने

मैं आपकी नौकरी की भी बात उनसे कर दूंगी तुम्हें वही नौकरी करनी होगी

उस दिन मैंने भी सोच लिया चलो पत्नी का कहना मानकर देख लेता हूं

पत्नी आज बहुत खुश थी सरकारी अस्पताल में गार्ड की नौकरी का आज मेरा पहला दिन था टिफिन में चार रोटी और अचार रखकर मैं दोपहर के 12:00 बजे अस्पताल पहुंच गया

गेट पर ही मेरी मुलाकात एक सिक्योरिटी गार्ड से हुई जिसका नाम राकेश था यह नौकरी इन्होंने ही मुझे दिलवाई थी मुझे देखते ही कहा आओ नेकराम जी कैसे हो रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हुई

मैं थोड़ा मुस्कुरा दिया हालांकि बस की भीड़ भाड़ और बस में सीट न मिलने की वजह से खड़े-खड़े टांगे दुखने लगी थी लेकिन मैं राकेश जी से इस बात का जिक्र नहीं करना चाहता था मैंने बोला हां मैं ठीक हूं

उनकी उम्र 40 साल के आसपास थी और मैं 30 बरस का

मेरी पत्नी उन्हें अंकल कहती थी मगर मैंने उन्हें भाई साहब कहना उचित समझा

राकेश जी ने मुझे अस्पताल के भीतर उंगली दिखाते हुए रास्ता समझा दिया ,, कुछ ही दूरी पर गार्ड रूम बना हुआ है वहीं पर ही सुपरवाइजर मिल जाएंगे उनका नाम रंजन सिंह है

अस्पताल में बहुत चहल-पहल थी एंबुलेंस बार-बार आती जाती दिखाई दे रही थी दो-चार पुलिस की गाड़ियां भी घूम रही थी यह अस्पताल दिल्ली के कैंप में स्थित है वहां पर बोर्ड भी लगा हुआ था उस पर लिखा था राजन बाबू हॉस्पिटल

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मैंने चारों तरफ नजर घुमाई अस्पताल तो काफी बड़ा है अंदर एक मंदिर भी है और वहां पर 6 — 7 एंबुलेंस भी खड़ी हुई है तुरंत ही वहां पर मुझे गार्ड रूम दिखाई दिया वहां और भी कुछ नौजवान वर्दी पहने हुए दिखाई दिए उनके पास जाकर मैंने भी अपना नाम बताया तो उन्होंने मुझे कमरे के भीतर भेज दिया सुपरवाइजर ने मुझे पहचान लिया

मेरा आधार कार्ड और पहचान पत्र वहां पर पहले से ही जमा था

राकेश जी ने व्हाट्सएप के माध्यम से मेरे डॉक्यूमेंट सुपरवाइजर को भेज दिए थे

सुपरवाइजर ने मुझे वर्दी दी और मेरी लंबाई देखकर कहा तुम्हें इमरजेंसी गेट पर बैठना होगा दोपहर 2:00 बजे से रात के 10:00 बजे तक

और एक बात ध्यान से सुनो गार्डो का कोई लंच नहीं होता जब भूख लगे मौका देखकर खा लेना जगह-जगह अस्पताल में ठंडे पानी की मशीनें लगी हुई है पानी वहीं से तुम्हें मिल जाएगा हाथ में डंडा लिए मैं इमरजेंसी वार्ड की तरफ चल पड़ा

इमरजेंसी गेट पर पहुंचने के बाद

वही गेट पर एक बेंच पड़ी हुई थी बेंच के पीछे एक बड़ा सा पेड़ था उसी पेड़ की छाया बेंच पर आ रही थी मैं बेंच के ऊपर बैठ गया तभी अंदर से एक नर्स निकल कर आई उसने कहा तुम नए सिक्योरिटी गार्ड हो यहां का रूल समझ लो

बिना अनुमति के कोई भी अजनबी व्यक्ति डॉक्टर के रूम में प्रवेश न करें

यहां आस-पास बहुत से आवारा कुत्ते हैं जो वार्ड के अंदर घुस जाते हैं उन्हें तुम्हें बाहर ही रोकना होगा वैसे तुम्हारा नाम क्या है

नर्स का चेहरा देखकर मैं सोच में पड़ गया कि मेरे गले में कार्ड लटका हुआ है फिर भी मुझे नाम बताना पड़ रहा है मैंने कहा जी मेरा नाम नेकराम है आज मेरा पहला दिन है

तब नर्स ने बताया मेरा नाम रेखा है मैं यहां की इंचार्ज हूं सब नर्सों के ऊपर की हेड हूं

