उपर की कमाई – प्रेम बजाज

सोमेश पुलिस इंस्पेक्टर और रामलाल हवलदार है।

सोमेश घमंड में रहता और कहता, “मैं अपने बेटे को अपने से बड़ा आफिसर बनाऊंगा, उसे बड़े इंग्लिश स्कूल में पढ़ाऊंगा, चाहे कितना भी पैसा खर्च क्यूं ना हो”

इसलिए वो झूठे-सच्चे केस बना कर, इधर-उधर घपला करके उपर की कमाई करता। उस पर रौब भी झाड़ता मेरे जैसा इमानदार इंस्पेक्टर और कोई नहीं।

 रामलाल सीधा-साधा थोड़े में ही गुज़ारा कर के खुश था। लेकिन उसका एक सपना था कि जैसे मैं तकलीफों से गुज़र रहा हूं, मेरा बेटा उन तकलीफों से ना गुज़रे। मेरा बेटा किसी ऊंचे ओहदे का अफसर बने। उसे वो सभी  सुख मिले जो मुझे नहीं मिले।

इसलिए वो दिन में थाने  में नौकरी करता और रात में पत्नी की मदद करता और उसकी पत्नी लोगों के कपड़े सिलती। दोनों पति-पत्नी दिन-रात मेहनत करके बेटे को पढ़ा रहे थे।

उस पर बेटा ऐसा होनहार कि हर साल अव्वल आता।

सोमेश का बेटा  इंग्लिश मीडियम स्कूल में और रामलाल का बेटा सरकारी स्कूल में, लेकिन इत्तेफाक से दोनों बच्चे एक ही उम्र के है।

हर साल जब  बच्चों का रिजल्ट आता,  सोमेश पूरे स्टाफ को चिकन-दारू की पार्टी देता,  और कहता,” देखा मेरा बेटा मेरी तरह होशियार है,  अपने पूरे सेक्शन में इसी के नम्बर सबसे ज्यादा है”

इधर रामलाल बेटे के रिजल्ट पर मन्दिर में जाकर प्रसाद चढ़ाता उसी से सब का मुंह मीठा करवाता।

सोमेश,” रामलाल, बेटा पास हो गया? इसलिए भगवान को प्रसाद चढ़ा कर आए हो?”

रामलाल,” जी सरकार, अव्वल आया है बेटा”

इंस्पेक्टर हंसते हुए,”तो क्या हुआ, क्लास में अव्वल आ गया तो, सरकारी स्कूल में तो पढ़ता है,  मेरा बेटा प्राइवेट इंग्लिश मीडियम में है, देखना बहुत बड़ा अफसर बनेगा, उसके आफिस में तेरे बेटे को चपरासी की नौकरी लगवा दूंगा”

रामलाल,” हजूर पूरे राज्य में अव्वल आया है। हजूर हमारी औकात तो सरकारी स्कूल की है, हम कहां आपकी बराबरी कर सकत‌ हैं” 

“हां ये तो है’ सोमेश हंसते हुए कहता।

इस तरह समय बीता, दोनों बच्चे पढ़ गए और जाब लग गई। 


सोमेश के बेटे ने ले-देकर इंजिनियरिंग पास की, एक कम्पनी में सोमेश ने सिफारिश से नौकरी लगवाई।

रामलाल के बेटे की भी नौकरी लग गई।

सोमेश और रामलाल दोनों रिटायर हो गए।

दोनों  अपने जीवन में व्यस्त हो गए, सोमेश के पास कुछ पुरखों की ज़मीन थी, सोमेश‌ उसी पर कुछ ना कुछ बो देता। बेटे की तनख्वाह से तो पूरा परिवार ना गुज़ारा कर पाता, उसी ज़मीन से कुछ आमदनी होती, गुज़ारा ठीक हो जाता।

जमापूंजी बेटे की पढ़ाई और शादी पर लगा दी।

एक बार सूखा पड़ा और सभी लोगों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई, लेकिन काफी समय बीतने पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई तो सोमेश कलेक्टर से मिलने गया।

वहां पर रामलाल मिल गया,” ओ रामू तू यहां?

कोई  काम-वाम चाहिए तो मैं कलेक्टर से बात करके लगवा दूंगा।

रामलाल  कुछ कहता, इससे पहले ही सोमेश को कलेक्टर का बुलावा आ गया।

सोमेश जैसे ही कलेक्टर के रूम में जाता है, देखता है कि  पीछे रामलाल भी आ गया।

सोमेश डांटते हुए,”अरे रामू  मैं तेरी बात कर लूंगा, तु बाहर रूक,ऐसे बिना इज़ाजत अन्दर नहीं आते, इतना भी तुझे पता नहीं”

इतने में कलेक्टर खड़ा होकर सोमेश और रामलाल के पांव छूता है और सोमेश को बैठने के लिए कह कर  रामलाल से पूछता है, पिता जी आप यहां कैसे?आप घर पर आराम करें   कोई काम है तो मुझे बुलवा लिया होता”

रामलाल,” कुछ नहीं बेटा बैठे-बैठे ऊब गया तो तेरे पास चला आया” 

कलेक्टर रामलाल को अपनी कुर्सी पर बिठाकर,”ठीक है आप यहीं मेरे पास बैठिए”

रामलाल के बेटे को कलेक्टर जानकर और बाप-बेटे की बातें सुनकर सोमेश का अंहकार चूर-चूर हो गया।

#अहंकार 

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

 

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