आज रामनाथ जी बहुत खुश हैं। बेटे की पढ़ाई पूरी हो गई, अपने ही शहर में अच्छी-सी नौकरी लग गई और आज उसे पहली तनख्वाह मिलने वाली थी। न जाने कितने बरसों से इस दिन का सपना संजो रखा था उन्होंने। बड़ी उत्सुकता थी कि अविनाश अपनी पहली तनख्वाह का क्या करेगा? सुना है उन्होंने कि लोग अपनी पहली सैलरी यार-दोस्तों और पार्टी में उड़ा देते हैं। क्या अविनाश भी……
इतनी आसानी से ये दिन नहीं आया है उनकी ज़िंदगी में। उन्होंने व उनकी पत्नी श्यामली ने अपनी ज़रूरतों को नजरअंदाज कर, अपनी इच्छाओं को दफन कर बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई है। ज़हीन तो बचपन से था लेकिन पढ़ाई के लिए पैसे कहाँ से लाते? कुल बीस हज़ार की आमदनी थी उनकी महीने की! अम्मा-बाबूजी को मिला कर छह लोगों का परिवार, वही जानते थे कि क्या-क्या कटौती करनी पड़ती थी कि फ़ीस चली जाए हर सेमेस्टर! कभी-कभी तो हफ्ते-भर अपनी हाई शुगर की दवाई भी गोल कर जाते!
पढ़ाई के लिए कुल चार लाख का लोन लिया था उन्होंने, घर गिरवी रख कर। सूद चुकाने में ही ठन-ठन गोपाल हो जाते हैं वे, मूल का क्या करें? वैसे बैंक वाले बाबू ने भरोसा दिलाया है कि अभी चार साल और हैं आपके पास लोन चुकाने को, परेशान मत होइए। बेटे की नौकरी से कुछ उम्मीद जागी है पर उससे मदद के लिए मुँह खोल कर कभी नहीं कह पाए वह! उसे पढ़ाना व खुद के पैरों पर खड़ा करना उनका फर्ज़ था, उन्होंने किया, इस लोन का भार बेटे पर डालना उन्हें ठीक नहीं लगता था।
श्यामली ने तो एक बार अपनी शादी के सारे ज़ेवर निकाल कर उनके हाथों में दे दिए थे,
“जाओ इससे मूल चुका दो, अवि से कुछ मत बोलना।”
माँ है वह, उसकी तो जान ही बेटे में बसती है!
शाम को अविनाश आया तो सब खुश हो गए। सबके लिए कुछ न कुछ लाया था।
“पापा, आपके लिए ये आरामदायक सैंडल लाया हूँ, दिनभर आप भाग-दौड़ करते रहते हैं! और हाँ, ये रुमाल का सेट। आपके सारे रुमाल फट गए हैं, देखा है मैंने।”
रामनाथ जी भावुक हो गए तो उसने उन्हें गले लगा लिया,
“मुझे पता है आपने अपनी क्या-क्या ज़रूरतें और इच्छाएँ दफन की हुई हैं। सबकी लिस्ट बना रखी है मैंने। एक-एक कर सब करूँगा।”
“अरे हाँ पापा, आपने मोबाइल चैक किया अपना? कोई मैसेज आया है क्या?”
“सुबह से मोबाइल देखा ही नहीं! कैसा मैसेज?” कहते हुए उन्होंने जेब से मोबाइल निकाला।
था तो एक मैसेज…
“आपके लोन एकाउंट में तीस हज़ार रुपए जमा हुए”
विश्वनाथ जी ने भर आईं आँखों से बेटे को देखते हुए कहा,
“तुम्हें याद थी इसकी? मैं तो समझा कि तुम …..”
“भूल गया? ये कैसे संभव हो सकता है? लिस्ट में सबसे ऊपर तो यही है पापा!”
स्वरचित
प्रीति आनंद अस्थाना