पहले वाला सिक्योरिटी गार्ड ठीक नहीं था

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लेकिन उसे निकालने का कारण सबसे बड़ा था कि वह मरीज के परिजनों से रुपए मांगा करता था

यह एक सरकारी अस्पताल है यहां पर सभी लोग गरीब और दुखी और लाचार आते हैं लोगों की शिकायतों पर ही हम सिक्योरिटी गार्ड्स की छानबीन कर रहे हैं इस अस्पताल में कई सिक्योरिटी गार्ड्स को निकाल दिया गया है और नई भर्ती चालू है जो गार्ड ईमानदार हैं उनको ही यहां पर रखा जा रहा है

आज तुम्हारा पहला दिन है तुम्हारी ईमानदारी भी देख लेंगे

नर्स के जाने के बाद हमारा सुपरवाइजर बुलेट में आया और मुझे बताया

यहां किसी से बात नहीं करनी है चुपचाप अपनी ड्यूटी करनी है

पहले जो सिक्योरिटी गार्ड ड्यूटी करता था वह यहां के लोगों से रूपए पैसे मांगता था तुम्हारी कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए

इतना कहकर सुपरवाइजर भी चला गया और मेरा एक छोटा सा मोबाइल था बटन वाला तुरंत कॉल आया घर से पत्नी ने कहा तुम्हें ड्यूटी मिल गई ड्यूटी पर हो

मैं तुरंत पेड़ के पीछे चला गया और फोन कान में लगा कर बोला हां मैं ड्यूटी पर हूं बार-बार बात मत करो आज मेरा पहला दिन है अस्पताल का स्टाफ मेरी और ही देख रहा है

तब पत्नी ने कहा 2 महीने से कमरे का किराया नहीं दिया कोशिश करना ऊपर की कमाई हो जाए तुम्हारी नौकरी लगाने के लिए भी सुपरवाइजर को ₹5000 देने पड़े

मैं तुरंत फोन काट कर बेंच पर बैठ गया तभी एक शख्स मेरी ओर आया और मेरे साथ बेंच पर बैठ गया और मुझसे कहा मैं एंबुलेंस चलाता हूं

यह मेरा कार्ड रख लो इसमें मेरा मोबाइल नंबर है मुझे वार्ड के भीतर जाने पर सख्त मना ही है

इस अस्पताल में अक्सर बीमार लोग ही आते हैं अब सबका इलाज ठीक से हो सके यह तो नामुमकिन है इस अस्पताल में कोई ना कोई टपक ही जाता है

जी मैं कुछ समझा नहीं मैंने उस अजनबी व्यक्ति से कहा

तब मुझे याद आया सुपरवाइजर ने कहा था किसी अजनबी से बात नहीं करना

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मैंने थोड़ा साहस दिखाते हुए कहा कृपया आप मुझसे बात मत कीजिए मैं ड्यूटी पर हूं

उसने जल्दी से मुझे बताया मरीज के परिजन अगर कोई एंबुलेंस मांगे तो मुझे कॉल कर देना तुम्हें कमीशन मिल जाएगा पूरे ₹500 रुपए

इतना कह कर वह चला गया और पीछे सुपरवाइजर भी आ गया

सुपरवाइजर मुझसे पूछने लगा यह कौन था और तुमसे किस तरह की बातें कर रहा था मुझे बताओ मैं थोड़ी उलझन में पड़ गया लेकिन सच बताना जरूरी था मैंने सुपरवाइजर को सब सच-सच बता दिया

सुपरवाइजर ने वह कार्ड ले लिया और चला गया

सुपरवाइजर के जाने के बाद एक दूसरा व्यक्ति और आया और मुझे कार्ड देकर और समझाकर चला गया वह भी एंबुलेंस का मालिक था

अस्पताल में घुसते ही मुझे जो 6 एंबुलेंस दिखाई दी थी शायद यह उन्हीं एंबुलेंस के मालिक होगे मैं बैठे-बैठे अनुमान लगाने लगा

शाम तेजी से हुई और वार्ड के अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी मैं दौड़कर वार्ड के अंदर पहुंचा तो बेड पर एक बुजुर्ग माता जी खत्म हो चुकी थी बहुत से मरीजों ने उस बुजुर्ग माता जी को घेर रखा था नर्स और डॉक्टर भी वहां मौजूद थे

एक नर्स ने बताया,, बेचारी मर गई ,, काफी दिनों से अस्पताल में पड़ी हुई थी अस्पताल में कोई भी परिवार वाला मिलने नहीं आता था

