आज जैसे ही विराट दफ्तर से घर में घुसा, घर में मची शांति परंतु रसोई घर मे से आती बर्तनों की उठा पटक से साफ़ पता चल रहा था कि घर पर जरूर कुछ ना कुछ हुआ है |
सच लगभग प्रत्येक पुरुष को इस दौर से एक ना एक बार अवश्य गुजरना पड़ता है जब उसे अपने जीवन की दो सबसे महत्त्वपूर्ण औरतों में हुए झगड़े के बीच बिना किसी कसूर के पिसना पड़ता है, बीवी की तरफदारी करने पर उसे जोरु का गुलाम की उपाधि मिलती है और माँ की तरफदारी करने पर माँ का लाडला की उपाधि प्राप्त होती है |
शिप्रा विराट को चाय देते ही गुस्से से बोली, “यदि आपकी माँ को मैं पसंद नहीं थी तो विवाह के लिए हाँ क्यूँ की थी? कम से कम रोज रोज की चिकचिक से तो छुटकारा मिलता| बिना किसी गलती के जान बूझकर मेरी गलतियाँ निकाली जाती है, आखिर मैं भी तो इंसान हूँ, किसी की बेटी हूँ परंतु हर समय य़ह तानाकशी आखिर कब तक?”
“यार मैं भी तो तंग आ गया हूँ रोज रोज की बक बक से, आदमी काम से थक टूट कर आए और उस पर तुम्हारी ये रोज रोज की माँ की शिकायतें. कुछ तो मेरा भी लिहाज करो| अगर कुछ कह भी देती है तो क्या घर की बड़ी है, तुम्हारी गलती पर तुम्हारी माँ भी तो डांटती होगी ना.”
चाय का कप गुस्से में पटकते हुए जैसे ही विराट कमरे से बाहर निकला, बरामदे में माँ बैठी थी,
जैसे ही बरामदे में पहुँचा तो विराट की माँ शुरू हो गयी, ‘मैं तो तंग आ गयी तेरी पसन्द से, कोई काम. ढंग से नहीं करती |’
“माँ! आप भी ना, सारा दिन तो वो सब का ध्यान रखती है और धीरे-धीरे सब सीख जाएगी आप उसे डांटने की बजाय प्यार से भी तो सिखा सकती हो” विराट की बात सुनते ही माँ को गुस्सा आ गया,
“हाँ बस दो महीने में ही बीवी सही हो गयी और माँ गलत, वाह बेटा बस यही दिन दिखाने के लिए ईश्वर ने साँसे दी थी ‘कहते हुए माँ ने बेचारी बनकर जोर जोर से रोना शुरू कर दिया |
इधर कमरे में शिप्रा बैठी सोच रही थी, कि जिस इंसान के लिए मैंने मायके को छोड़ा और आज विराट के पास मेरी बात सुनने का भी समय नहीं है और अपनी माँ की गलती मानने को तैयार ही नहीं है | कुछ ही पलों में कमरा शिप्रा की सिसकियों से गूंजने लगा |
इधर माँ और बीवी के झगड़े से तंग आकर विराट गुस्से में पैर पटकते हुए गली की नुक्कड़ वाली दुकान में चाय पीने चला गया और गंभीर सोच में पड़ गया,
एक तरफ एक पत्नि जो अपना घर मायका छोड़कर आयी थी..
एक तरफ इक माँ जिसकी अपनी पसंद की बहू लाने का स्वप्न अधूरा रह गया था..
एक पुरुष को चक्की के दी पाटों की तरह बीच में पिस रहा था.. आखिर इन सब उलझते रिश्तों में जिम्मेवार कौन?
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