‘अरे ! राधा! ध्यान कहां है तुम्हारा ? कितनी लापरवाही से काम करती हो आजकल ? आज फिर तुम से सारा दूध उबलकर भगोने से बाहर आ गया ? तुमसे कितनी बार कहा है
कि तुम्हें चार बर्नर पर एक साथ काम करने का कौशल नहीं है,क्योंकि अपने घर में तुम्हें इस प्रकार काम करने की आदत नहीं है। इसलिए एक बार में दो बर्नर ही जलाया करो, लेकिन तुम सुनो तब न।’ किचन में प्रवेश करते हुए उन्होंने राधा को डांटते हुए सजग किया।
दरअसल पिछले कई दिनों से, कई बार, कभी दूध और कभी चाय उबलकर पतीले से बाहर गिरते देखकर आज उनका क्रोध फूट ही पड़ा था।
‘ वो न..वो न..जरा सा, मैं उधर से कड़छुल उठाने लगी तो बस इतने में ही…’
‘राधा ! यह तुम्हारी बहुत बुरी आदत है कि तुम कभी अपनी ग़लती नहीं मानती हो। अपनी ग़लती स्वीकार न करने की आदत ही तुमसे बार-बार यह गलती करवाती है। अभी कल तुमसे सारी चाय उबलकर गैस और शैल्फ पर फैल गई थी। आज भी अपनी लापरवाही से तुम दूध के उफान पर नियन्त्रण नहीं रख पाई हो। ग़लती हो जाने पर अपनी गलती को मानना भी सीखो।’
दरअसल आज फिर राधा की अपनी सफाई देने की आदत ने उनके गुस्से की ‘आग में घी डालने’ का काम किया था।
पिछले कई दिनों से पहले राधा की लापरवाही और फिर उसे सावधान करने पर उसके किंतु-परंतु के व्यवहार से दबा हुआ उनका गुस्सा आज अपने पूरे उफान पर था।
राधा मायूस होकर एकदम मौन हो गई, लेकिन उसके मौन का यह क्षणिक अंतराल अब उन्हें सोचने पर विवश कर गया, ‘अगर राधा दूध के उफान पर नियंत्रण नहीं कर पाई है तो मैं ही कहां अपने गुस्से के उफान को रोक पाई हूं।’
वे आत्मग्लानि से भर उठीं। सहसा उन्होंने तुरंत फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर दोनों के लिए नींबू पानी बनाया और राधा को गिलास पकड़ाते हुए बोलीं, ‘चल पहले नींबू पानी पी, फिर बाकी का काम कर, आज बहुत ज्यादा गर्मी है!’
राधा के ओठों पर तुरंत एक मीठी सी मुस्कान तैर गई।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।
#आग में घी डालना