सीलमपुर में इनका अपना घर है तब डॉक्टर ने कहा इन माता जी के घर पर कॉल करो किसी को बुलाओ डेड बॉडी हम ज्यादा देर तक अस्पताल में नहीं रख सकते अगर घर से कोई नहीं आया तो हमें मुर्दा घर में डेड बॉडी को रखना होगा

नर्स ने अपनी रजिस्टर से उस माताजी का मोबाइल नंबर ढूंढ निकाला और कॉल लगाई कॉल एक लड़की ने उठाई वह शायद उसकी बेटी थी

आधे घंटे के बाद एक युवती इमरजेंसी गेट पर आकर रुकी उसके आंसू थम नहीं रहे थे गोद में एक बच्चा था और एक लड़की थी 4 साल की बगल में खड़ी हुई थी बच्चे कह रहे थे नानी को क्या हुआ

मैं तुरंत उस युवती को डेड बॉडी के पास ले गया मुझे पक्का यकीन था कुछ देर पहले जो कॉल की थी और बातें जो हुई थी कॉल में नर्स के साथ इसी युवती से हुई थी

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वह युवती अपनी मां की डेड बॉडी देखकर दहाड़े मार मार कर रोने लगी

बच्चे भी चिल्लाने लगे नानी उठो नानी उठो हम आ गए हैं तुम्हें लेने के लिए

तब नर्स ने पूछा क्या तुम्हारे परिवार में कोई मर्द नहीं है

तब उस युवती  ने बताया मेरा एक ही भाई है जो सारा दिन शराब के नशे में पड़ा रहता है उसे कई बार कॉल लगाया लेकिन स्विच ऑफ जा रहा है हम बहुत गरीब घर से हैं मकान भी किराए का है

मेरी मां को न जाने कैसे टीवी हो गया और मुझे बिना बताए ही मेरा भाई मां को अस्पताल में दाखिल करके छोड़ गया

तब उस युवती ने कहा मुझे एक एंबुलेंस चाहिए तो अस्पताल में खड़े कुछ लोगों ने कहा सिक्योरिटी गार्ड खड़े हुए हैं उनसे बात कीजिए

वह युवती मेरी तरफ आगे बढ़ी मैं भी वहीं मौजूद था

उसने कहा भैया एंबुलेंस का बंदोबस्त कर दीजिए

मेरी जेब में एक कार्ड पड़ा हुआ था जो अजनबी व्यक्ति दे गया था मैंने तुरंत मोबाइल नंबर पर कॉल लगाया 1 मिनट बाद ही एक एंबुलेंस तेज रफ्तार में इमरजेंसी के गेट के अंदर दाखिल होती हुई दिखाई थी

एंबुलेंस वाले ड्राइवर ने कहा,, कहां जाना है आपको

उस रोती हुई युवती ने बताया हमें सीलमपुर जाना है तब ड्राइवर ने कहा सीलमपुर तो बहुत दूर है ₹2000 लगेंगे

₹2000 का नाम सुनकर युवती का चेहरा पीला पड़ गया

ड्राइवर ने कहा इतने ही रुपए लगेंगे एक रुपया भी कम नहीं होगा

तब वह कहने लगी मैं तो घर से खाली हाथ ही चली थी केवल ₹100 ही है मेरे पर्स में

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तब वहीं पास खड़ी एक औरत बोली सारी प्रॉपर्टी तो भाई को मिलनी है और माता का अंतिम संस्कार बेटी करने आई है क्या जमाना आ गया है

तब दूसरी औरत बोली बेटों में हमदर्दी कहां होती है जो बेटा अपनी बूढ़ी माता को अस्पताल में फेंक कर चला गया हो और मिलने भी ना आया हो सोचो वह बेटा नहीं एक राक्षस है

तब वहीं तीसरी महिला भी खड़ी हुई थी कहने लगी हम औरतों की जिंदगी में दर्द ही दर्द है बेटी बनकर भी देख लिया और मां बनकर भी

इस दुनिया के सारे सुख तो पुरुषों के लिए ही है महिलाओं के नसीब में तो केवल दुख ही दुख लिखे हैं

एक बेटी को दौलत नहीं अपनी मां चाहिए लेकिन लोग शादी के बाद उसे अपनी ही मां से भी जुदा कर देते हैं

तब ड्राइवर बोला समय की बर्बादी मत कीजिए मैं डेड बॉडी को फ्री में नहीं ले जाऊंगा गाड़ी में भी गैस खर्च होती है और दिन भर की हमें दिहाड़ी भी निकालनी होती है और अस्पताल में गाड़ी खड़ी करने का किराया भी हमें देना पड़ता है

