मुकुल का मन और भी तेजी से दक्षिणा की ओर भागने लगा। एक दिन जब दक्षिणा ने आधे दिन की छुट्टी ली तो मुकुल ने शाम को अहिल्या से कहा -” आज तो तुम अपनी सहेली के साथ घूमने गई होंगी?”
” पापा आज मौसी का जन्मदिन था। देखिये मौसी ने हम लोगों को क्या-क्या दिलवाया है?” बच्चे अपनी-अपनी वस्तुयें दिखाने लगे।
” अरे मुझे तो पता ही नहीं था। कम से कम शुभकामना तो दे सकता था लेकिन यह तो गलत बात है आज तो उपहार देने का दिन था लेने का नहीं।”
फिर उसने अहिल्या से पूछा-” तुमने क्या दिया उसे?”
” बच्चों को कुछ भी देने से रोंककर मैं उसे तकलीफ नहीं देना चाहती। वह तो कुछ ले नहीं रही थी कहती है कि तुम लोग के साथ बिताये पलों से खूबसूरत उपहार कोई नहीं है लेकिन मैंने जबर्दस्ती उसके मनपसंद लेखक की एक किताब उसे दे दी है। उसकी मनपसंद खाने की वस्तुयें मैं बनाकर ले गई थी। खूब मस्ती की हमने। सच में इतना अच्छा दिन बीता है कि क्या बताऊॅ। दक्षिणा तो इन लोगो के साथ बिल्कुल बच्चा बनकर दौड़ने लगती हैं।” अहिल्या बेहद खुश थी।
” कल मैं उसे जन्मदिन की शुभकामना दे दूॅगा।”
” नहीं, हमारी दोस्ती के बारे में आप कुछ नहीं जानते। उसे इस बारे में पता नहीं चलना चाहये।”
” अजीब बेवकूफी बड़ी जिद है।”
दक्षिणा लेमन कलर की साड़ी पर पहनकर आई तो मुकुल अवाक सा देखता रह गया।
” क्या बात है ऐसे क्या देख रहे हैं ?” दक्षिणा हल्के से मुस्कुराई।
” कुछ नहीं थोड़ा दिल बेईमान सा हुआ जा रहा है, उसी को सम्हाल कर काबू में कर रहा था। ••••मुझे दोष न देना जग वालों, हो जाऊॅ अगर मैं दीवाना ••••।”आंखों में शरारत भर कर मुस्कुरा दिया मुकुल ।
” आप भी ••••••।” शर्मा कर अपने आप में सिमट गई वह, गुलाबी डोरे ऑखों में तैर गये।”
मुकुल के लिए अपनी वैवाहिक वर्षगाॅठ बहुत विशेष रहती है । इस दिन वह अहिल्या को कोई काम नहीं करने देता है। चाय से लेकर जो काम करना होता है, खुद करता है। अब तो बच्चे भी सहयोग करते थे केवल अहिल्या को इस दिन कोई काम करने की इजाजत नहीं थी। खाना नाश्ता सब बाजार से बना बनाया ले आता था। बच्चे छोटे थे तब इस दिन उन्हें उसके मित्रों की पत्नियॉ सम्हाल लेती थी। सुबह से ही अपने हाथों उसे दुल्हन की तरह तैयार करके फूलों और परफ्यूम से सुगंधित अपने कमरे में बैठा देता। पूरा दिन परिवार के नाम।
उस दिन उनके विवाह की दसवीं वर्षगाॅठ थी। सब लोग बहुत खुश थे। अहिल्या हॅस रही थी -” दस साल हो गये हैं शादी के। अभी भी तुम्हारा जुनून कम नहीं हुआ है । अब तो बच्चे भी बड़े हो रहे हैं ।”
” सौ साल बाद भी काम नहीं होगा।” मुकुल ने धीरे से उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिये। उसी में उसकी स्मृति में कोई और कौंध गया तो उसने और कस कर जकड़ लिया अहिल्या को।
बच्चे अपने कमरे में थे तभी दरवाजे की घंटी बजी –
” देखो बेटा कौन है ?’ मुकुल ने बेटे को आवाज दी ।
बेटे ने आकर बताया – ” पापा एक अंकल आपको बुला रहे हैं।”
मुकुल ने जब कोरियर वाले के हाथ में गुलाब के फूलों के ,बुके के साथ एक गिफ्ट पैकेट देखा तो सोंच में पड़ गया। उसने तो किसी को कुछ बताया नहीं है फिर यह सब कौन भेज सकता है? भेजने वाले का नाम भी नहीं था। हस्ताक्षर करके ले तो लिया लेकिन असमंजस में पड़ गया-
” कोरियर वाला कैसे आ गया? यहॉ तो कोई जानता भी नहीं है कि आज अपने विवाह की वर्षगॉठ है, फिर किसने भेजा होगा?”
अहिल्या खिलखिलाकर हॅस दी – ” खोलोगे तो तुम भी जान जाओगे।”
पैकेट के अन्दर मुकुल का मनपसंद परफ्यूम और खूबसूरत सी टाई के साथ एक शानदार गर्म शॉल रखा था।
” दक्षिणा ” उसके होंठ अनायास ही बुदबुदा उठे। ऑखों के सामने एक प्यारी सी छवि आकर लुप्त हो गई।
” हॉ, दक्षिणा ने ही भेजा है। उसका यह शॉल मुझे बहुत पसंद आया था। वह तो उसी समय उतारकर दे रही थी लेकिन मैंने नहीं लिया था। अब जाने कहॉ से ढूढकर भेज दिया है। बिल्कुल पागल है।”
” उसे बताने की क्या जरूरत थी तुम्हें?”
” मैंने नहीं बताया, ये तुम्हारे चुगलखोर बच्चों ने बता दिया और यह भी बताया कि तुम कितने उत्साह से मनाते हो इस दिन को। कैसे कमरे को फूलों से और मुझे दुल्हन की तरह सजाते हो। मैं तो शर्म से गड़ ही नहीं लेकिन ये शैतान माने ही नहीं ।”
” उसने कुछ कहा नहीं।”
” उसकी ऑखों में नमी उतर आई थी और उसने मुझे गले लगाकर कहा था कि इसमें शरमाने की क्या बात है? ईश्वर करे कि कयामत तक तुम ऐसे ही अपने विवाह की वर्षगॉठ मनाओ।”
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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर