उलझन – संगीता त्रिपाठी

सुबह वैभव को बस स्टॉप पर छोड़ने गई तो देखा बगल वाले घर का मुख्य दरवाजा खुला था। “अरे शुभा आंटी तो पांच महीने के लिये बेटे के पास गई थी, इतनी जल्दी कैसे आ गई “मन ही मन तर्क -वितर्क करते मै शुभा आंटी के घर की घंटी बजा दी। सामने अस्त -व्यस्त सी शुभा आंटी खड़ी थी “क्या हुआ आंटी, सब ठीक है आप लोग जल्दी वापस आ गये। बेबी ठीक है।”मेरे प्रश्नों की बौछार से आंटी के होठों पर हल्की स्मित फैल गई। बैठने का इशारा कर वो अंदर चली गई। थोड़ी देर में चाय के दो प्याले ले और अपने को व्यवस्थित कर के आई। सामने सोफे पर बैठ बोली -“अरे प्रश्नों की तूफान मेल, थोड़ा सांस तो ले लें।”

 

     शुभा आंटी मुझसे और मै उनसे हर बात बिना छुपाये शेयर करती हूँ।साथ बैठ कभी परेशानियों का हल निकालते, तो कभी दुख साँझा करते तो कभी खुशियों को सेलिब्रेशन भी करते, इस तरह इस परदेस में उनको बच्चों की कमी नहीं खलती और मुझे माँ -बाप की कमी नहीं खलती। दोनों की जरूरतों ने एक दूसरे का साथ प्रगाढ़ कर दिया।शुभा आंटी और महेश अंकल अपने बेटे के पास बहू की डिलीवरी के लिये गये थे। अभी पंद्रह दिन पहले ही तो उनके पोते का जन्म हुआ। आंटी ने फोन कर सबसे पहले हमें बताया, उनकी आवाज खुशी से कांप रही थी। बहुत खुश थी, पांच महीने की तैयारी करके गई थी दो महीने में ही लौट आई।

 

       चाय का कप पकड़ते ही मैंने फिर अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर टिकायी, मेरी जिज्ञासा को देख उन्होंने धीमे स्वर में बताया -जानती हो सुम्मी मै कितनी तैयारी करके यहाँ से गई थी पर बहू लता ने हर चीज में कमियाँ निकाल रिजेक्ट कर दी। बेबी वूल से बनाये मेरे स्वेटर को देख नाक -भौ चढ़ा उसने घटिया कह वापस कर दिया, वही उसकी मम्मी भी परसों आ गई थी, बचे ऊन से बनाये उनके रंग -बिरंगे स्वेटर को “हाउ स्वीट “कह रख लिया।जब काम की जरूरत थी तो मम्मी जी कब आओगी कह बुलाया, और बेबी हो जाने के बाद, मेरे हर काम में उसे और उसकी मम्मी को कमी दिखने लगी।लता का व्यवहार बहुत खराब हो गया था हमारे प्रति., पापा जी कितनी बार चाय पीते है, तभी घर में दूध नहीं बचता, राशन इतनी जल्दी खत्म हो गया, अभी तो मंगवाया था कह हमारे आत्मसम्मान पर प्रहार कर रही थी ..,लता तो नासमझ है पर उसकी मम्मी तो मेरे उम्र की है, क्या उनको बेटी को समझाना नहीं चाहिये था। उलटे वे मेरे पीछे पड़ी रहती -लता को दूध नहीं मिला, अभी उसका ये काम नहीं हुआ,तो कभी बच्चे की मालिश नहीं हुई जैसे कई काम बताती रहती थी । कल रात मुझे याद आया लता को दूध नहीं दिया, रसोई से दूध ले कर लता को देने जा रही थी तभी लता और उसकी मम्मी की आवाज सुनाई दी।”अच्छा हुआ तूने अपनी सास को बुला लिया, मुफ्त की नौकरानी मिल गई तुझे आराम भी हो गया”।



“अरे मम्मी मैंने कुछ सोच कर ही तो उन्हें बुलाई हूँ, आप तो काम कर नहीं पाती, इसलिये उनको बुलाना जरुरी हो गया, मै अच्छी बहू भी बन गई और आराम से मेरा काम भी हो जा रहा। एक तीर से मैंने दो निशाने मारे, अब काम हो गया ये लोग जाये किसी तरह,लता ने कहा तो उसकी मम्मी बोली -“तू शिशिर से कह दे अब अपने माँ -बाप को वापस भेज दे “

           

 

           मै सच्चाई जान सन्न रह गई,उलटे पैर वापस आ गई, आखिर कब तक समझौता करती उसके साथ। जहाँ प्रेम हो वहाँ समझौता हो जाता पर जहाँ स्वार्थ हो वहाँ समझौता करना मुश्किल होता। महेश को पूरी बात बता दिया और हम सुबह की फ्लाइट पकड़ अपने घर आ गये,। “ना बेटे ने रोका ना बहू ने..।

 

 

  “पर शिशिर सब कुछ देख कर कुछ नहीं बोलता था “मैंने पूछा

    “जब भी शिशिर कुछ बोलता तो लता अपनी तबियत खराब कर लेती थी, तो मैंने ही उसे चुप करा दिया, पर मुझे उलझन ये है कि इतना प्यार करने पर भी सास बुरी और माँ भले ही कुछ ना करें फिर भी अच्छी क्यों हो जाती है “शुभा भाभी उदास हो कर बोली।

 

        शुभा भाभी को सांत्वना दे मै घर लौट आई पर उलझन मुझे भी हो रही थी, जहाँ बहू अच्छी वहाँ सास समझौता नहीं करती और जहाँ सास अच्छी वहाँ बहू कोई समझौता नहीं करती… आखिर क्यों..?

#समझौता 

                               —-संगीता त्रिपाठी

                               गाजियाबाद 

 

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