तब वह युवती बोली ठीक है आप मेरी माता जी को घर ले चलो मैं घर से ही कुछ रुपए का इंतजाम करके दे दूंगी इतने में एक कमजोर और पुराने से कपड़े पहने हुए आदमी इमरजेंसी के अंदर चला आया

वह उस युवती का खुद को उसका पति बता रहा था

उसने तुरंत ड्राइवर से पूछा कितने रुपए ड्राइवर ने बता दिए ₹2000

तब उस व्यक्ति ने कहा यह हमारी सासू मां है दामाद भी तो बेटा ही होता है उसने तुरंत अपनी सासू मां की डेड बॉडी उठाई और एंबुलेंस में रख दी

और वह एंबुलेंस तेज़ी से अस्पताल के बाहर की तरफ निकल पड़ी मैं डंडा लिए उस एंबुलेंस को देखता रहा

मेरे पास ड्राइवर का मोबाइल नंबर था मैंने मोबाइल करके बताया आप उस युवती से ₹1500 ही लेना

ड्राइवर का जवाब आया ₹500 तुम्हें भी तो कमीशन देना है इसलिए मैंने ₹2000 मांगे थे

तब मैंने कहा मुझे नहीं चाहिए कमिशन ,,

इस बोर्ड में उस बुजुर्ग माता के घर का मोबाइल नंबर हमारे रजिस्टर में जमा है मैं पूछ लूंगा फोन करके कि तुमने उनसे कितने रुपए मांगे थे

तब ड्राइवर ने कहा ठीक है मैं ₹1500 ही मांगूंगा

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तब बेंच पर बैठे-बैठे मैं सोचने लगा सीलमपुर जाने के लिए बस में मेरे

15 रूपए लगते है

मगर डेड बॉडी ले जाने के लिए ₹1500 रूपए

क्योंकि हम डेड बॉडी बस में नहीं ले जा सकते ऑटो में नहीं ले जा सकते टैक्सी में नहीं ले जा सकते और इसी वजह से एंबुलेंस वाले भारी पैसा मांगते हैं

क्या सरकार डेड बॉडी घर पहुंचाने के लिए निशुल्क सेवा कर सकती है

या नहीं

लेकिन मैंने कसम खाई ऊपर का पैसा कमीशन के रूप में मुझें नहीं चाहिए

जिस समाज में हम रहते हैं वहां गरीब लोगों की मजबूरी का फायदा उठाना अच्छी बात नहीं है

किसी के घर मौत हो गई और आज का इंसान इतना गिर गया कि किसी के मौत होने पर भी कमीशन नहीं छोड़ना

तमाम विचार मेरे दिमाग में आते रहे और मैं अपने आप से ही सवाल करता रहा

रात के लगभग 10 बज चुके थे वही एम्बुलेंस इमरजेंसी गेट के बाहर आकर रुकी ओर उसमें से ड्राइवर उतरा

वह सीधा मेरी तरफ ही आता नजर आया बस में उसके मुंह से सुनना चाहता था उसने उस युवती से कितने रुपए लिए हैं

तब उस ड्राइवर ने कहा गार्ड साहब जब तुम अपना कमीशन छोड़ सकते हो तो मैं क्यों नहीं

मैं ड्राइवर साहब का चेहरा गौर से देखते हुए बोला साफ-साफ कहो क्या बात है

तब ड्राइवर साहब ने बताया उनके घर की हालत बहुत खराब थी अंतिम संस्कार करने के लिए भी उनके पास रूपयों का प्रबंध नहीं था मुझे अपने रुपये मांगने में भी शर्म आ रही थी

20 मिनट तक तो मैं एम्बुलेंस खाली करने के बाद खड़ा रहा

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घर में चीख पुकार मच रही थी बच्चों की लगातार रोने की आवाज़ें आ रही थी

मैं बिना पैसे लिए ही एम्बुलेंस को अस्पताल ले आया

मुझे ऐसे लगा जैसे वह मेरी ही,, मां ,, हो फिर अपनों से क्या पैसे मांगना

गार्ड साहब पहली बार लाइफ में मेरे साथ ऐसा हुआ है

इतना कहकर वह एंबुलेंस लेकर चला गया और छुट्टी का समय हो गया था मैं भी अपने घर की तरफ चल पड़ा

मुझे समझ नहीं आ रहा था एंबुलेंस के ड्राइवर का किस तरह शुक्रिया अदा करूं

लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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